हस्तिनापुर । उत्तर प्रदेश के चुनावों (UP Elections) में ‘हस्तिनापुर’ फैक्टर (Hastinapur factor) दशकों से मौजूद है (Has existed for Decades), लेकिन अब यह पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट है और इसने यहां चुनावी लड़ाई को और भी तेज कर दिया है। हस्तिनापुर एक आरक्षित सीट है। यह पहली बार चर्चा का क्षेत्र बन गया, जब कांग्रेस ने मॉडल और अभिनेत्री अर्चना गौतम को मैदान में उतारा है ।
2007 में बसपा के योगेश वर्मा जीते थे और मायावती ने सरकार बनाई थी। 2012 में समाजवादी पार्टी के प्रभु दयाल वाल्मीकि ने सीट जीती और समाजवादी पार्टी ने सरकार बनाई और 2017 में बीजेपी के दिनेश खटीक जीते और योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी। इससे पहले भी रुझान अपरिवर्तित रहा है। यही वजह है कि इस सीट पर कड़ा मुकाबला हुआ है।
भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक दिनेश खटीक को मैदान में उतारा है लेकिन भाजपा के एक अन्य नेता गोपाल काली उनकी उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में पार्टी इकाई दो नेताओं के बीच बंटी हुई है।समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर रालोद-सपा के संयुक्त उम्मीदवार योगेश वर्मा को मैदान में उतारा है। वर्मा की पत्नी सुनीता वर्मा मेरठ की मेयर हैं और इससे संतुलन उनके पक्ष में जाता है।
एक अनुभवी पत्रकार राकेश मणि ने कहा, “हस्तिनापुर के लोग लगातार बदलाव के लिए तरस रहे हैं। चूंकि पिछले दशकों में इस निर्वाचन क्षेत्र में कोई बड़ा विकास नहीं हुआ है और यह उपेक्षित है, मतदाता बेहतर भविष्य की उम्मीद में पार्टियों और उम्मीदवारों को बदलते रहते हैं। यह प्रवृत्ति हो गई है और अब एक विश्वास में बदल गया कि जो हस्तिनापुर जीतता है, वह लखनऊ में सरकार बनाता है।”
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