उज्जैन। देश में महिलाओं की निजता, गरिमा, सम्मान, सुरक्षा, सशक्तिकरण और अधिकारों के मुद्दे पर केन्द्र से लेकर राज्यों की सरकारें तक बड़ी-बड़ी बातें और नारे तो खूब देती हैं, लेकिन यह वास्तव में महिला मुद्दों, उनकी बुनियादी जरूरतों को लेकर कितनी संजीदा हैं, इसकी हकीकत शहर के थानों में देखी जा सकती है। थानों में महिला पुलिसकर्मियों को एक अदद टॉयलेट तक नसीब नहीं है। यानी न तो महिला पुलिसकर्मियों की सेहत का ध्यान रखा जा रहा है, न निजता का, न गरिमा का।
जानकारी के अनुसार मौजूदा महिला पुलिसकर्मियों को ही थानों में बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रहीं। प्रदेश के 183 थानों में अलग से -टॉयलेट ही नहीं हैं। उज्जैन शहर के 10 थानों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं हैं। सबसे बुरी स्थिति जीआरपी थानों की है। जीआरपी और आरपीएफ थाने में भी महिला टॉयलेट नहीं हैं। शहर सहित पूरे प्रदेश में 1150 थाने संचालित हैं। टायलेट की सुविधा न मिलने के कारण महिला पुलिसकर्मी कम पानी पीती हैं और शरीर में पानी की कमी के कारण कई बीमारियों का शिकार हो जाती हैं।
अधिकांश थानों में कॉमन टायलेट्स
शहर के लगभग हर थाने में महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती है, लेकिन उनके लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं है। कई थानों में महिला पुलिसकर्मियों के सैल्यूट करते हुए पोस्टर्स दिख जाएंगे, जिन पर लिखा होगा कि ‘हम उन्हें सलाम करते हैं, जो कानून का सम्मान करते हैं,Ó लेकिन पुलिस तंत्र खुद इन महिलाओं का कितना सम्मान करता है, ये महिला शौचालयों का न होना बताता है। अधिकांश थानों में कॉमन टायलेट्स हैं, जिनका पुलिस वालों से लेकर उसकी अभिरक्षा में रखे गए आरोपी तक सभी करते हैं। ये टायलेट्स महिला पुलिस कर्मियों, महिला फरियादियों या अभिरक्षा में रखी गई महिलाओं के लिए कितने सुरक्षित होते हैं, स्वत: ही अनुमान लगाया जा सकता है।
यह है थानों की स्थिति
उज्जैन, इंदौर, भोपाल में ऐसे थाने ज्यादा हैं, जहां महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट नहीं हैं। उज्जैन के 32 थानों में से 10 में तो अलग टॉयलेट नहीं हैं। भेरूगढ़, जीवाजीगंज, नानाखेड़ा, चिंतामण, नागझिरी, कोतवाली, पंवासा, कोतवाली, अजाक थाने में, यातायात थानों में महिला पुलिसकर्मियों के लिए उक्त सुविधा नहीं है।
महिला कर्मी हो रहीं बीमार
अलग टायलेट्स की व्यवस्था न होने से महिला पुलिस कम पानी पीती हैं, ताकि बिना किसी व्यवधान के ज्यादा समय तक ड्यूटी करने की हालत में रह सकें, इससे वह कई तरह की बीमारियों की शिकार हो रही हैं। ऐसा नहीं है कि महिला पुलिसकर्मियों की इन दिक्कतों से आला अधिकारी अनजान हों, लेकिन इन व्यवस्थाओं को करने की दिशा में किसी का ध्यान नहीं जाता। न ही यह पता किया जाता है कि कितने थानों में सुविधा है, कितनों में यह सुविधा करानी है।
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