ज़रा हटके देश

रोजाना 450 से ज्यादा आवारा पशुओं का पेट भरती है यह महिला, 10 साल से कर रही ऐसा नेक काम

नई दिल्‍ली। अक्सर आपने आवारा पशुओं को सड़कों पर खाने की तलाश में भटकते देखा होगा. यह आवारा पशु खाने के लिए यहां वहां भटकते हैं और लोगों द्वारा भगाए जाते हैं. गाय हो या कुत्ते, इनके रहने का कोई ठिकाना नहीं होता. कभी उन्हें किसी का फेंका हुआ खाना मिल जाता है तो पेट भर जाता है, लेकिन यह आवारा पशु (stray animal) अधिकतर समय अपना पेट नहीं भर पाते हैं. कई पालतू जानवरों (pets) को तो लोग पाल लेते हैं. जिससे उन्हें समय पर खाना, रहने का ठिकाना मिल जाता है, लेकिन दूसरे पशुओं की तरह आजादी नहीं मिल पाती है. और आवारा पशुओं के पास आजादी तो है, लेकिन पेट भर खाने का ठिकाना नहीं जो उनके कमजोर होने या उनकी मौत का कारण बनता है.

हमने आए दिन सड़कों पर बैठी गायों को भारी वाहनों की चपेट में आते देखा है. देश भर में रोजाना कई आवारा पशुओं की मौत हो जाती है. इसके दो कारण हैं, पहला तो रहने का ठिकाना नहीं होने के चलते सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों की चपेट में आ जाना या फिर भूख के कारण मौत का शिकार हो जाना. लेकिन दिल्ली की रहने वाली दिव्या पुरी ने इस तरह के आवारा पशुओं को खाना खिलाने का बीड़ा उठाया है. वह हर रोज 450 से अधिक आवारा पशुओं को खाना खिलाती हैं. उनके इस सराहनीय कदम से रोज कई आवारा पशुओं का पेट भरता है.



2012 में जानवरों को खाना खिलाना शुरू किया
दिव्या पुरी साउथ दिल्ली (South Delhi) की रहने वाली हैं. वह एक एमएनसी में काम करती हैं. 36 साल की दिव्या (Divya) हर दिन करीब 4 से 5 घंटे का समय निकाल कर आवारा पशुओं के लिए काम करती हैं. दिव्या बताती हैं कि उनके माता–पिता और उन्होंने साल 2004 में घर पर ही कुछ आवारा पशुओं को खाना खिलाना शुरू किया था. फिर धीरे-धीरे पशुओं की संख्या बढ़ती गई. साल 2012 में उनकी मां ने एक किचन शुरू किया. इसमें खाना बनाकर उन्होंने कई आवारा पशुओं जैसे कुत्ते, बिल्ली, गाय को खाना खिलाना शुरू किया. शुरुआत में पशुओं की संख्या कम थी. जितने आवारा जानवर आस-पास मिल जाते थे उन्हें खाना खिला दिया करते थे. कोशिश ये रहती थी कि आस-पास कोई भी कुत्ता, गाय या बिल्ली भूखी न रहे. फिर धीरे-धीरे पशुओं की संख्या बढ़ने लगी.

पिताजी के मृत्यु के बाद किचन शुरू किया
दिव्या कहती हैं कि समय के साथ हम ज्यादा जानवरों (animals) को खाना खिलाने लगे. हमने आस-पास जाकर खाना खिलाने का काम शुरू किया तो हमने 8 किमी के दायरे में किसी भी आवारा पशु को भूखा न रहने देने की कोशिश की. इस काम की शुरुआत दिव्या की मां ने की थी. वह बताती हैं कि जानवरों को खाना खिलाने का लगाव तो शुरू से ही था. हमारे घर में भी एक डॉग था. जिसके चलते हमारे परिवार का जानवरों से काफी लगाव था. उसके बाद साल 2012 में कैंसर (cancer) के कारण पिताजी की मृत्यु हो गई. जिसके कारण घर में काफी उदासी भरा माहौल हो गया था. डिप्रेशन से उबरने के लिए मां ने इस काम की शुरुआत की थी. मां का मानना था कि सभी लोगों के जीवन में काफी दुख हैं, अगर हम किसी की मदद करके उसकी परेशानी कम कर सकते हैं तो हमें यह करना चाहिए. इसके बाद मां ने आस-पास के सभी आवारा पशुओं का पेट भरने का जिम्मा उठाया.

