खरी-खरी

जिस गांधी की नेता कसमें खाते हैं….वो केवल नोट और वोट पर ही नजर आते हैं…


गांधी पर सवाल… हो गया न बवाल… जुबां खोलने और गांधी के विरोध में बोलने वाले कालीचरण को जेल में ठूंस दिया गया… गोड़से की तारीफ करने की हिमाकत को जी-भरकर नोंचा गया… कांग्रेसी पुतले जला रहे हैं और भाजपाई हाथ ताप रहे हैैं… कांग्रेसी इनाम रखकर गांधी पर निष्ठा जता रहे थे तो भाजपाई बवाल को कैद में डालने की योजना बना रहे थे… दोनों दलों के दलदल से दूर खड़े आम लोग इस बवाल में अपने-अपने सवाल लेकर खड़े नजर आ रहे थे… कांग्रेसी गांधी की तस्वीर पर माला चढ़ाते हैं, लेकिन मंच से उतरते ही हिंसक हो जाते हैं… कांग्रेसी गांधी की पार्टी पर कब्जा जमाते हैं, लेकिन विचारों को नोंच डालते हैं… गांधी की नशाबंदी की मंशा कांग्रेस शासित राज्यों में नशे में डूब जाती है… शराब पैसा कमाने का जरिया बनाई जाती है… गांधी की स्वच्छता की मंशा भाजपा द्वारा पूरी की जाती है… गांधी की मुस्लिम कौम पर जताई निष्ठा कांग्रेसियों के वोट बैंक के काम आती है… गांधी का नाम इंदिरा से लेकर राहुल तक भुनाते हैं… लेकिन आचरण में कहीं गांधी नजर नहीं आते हैं… गोड़से को गांधी का हत्यारा माना जाता है, लेकिन गांधी का कत्लेआम तो हर नेता द्वारा किया जाता है… कहीं कोयला कांड तो कहीं शेयर घोटाला… कहीं स्पैक्ट्रम तो कहीं बोफोर्स की रिश्वत… गांधी कहीं नजर नहीं आते हैं… नजर आते हैं तो देश के नेताओं की तिजोरियों में रखे नोटों में… सारे देश से गांधी छीन-छीनकर नेताओं की जेब में सहेजे जाते हैं… पंूजीपतियों और उद्योगपतियों के मेहमान बनाए जाते हैं… आम आदमी गांधी के लिए तरसता नजर आता है… दस-बीस के नोटों से ऊपर गांधी का चेहरा ही नजर नहीं आता है… ऐसा गांधी-प्रेम देशभर में देखा जाता है, फिर कालीचरण उंगली उठाए तो उसका हाथ तोड़ दिया जाता है… इस सवाल के जवाब तक से परहेज किया जाता है कि देश की आजादी में केवल गांधीजी ही क्यों नजर आते हैं…चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, सुखराम क्यों आतंकी समझे जाते हैं… सुभाषचंद्र बोस क्यों नहीं पूजे जाते हैं… गोड़से को ही हत्यारा क्यों समझा जाता है.. खंजर तो हर उन हाथों में नजर आता है, जो गांधी का दिन-रात कत्ल करते हैं…और गांधी पर उठाए उन लोगों के सवाल भी जायज क्यों नहीं लगते हैं जो बंटवारे को नाजायज मानते हैं… केवल नेहरू और जिन्ना की लड़ाई टालने और नेहरू को कुर्सी पर बिठाने के लिए देश को अलग-अलग किया गया… अपने देश में धर्मनिरपेक्षता का नारा गुंजाया और हिंदुओं को पाकिस्तान में मरने के लिए छोड़ दिया गया… अहिंसा का नारा गुंजाने वाले उस एक फैसले ने लाशों के ढेर लगा दिए… नेहरू को देश सौंपने के लिए घर-घर में पाकिस्तान बना दिए…आज मुस्लिम कसमसा रहा है…हिंदू भी डरा-डरा नजर आ रहा है… छूत-अछूत तक को एक करने की मंशा रखने वाले गांधी ने भी इस आंधी की कल्पना नहीं की होगी, जो आजादी के 70 साल बाद भी देश की सहिष्णुता के चिथड़े उड़ा रही है… और हम सवाल उठाने वालों को जेल में ठूंस-ठूंसकर पतझड़ को समेटने की कोशिश में लगे हैं… पता नहीं नेता गांधी को कब तक नोट और वोट में समेटते रहेंगे और हम आजाद देश में भी गुलामी की जंजीरों से कब मुक्त हो सकेंगे…

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