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आज है शनि प्रदोष व्रत, हिंदू धर्म में विशेष महत्‍व, जानें पूजा मुहूर्त व कथा

आज यानि 24 अप्रैल को मनाया जा रहा है शनि प्रदोष व्रत । शनिवार के दिन पड़ने की वजह से इस व्रत को शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat ) कहा जा रहा है। शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव और शनिदेव (Shani Dev) को समर्पित माना जाता है। भक्त आज देवो के देव महादेव (Shiva) और शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा (Worship) अर्चना कर रहे हैं। प्रदोष व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु और संतान प्राप्ति की कामना के साथ रखा जाता है। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल (Pradosh Kaal) में अधिक फलदायी होती है। आइए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा।।।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व
वैसे तो सभी प्रदोष व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम होते हैं, लेकिन शनि प्रदोष व्रत का विशेष महत्व (Special importance) होता है। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से नि:संतान लोगों को या फिर नवदंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनि प्रदोष (Shani Pradosh) व्रत करने से संतान सुख प्राप्त होता है।


शनि प्रदोष व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त:
चैत्र शुक्ल त्रयोदशी तिथि, 24 अप्रैल 2021, शनिवार
त्रयोदशी तिथि आरंभ- 24 अप्रैल 2021, शनिवार, शाम 7 बजकर 17 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्त- 25 अप्रैल 2021, रविवार, शाम 04 बजकर 12 मिनट पर
पूजा का समय- 24 अप्रैल, शनिवार, शाम 07 बजकर 17 मिनट से रात 09 बजकर 03 मिनट तक

शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा:
शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा (Pilgrimage) पर निकल पड़े। अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु (monk) ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा।

साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और भगवान शंकर की यह वंदना बताई।
भगवान शंकर की वंदना –
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधि नमस्कार।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार।
विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।

दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ ।

नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।

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