इंदौर न्यूज़ (Indore News)

स्कूली बच्चों के आंदोलन का हश्र, भोजन में अंकुरित दाने बढ़े

20 किलोमीटर पैदल चलकर 11 दिन पहले कलेक्टर से मिलने पहुंचे थे ज्ञानोदय के छात्र

एडीएम का तबादला…जांच अधर में लटकी

इंदौर, कमलेश्वरसिंह सिसौदिया। डेढ़ सप्ताह पहले खंडवा रोड (Khandwa Road) के मोरोद छात्रावास से पैदल 20 किलोमीटर चलकर बच्चे इंदौर कलेक्टर (Indore Collector) से मिलने पहुंचे थे। बच्चे छात्रावास में भोजन (Food) और सफाई व्यवस्था से नाराज थे। आश्वासन मिला व शाम को ही कलेक्टर छात्रावास भी पहुंचे, लेकिन अभी तक जवाबदारों पर कार्रवाई नहीं हुई है। बच्चे नाराज हैं कि उन्हें संतुष्टि इस बात की है कि आंदोलन के बाद उनके भोजन में सिर्फ इतना सुधार हुआ है कि सुबह के नाश्ते में अंकुरित अनाज मिलने लगा है। यानी बच्चों के आंदोलन से सिर्फ अंकुरित अनाज (Sprouts) ही फूटा है।

अनुसूचित जाति के बच्चों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा आवासीय व्यवस्था के साथ एक छत के नीचे मिले, इसके लिए प्रदेश में संभागीय स्तर पर ज्ञानोदय विद्यालय संचालित किए जाते हैं। इंदौर में खंडवा रोड स्थित मोरोद गांव में आवासीय ज्ञानोदय विद्यालय छात्रावास में खराब खाने और गंदगी को लेकर 25 जुलाई को बच्चों के नाराजगी फूट पड़ी और वह पैदल ही कलेक्टर से विरोध जताने पहुंच गए। तकरीबन 2 घंटे तक कलेक्टर कार्यालय के बाहर हंगामे के बाद आश्वासन मिला और जांच समिति बनाकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। तकरीबन 11 दिन बीतने पर कमेटी द्वारा अभी तक कोई खास कार्रवाई सामने नहीं आई है। कमेटी में तत्कालीन एडीएम रहे राजेश राठौड़ ने बताया कि प्राथमिक तौर पर प्राचार्य और छात्रावास प्रबंधन की गलतियां सामने आई थीं। अब एडीएम का तबादला हो चुका है और जांच अधर में है, इससे बच्चों में नाराजगी अभी भी बनी हुई है। आंदोलन के बाद बच्चों को सुबह-शाम मिलने वाली दाल, रोटी, सब्जी, चावल में मामूली सुधार हुआ है। नाश्ते में उन्हें चाय के साथ अब मूंग-चने के रूप में अंकुरित अनाज मिलने लगा है, यानी 20 किलोमीटर बच्चे पैदल चलकर इंदौर कलेक्टर इलैयाराजा टी से मिले थे तो उन्हें अब पौष्टिक अंकुरित अनाज रोजाना की डाइट में शामिल हो पाया।


बच्चों का कहना- कोरोना से पहले थी बेहतर व्यवस्था

ज्ञानोदय छात्रावास में रहने वाले 12वीं के बच्चों का कहना है कि कोरोना काल से पहले भोजन व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त थी। उन्हें सुबह दूध मिलता था और खाने की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी थी। महीने में प्रति बच्चे को 500-500 ग्राम सेव-परमल, बोर्नविटा आदि भी छात्रावास के अंतर्गत मिलने वाली राशि से दिया जाता था। इस सत्र की शुरुआत से ही उन्हें दाल-सब्जी और रोटी की क्वालिटी खराब लग रही थी। 25 जुलाई के आंदोलन के बाद जायके में तो मामूली सुधार हुआ है, लेकिन छात्रावास समिति के खाते में अभी तक भोजन की राशि प्राप्त नहीं हुई है।

खाना खराब होने की शिकायत, एक समय के भोजन के लिए मिलते हैं केवल17 रुपए

छात्रावास में रहने वाले बच्चों के लिए सरकार की ओर से प्रतिमाह 1460 रुपए भोजन के लिए प्रस्तावित है। इसमें 10 प्रतिशत यानी 146 रुपए उन्हें पाकेट मनी के रूप में मिलते हैं। शेष 1300 रुपए भोजन और नाश्ते के लिए दिए जाते हैं। इससे छात्रावास की कमेटी भोजन की व्यवस्था करती है। इसमें दो समय के भोजन के लिए 17 -17 रुपए और 10 रुपए नाश्ते के लिए निर्धारित हैं। विडंबना इस बात की है कि आज के महंगाई के दौर में एक समय के भोजन के लिए बच्चों को 17 रुपए निश्चित है, जो राशि आधे से भी कम लगती है। इतना जरूर है कि सरकार की ओर से इन्हें एक रुपए प्रतिकिलो में गेहूं और चावल मिल जाता है। इसके अलावा किराना, दूध पौष्टिक आहार, सब्जियां, ईंधन और अन्य सामग्री की व्यवस्था इसी राशि में करना होती है, जो कि बेहद चुनौतीपूर्ण है।

बाजार में भोजन का यही मैन्यू 50 से 70 रुपए में

इंदौर जैसे महानगर में सामान्य भोजनालय में भी दाल-चावल, सब्जी-रोटी किसी व्यक्ति को लेना हो तो कम से कम 50 से 70 रुपए चुकाना होते हैं। ऐसे में ज्ञानोदय छात्रावास में सरकार की ओर से एक समय के भोजन के लिए 17 रुपए में गुजारा करना आसान नहीं है।

उधारी में हो रही भोजन व्यवस्था… सत्र शुरू हुए डेढ़ महीना बीता, नहीं मिले पैसे

ज्ञानोदय छात्रावास में रहने वाले बच्चों को भोजन व्यवस्था के लिए सरकार से सत्र शुरू होने के डेढ़ महीने बाद भी पैसे प्राप्त नहीं हुए हैं। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि यहां पर हॉस्टल वार्डन इन बच्चों को उधार का सामान लाकर भोजन, चाय-नाश्ते की व्यवस्था करा रहे हैं और खुद के वेतन भी खर्च करने की बात कर रहे हैं। हालांकि इतनी बड़ी राशि की व्यवस्था करना वार्डन के लिए भी आसान नहीं है।

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