
सरकार (Government) के लाइसेंस (License) पर दवाइयां (medicines) बनती हैं… गुणवत्ता की जांच से लेकर समय-समय पर सैंपल लेने की जवाबदारी सरकारी विभागों की रहती है… हर दवाई का परीक्षण होता है… जिन्हें विभाग प्रमाणित करता है, वही दवाई बाजारों में दुकान पर मिलती और बिकती है… फिर यदि कोई डॉक्टर उन्हीं दवाइयों को लिखता है और उस दवाई से कोई मरता है तो किसी डॉक्टर का क्या कसूर बनता है… मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के परसिया गांव के सरकारी डॉक्टर और जाने-माने बाल चिकित्सक प्रवीण सोनी को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया कि उन्होंने बच्चों को खांसी-सर्दी होने पर वो कफ सिरप लिखकर दिया, जिसे बनाने और बेचने का लाइसेंस सरकार ने दिया…वो तो गनीमत रही कि सरकार ने उन बच्चों के मां-बाप को जेल नहीं भेजा, जिन्होंने अपने बच्चों को वो दवा पिलाई …उस दुकानदार को जेल में नहीं ठूंसा, जिसने यह दवाइयां बेचीं…जितना दोष डॉक्टर का है उतना ही उसके मां-बाप का है… उतना ही दुकानदार का है… डॉक्टर ने दवाई बनाने वाले पर और लाइसेंस देने वाली सरकार पर भरोसा किया तो मां-बाप ने डॉक्टर पर किया और मरने वाले बच्चों ने अपने मां-बाप पर किया…इस मामले में जानलेवा दवाई बनाने वाली कंपनी जांच के झूले में झुलाई जा रही है… लाइसेंस देने वाले अधिकारियों के नाम-पते तक लापता हैं और जिम्मेदार अधिकारी दवाइयों के सैंपल लेने के जिम्मेदार विभाग के कुछ लोग कुछ दिनों के लिए निलंबन की हवा खाएंगे…घर बैठकर बिना काम की आधी तनख्वाह खाएंगे और फिर बहाल होकर घर चले जाएंगे… यह तो वो मामला था, जहां मौतों की गिनती हो गई…जानलेवा कफ सिरप तो बरसों से चल रहा है… बाजार में बिक रहा है… मौत का घूंट बन रहा है… पता नहीं कितने बच्चों को निगल चुका है…मध्यप्रदेश से लेकर राजस्थान में जब चंद दिनों में मौत चीत्कार बनी तो दो-चार बच्चों से शुरू हुई अर्थियां 19-20 तक पहुंच गईं…तो इतने सालों में यह जहर कितने बच्चों की जान ले चुका होगा…वैसे भी हमारे यहां गरीबों की मौत गिनतियों में नहीं होती है…दवा माफियाओं का यह गिरोह इतना बलशाली है कि वो मिनटों में सरकार खरीदता है और सरकार के बोझ से अधिकारी दबता है… चढ़ावा उसे भी चढ़ता है…फिर जब बवाल मचता है तो फंदा डॉक्टर के गले में ही डलता है… वैसे भी इस देश में जान की कीमत दो कौड़ी की नहीं है… भारत ऐसा देश है, जहां विदेशों में बनने वाली दवाइयों का मेडिकल ट्रायल करने के लिए लाइसेंस दिए जाते हैं और जो डॉक्टर इन दवाइयों का मेडिकल टेस्ट अपने मरीजों पर करता है उसे लाखों रुपया इन ड्रग बनाने वाले द्वारा बाकायदा चेक से दिया जाता है…इस मेडिकल ट्रायल में मरीज की जान जाए या वो विकलांग हो जाए या जीवनभर के लिए किसी बीमारी में घिर जाए उस त्रासदी से सरकार का कोई लेना-देना नहीं होता है… मरीज को कोई मुआवजा नहीं मिलता है… कोई मरे-गड़े, मुर्दा बने हमारे लोग अंतरराष्ट्रीय बाजार का मोहरा बनें…जब वो सब जायज है तो एक-दो हजार फिट के कमरे में ड्रम में कफ सिरप बनाने वाले और कई मौतों पर भी आरोपी तक नहीं बनने वाले अपराधी कैसे हो सकते हैं… कसूर उनका है, जो बीमार पड़ते हैं…भूखे रहकर डॉक्टर की फीस जुटाते हैं…दवाइयां खरीदकर लाते हैं और अपने बच्चों की लाशें उठाते हैं और इस बात का अंत पाते हैं कि जब बच्चा ही नहीं रहा तो बीमारी कैसे रहेगी…मौत की यह कहानी ऐसे ही चलती रहेगी…
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