खाने के अलावा घायल पशुओं का करवाती हैं इलाज
दिव्या बताती हैं, “हम साल 2012 से लगातार कई आवारा पशुओं को खाना खिला रहे थे. लेकिन हमने ज्यादा से ज्यादा पशुओं की मदद करने के उद्देश्य से साल 2017 में पिताजी के नाम से एक संस्था की शुरुआत की. उनकी संस्था का नाम ‘करण पुरी फाउंडेशन’ है. जिससे कि उनकी मां द्वारा शुरू की गई इस पहल को बढ़ा सकें. इसमें उनके साथ 4 कर्मचारी काम करते हैं. जो खाना बनाने से लेकर उसे जानवरों को खिलाने जाते हैं. यदि कोई घायल जानवर मिलता है तो उसके इलाज के लिए उसे हॉस्पिटल भी ले जाते हैं.”

8 किमी के दायरे में आवारा पशुओं की भूख मिटाते हैं
दिव्या बताती हैं कि उनका उद्देश्य बेजुबान जानवरों की भूख मिटाना है. वह अधिक से अधिक पशुओं को खाना खिलाने के लिए 8 किमी के दायरे में काम करती हैं. उनके साथी आवारा पशुओं के ठिकानों पर खाना खिलाने जाते हैं. जहां रोजाना लगभग 450 से ज्यादा आवारा कुत्तों, गायों और बिल्लियों का पेट भरते हैं. उसके बाद बीमार या घायल गाय या कुत्तों को गाड़ी में बैठाकर अस्पताल पहुंचाते हैं और उनका इलाज भी करवाते हैं. दिव्या कहती हैं कि सिर्फ खाना खिलाने में हर महीने लगभग 1 लाख 40 हजार रुपये का खर्च आता है. इसके अलावा पशुओं के इलाज का खर्च अलग है.

कोरोनाकाल में मां की मृत्यु हो गई
कोरोनाकाल में जब देश में लॉकडाउन चल रहा था, तब दिव्या की मां ने आवारा जानवरों का पेट भरने के लिए लंबी यात्रा की थी. उसके बाद दिव्या और उनकी मां कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना पीड़ित हो गए थे. जिसके बाद दिव्या ने तो कोरोना से जंग जीत ली. लेकिन 13 दिनों तक आईसीयू में रहने के बाद उनकी मां चल बसीं. उस समय भी उन्हें पशुओं के खाने को लेकर चिंता थी. उनकी मां कहती थीं कि इन आवारा पशुओं के बारे में कोई नहीं सोचता है इसलिए हमें इनकी मदद करते रहना चाहिए.

बेजुबानों को नुकसान ना पहुंचाएं
दिव्या कहती हैं कि प्रकृति ने सबको समान अधिकार दिए हैं. इंसान हो या जानवर सबको जीने का अधिकार है. यदि लोग आवारा जानवरों को पसंद नहीं करते हैं तो न करें. लेकिन इन बेजुबानों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार न करें. क्योंकि इन बेजुबानों को भले ही कोई नहीं चाहता हो लेकिन भूखे भटकते जानवरों को क्रूरता से मारना बेहद शर्मनाक है. लोग रोजाना कई जानवरों पर गाड़ियां चढ़ा देते हैं. उन्हें मार कर उनके हाथ, पैर तोड़ देते हैं. इस तरह की क्रूरता ना करके लोग जानवरों के साथ अच्छा व्यवहार करें. पृथ्वी सिर्फ मनुष्यों के लिए नहीं है बल्कि प्रकृति ने जितने जीव बनाए हैं उन सबके लिए है. यदि संभव हो तो इन बेजुबानों की मदद करनी चाहिए जिससे कि भूख से इनकी मृत्यु न हो और घायल पशुओं के इलाज में उनकी मदद करने से वह इस तरह तड़प कर न मरें.

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