खरी-खरी

जो है बिकाऊ कैसे बनेंगे जिताऊ

क्रिकेट को बाजार बनाओगे…खिलाडिय़ों की खुलेआम बोलियां लगवाओगे… क्रिकेटरों को खरीदने-बेचने लग जाओगे…जांबाज खिलाडिय़ों को मैदानों में सड़ाओगे और देश के लिए थकाऊ और बिकाऊ खिलाडिय़ों को खिलाओगे तो जीत कैसे पाओगे…यह विश्वासघात ही नहीं, क्रिकेट प्रेमियों पर आघात भी है… हमने अपने पारंपरिक खेल फुटबॉल, बेसबॉल, खो-खो, कबड्डी सभी को तो खो दिया…केवल एक ही खेल तो रह गया है खेलप्रेमियों के स्वाभिमान और देश के सम्मान के लिए…उसे भी बिकाऊ बना डाला… खेलप्रेमियों को आंसू में डुबो डाला…हम खेलते कम हैं, हारते ज्यादा हैं…गम हारने का नहीं, गम इस बात का है कि वो हारने के लिए खेलतेे हैं… और हम उन्हीं गिने-चुने खिलाडिय़ों को आजमाते हैं, जो देश को पलीता लगाते हैं…उन्हीं खिलाडिय़ों को कोच बनाते हैं, जो थककर घर बैठने के लायक हो जाते हैं… लेकिन क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की मेहरबानी से कमाई में जुट जाते हैं… थके बल्ले के खिलाड़ी राहुल द्रविड़ कोचगीरी के नाम पर हर साल 10 करोड़ की फीस जुगाड़ रहे हैं और मैच हारने-हराने के कीर्तिमान बना रहे हैं… क्रिकेट को राजनीति का शिकार बना रहे हैं… जो क्रिकेट देशप्रेम की जगह ले चुका है…जिस क्रिकेट की हार-जीत से देश का गर्व और सम्मान जुड़ चुका है…जिस क्रिकेट के खिलाडिय़ों को देश सर पर बिठाता है, उस क्रिकेट का पालन-पोषण, संचालन एक ऐसी क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जैसी संस्था कर रही है, जो पूरी तरह कारोबारी और व्यापारी बन चुकी है… यह संस्था क्रिकेट की शोहरत की बोली लगाती है और लोगों की भावनाएं बेचकर पैसा कमाती है…यही संस्था क्रिकेट को सट्टा बाजार बनाती है…खिलाडिय़ों को खरीदी-बिक्री कर उनसे सौदागीरी करवाती है… उनके खेल को हार-जीत के जुए में तब्दील कर डालती है…चैनलों और अखबारों में विज्ञापन छपवाए जाते हैं और क्रिकेट के सट्टे के लिए लोग उकसाए जाते हैं और देश की सरकार न केवल इस शातिर गुनाह को संरक्षण देती है… बल्कि देश को भी बर्बाद करती है… क्रिकेट के इन कारोबारियों को न केवल हर टैक्स में छूट दी जाती है, बल्कि इनसे इनकम टैक्स तक नहीं वसूला जाता है… खेल के नाम पर हार का बट्टा लगाने वाला क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड केवल मैच के अधिकार चैनलों को देने और विज्ञापन राशि के एवज में ही इतने हजारों करोड़ की कमाई करता है, जितना बजट देश की गोवा-मणिपुर की सरकार का नहीं होता है…यही बोर्ड अपनी ईमानदारी दिखाने के लिए मैच में हार पर केवल खिलाडिय़ों की फीस काटता है और देश के सम्मान और स्वाभिमान को हार की भेंट चढ़ाने वाला शातिर खिलाड़ी मुस्कराता है, क्योंकि उसकी मैच की फीस उसे विज्ञापनों से मिलने वाली राशि के मुकाबले मूंगफली भी नहीं जीरे की तरह होती है…मैदान के खेल के पीछे चलने वाला क्रिकेट के बाजारू खिलाडिय़ों और उसकी संस्था के आकाओं का यह खेल देश की भावनाओं को ऐसा बाजार बना चुका है, जहां से क्रिकेटप्रेमियों को मायूसी, मानसिक पीड़ा और हारने का दिल तोडऩे वाला दर्द मिलता रहेगा। काश… जीत पर खिलाडिय़ों को बधाई देने और सर पर बिठाने वाले प्रधानमंत्री हार पर लताड़ लगा पाते…ईमानदारी का ढोल पीटने वाली सरकार क्रिकेट की बेईमानी पर रोक लगा पाती…बिकते क्रिकेट और लुटती भावनाओं के साथ न्याय कर पाती…सट्टे की भेंट चढ़ते खेल के इस मैल को धो पाती…

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