देश व्‍यापार

अरब सहित ये पांच देश कर रहे भारत से गेहूं की डिमांड, जानिए वजह

नई दिल्‍ली। हाल ही में पैगंबर मोहम्मद विवाद (Prophet Mohammad Row) के बाद भारत को मुस्लिम देशों खासकर खाड़ी देशों (Gulf Countries) में इसका विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। यहां तक कि इस विवाद को लेकर न सिर्फ भारत में हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, बल्कि कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से बाहर भी प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझना पड़ा है। कई खाड़ी देशों से तो ऐसी भी खबरें आईं कि वहां भारतीय सामानों का बहिष्कार (Boycott Indian Goods) किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न कारणों से दुनिया के सामने उपस्थित खाद्य संकट (Food Crisis) के बीच ऐसे पांच देशों ने भारत से गेहूं भेजने की रिक्वेस्ट की है, जहां भारत के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे।

बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पूरे विश्वभर में मप्र के गेहूं की मांग बढ़ गई है। मध्‍यप्रदेश प्रदेश से सहित अन्‍य प्रदेशों से लाखों टन गेहूं निर्यात हो चुका है। यह गुजरात और आंध्रप्रदेश के बंदरगाहों से बांग्लादेश, इंडोनेशिया, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम भेजा गया है। इसमें सर्वाधिक 97 हजार 887 टन गेहूं इंदौर से निर्यात किया गया है। इसके अलावा जबलपुर, उज्जैन, हरदा, छिंदवाड़ा और दतिया से व्यापारियों ने गेहूं भेजा है।



मिस्र, फिलीपिंस, जिम्बाब्वे सहित अन्य देशों में भी निर्यात की संभावनाओं पर सरकार काम कर रही है। पिछले साल मध्य प्रदेश से कुल पौने दो लाख टन कृषि उपज और उससे जुड़े उत्पाद निर्यात हुए थे। इसमें भी चावल की मात्रा सर्वाधिक एक लाख 27 हजार टन थी। विदेश में बढ़ रही गेहूं की मांग को बड़ा अवसर मानते हुए शिवराज सरकार ने निर्यात बढ़ाने पर पूरा जोर लगा दिया है।

आपको बता देश कि सरकार का मकसद है कि मध्य प्रदेश के गेहूं की मांग विदेश में बन जाए, जिससे निर्यात का रास्ता खुल जाएगा। इसका लाभ किसानों के साथ-साथ सरकार को भी होगा। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अभी तक बड़ी कंपनियां मंडियों से गेहूं खरीदकर अपने स्तर पर निर्यात करती थीं। पहली बार सरकार अपने स्तर पर इसे प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए मंडी शुल्क में छूट देने के साथ रेलवे की रैक और बंदरगाहों पर स्थान उपलब्ध कराने की व्यवस्था कराई गई है। 26 लाख टन गेहूं के लिए रैक पाइंट पर भंडारण की व्यवस्था बनाई जा चुकी है। अभी तक 87 रैक गेहूं बांग्लादेश, इंडोनेशिया, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, विएतनाम भेजा जा चुका है। खाद्य, नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहूलाल सिंह ने बताया कि निर्यात के लिए विभिन्न कंपनियों ने दो हजार से ज्यादा रेलवे रैक के लिए मांग पत्र भेजे हैं। दक्षिण अफ्रीका, मोजांबिक और जिम्बाब्वे के आयोजकों को गेहूं के लागत पत्रक भी भेज दिए हैं।

भारत को मिला आपदा में अवसर
रूस और यूक्रेन युद्ध से उपजे खाद्य संकट के समाधान के लिए भारत आगे बढ़कर काम कर रहा है। रूस और यूक्रेन दुनिया में गेहूं के निर्यात के मामले में अग्रणी देश हैं लेकिन दोनों के बीच युद्ध ने वैसे देशों के सामने चुनौती पैदा कर दी है जो उनसे गेहूं खरीदते हैं। ऐसे में उन सभी देशों को भारत में संभावनाएं दिख रही हैं। अफ्रीकी देश मिश्र की ओर से भारत के गेहूं को अपने यहां आयात की मंजूरी दिए जाने के बाद अब भारत ने दूसरे देशों में भी गेहूं निर्यात करने की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है।

रूस यूक्रेन युद्ध से उपजे वैश्विक संकट से पैदा हुई मांग की बीच भारत ने इस साल (2022-23 के दौरान) कुल 1 करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य तय किया है। एपीडा के चेयरमैन एम अंगमुथु के मुताबिक अकेले मिश्र को 30 लाख टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है।
बांग्लादेश के अलावा अन्य देशों को देखें तो इंडोनेशिया दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा खरीदार है। साल 2020 में इस देश ने यूक्रेन से सबसे ज्यादा 543 मिलियन डॉलर का गेहूं खरीदा था. वहीं भारत ने इस देश को 2021-22 में करीब 105 मिलियन डॉलर गेहूं का निर्यात किया था।

आंकड़ों पर गौर करें तो बीते साल भारत ने बांग्लादेश को 40.8 लाख टन गेहूं का निर्यात किया. नोमुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कुल गेहूं निर्यात का 55.9 फीसदी अकेले बांग्लादेश खरीदता है. इसके बाद श्रीलंका की 7.9 फीसदी, संयुक्त अरब अमीरात की 6.9 फीसदी, इंडोनेशिया की 5.9 फीसदी, यमन की 5.3 फीसदी और फिलीपींस की 5.1 फीसदी हिस्सेदारी है।

दरअसल 2020-21 तक दुनिया भर में हो रहे गेहूं के व्यापार में भारत का हिस्सा बहुत कम रहा था। पिछले साल अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते हुए भारत ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था जिसकी कीमत करीब 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। हालांकि इसमें से 50 फीसदी गेहूं केवल बंगलादेश को निर्यात किया गया था।

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