ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

ये नहीं समझ पाए कि डर के आगे जीत है
कांग्रेसी इतने डरपोक निकलेंगे, ये किसी को समझ नहीं आया। बावड़ी हादसे में जब सुरेश पचौरी को लेकर कांग्रेसी घटनास्थल पर पहुंचे तो उन्हें घायलों से मिलने के बहाने एक घायल कांग्रेसी के घर ले जाया गया। इसमें इसी क्षेत्र के एक कांग्रेसी का स्वार्थ था। बाद में एक सिंधी परिवार में भी ले जाया गया, जहां भी एक कांग्रेसी ने व्यक्तिगत रुचि दिखाई, लेकिन उन्हें पटेल परिवार में ले जाने की किसी में हिम्मत नहीं हुई। जिनके यहां गमी हुई, उनके घर के सामने ही पचौरी ने कार खड़ी की थी, लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ किसी भी विधायक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे उन्हें शोक संतृप्त परिवार में ले जाए। किसी ने कह दिया था कि अगर उन्हें ले गए तो विरोध हो सकता है। इसी डर से पचौरी उन घरों में नहीं गए, जबकि कांग्रेसी उन्हें ले जाते तो लोगों में थोड़ा बहुत तो सहयोग का भाव आता। कांग्रेस में गुजराती पटेल नेता भी हैं, लेकिन उन्होंने भी इस मामले को अपने से दूर रखा और समाज के साथ खड़े रहे।


युवक कांग्रेस में दो फाड़
युवक कांग्रेस में चल रही गुटबाजी रूकने का नाम नहीं ले रही है। इंदौर के कार्यकारी अध्यक्ष स्वप्निल कामले ने प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया की बात मानकर सांसद कार्यालय का घेराव कर दिया, लेकिन अपने कार्यकर्ताओं को संरक्षण देने या मदद करने के लिए शहर अध्यक्ष रमीज खान नहीं पहुंचे। रमीज और स्वप्निल की आपस में लंबे समय से नहीं बन रही है और इसी का खामियाजा शहर की युकां को भुगतना पड़ रहा है।

हावी हेै परिवार की छवि
साक्षी शुक्ला को भले ही महिला कांग्रेस की कमान दे दी गई हो, लेकिन वे शुक्ला परिवार की छवि से बाहर नहीं आ पा रही है। दूसरी ओर पुरानी कांग्रेस नेत्रियां साक्षी को पीछे रखने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। साक्षी अभी तक अपनी टीम को लेकर भी निर्णय नहीं ले सकी हंै। पुरानी अध्यक्षों की तरह ही वे पद लेकर केवल औपचारिकता ही निभाती देखी जा रही है। अभी कई आयोजनों में साक्षी अपने साथ गिनी-चुनी महिलाओं के साथ ही देखी गई।

युवा मोर्चा भारी पड़ा अल्पसंख्यक मोर्चे पर
पिछले दिनों युवा मोर्चा पदाधिकारी और अल्पसंख्यक मोर्चा पदाधिकारी के बीच कोठारी मार्केट चौराहे पर विवाद हो गया था। इस मामले में युवा मोर्चा के नगर अध्यक्ष सौगात मिश्रा प्रकरण दर्ज कराके ही माने। चूंकि मामला वकीलों से जुड़ा था, इसलिए उन्होंने अपनी रणनीति के तहत बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष दिनेश पांडे को बुलवा लिया। मालूम पड़ा कि जिससे विवाद हो रहा है, वह भी अल्पसंख्यक मोर्चें में ही पदाधिकारी हैं। कई कयास होते रहे कि मामला समझौते में निपट जाए, लेकिन युवा मोर्चा तो युवा मोर्चा ही ठहरा। मिश्रा थाने से जब तक नहीं उठे, तब तक उनके पदाधिकारी को फरियादी बनाकर एफआईआर नहीं हुई, जबकि अल्पसंख्यक मोर्चा असहाय बना रहा। इसके पीछे राजनीतिक टकराहट भी सामने आई, लेकिन तब तक युवा मोर्चा थाने से अपना काम करके निकल चुका था।


फेल करने में लगे हैं कांग्रेस प्रभारी को
अध्यक्ष नहीं होने के कारण किसी भी दिशा में दौड़ रही शहर की कांग्रेसी कमान फिलहाल महेन्द्र जोशी के हाथ में है, जिन्हें संगठन ने प्रभारी भी बना रखा है, लेकिन कुछ कांग्रेसियों को उनका स्टाइल पसंद नहीं आ रहा है। बाकलीवाल के समय जिन लोगों की गांधी भवन में तूती बोलती थी, वे भी अब दूर होने लगे हैं। कुछ लोग जोशी को फेल करने में लगे हैं, क्योंकि जोशी संगठन का डंडा लेकर चल रहे हैं। वैसे जोशी पहले पुलिस में रहे हैं और उसी स्टाइल में वे अपना काम भी करते हैं।

सनी और विवेक लड़ पड़े
रीगल तिराहे पर केन्द्र सरकार के विरोध में आंदोलन था और हर नेता को बोलने का मौका दिया जा रहा था। विवेक खंडेलवाल को बोलने के लिए बुलाया तो बीच में ही सनी राजपाल देवेन्द्रसिंह यादव से कुछ बात करने लगे। एक-दो बार तो विवेक कुछ नहीं बोले और बाद में माइक झटकते हुए कहा कि आप अपनी बात कर लो, मैं बाद में बोल लूंगा। यह देख कांग्रेसी नेता भी सकते में आ गए और विवेक को रोका, लेकिन विवेक वहां से दूर जाकर खड़े हो गए। बाद में कुछ नेता उन्हें बुलाने भी गए, लेकिन वे नहीं आए।

अस्पताल में हंसी-ठिठौली कर रहे थे कांग्रेसी
बावड़ी हादसे में घायलों से मिलने शनिवार को कमलनाथ इंदौर आए थे। अपने नेता को शक्ल दिखाने के चक्कर में कुछ कांग्रेसी पहले ही अस्पताल की उस मंजिल पर पहुंच गए, जहां घायल भर्ती थे। थोड़ी ही देर में उनके हंसी-ठिठौली करते हुए वीडियो वायरल हो गए। जहां मरीज दर्द से कराह रहे थे, वे उनका हालचाल पूछने की बजाय हंसी-ठिठौली कर रहे थे। भाजपाइयों को मौका मिल गया और उनके वीडियो सोशल मीडिया पर भी दौडऩे लगे। इनमें एक का तो पहले ही एक मामले में वीडियो वायरल हो गया था, जिसकी सफाई वे अभी तक दे रहे हैं। दूसरे एक गांव के बड़े नेता और जनप्रतिनिधि थे तो तीसरे एक विधानसभा के दावेदार भी थे, जहां हादसा हुआ। अब इसे कांग्रेसियों की मरती संवेदनशीलता कहे या फिर घायलों को मरहम लगाने के नाम पर की गई खानापूर्ति।

बावड़ी हादसे में मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों को संरक्षण देने का आरोप झेल रहे सांसद शंकर लालवानी चार दिन से इस मामले में चुप हैं। लोग आहत तो थे ही, लेकिन दूसरे ही दिन सिंधी समाज के कार्यक्रम में भोपाल पहुंचे लालवानी के फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिए गए। इस मामले में सिंधी समाज में ही दो फाड़ हो गई है, जो आरोपों का तुरंत जवाब सोशल मीडिया पर दे रहा है और राजनीतिक पेचवर्क में लगा है। -संजीव मालवीय

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