खरी-खरी

परिवार की भावनाओं पर यह कैसी चोट पहुंचाई…पढऩे के लिए शहर में आई और करा दी जगहंसाई…

क्या करें मां-बाप… बच्चों का भविष्य सुधारें तो वर्तमान बिगडऩे की आशंका और वर्तमान को संभालें तो भविष्य का अंधेरा… एक बेटी को पढ़ाने के लिए भेजा और उसी ने पिता और परिवार से पैसे ऐंठने के लिए खुद के अपहरण का षड्यंत्र रच डाला… पिता जिन बच्चों का भविष्य संवारने के लिए जी-जान लगाते हैं… अपने कलेजे के टुकड़ों के लिए साधन- सुविधाएं जुटाते हैं… वो आधुनिकता की चकाचौंध में ऐसे डूब जाते हैं कि चंद पलों की खुशियों के लिए भविष्य तबाह कर डालते हैं… यह सब संगत की विसंगति है… परिवार जब छूट जाता है… बच्चा खुद को आजाद पाता है तो ऐसे दरिया के हवाले हो जाता है, जहां डुबाने वाला समंदर भी है और तैराने वाली नदियां भी… जो जिस धार में बह जाता है वह उसका मुकाम बन जाता है… ऐसे में परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं… उस धार पर, उसकी संगत पर निगाहें जरूरी हो जाती हैं…शिक्षा विस्तार का साधन है… शिक्षा दिशा का आधार है… लेकिन दिशा यदि दिशाहीन हो जाएगी तो विस्तार भटक ही जाएगा… बच्चे ही नहीं पूरा परिवार शर्मिंदगी में डूब जाएगा… शिक्षा की होड़ में और भविष्य की इस दौड़ में बच्चों को शामिल करना जहां मजबूरी होती है, वहीं उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए धन जुटाना भी पिता के लिए एक चुनौती होती है… वो पैसा कमाए या बच्चों पर निगाहें लगाए… वक्त से जूझता सुबह से शाम तक काम में जुटता पिता केवल बच्चों के भविष्य के सपने देख पाता है तो मां बच्चों की भूख और परवरिश की चिंता में डूबी रहती है … मां-बाप की इस मशक्कत से अनजान बच्चे चंद पलों की खुशियों के लिए खुद को बर्बादी और तबाही में इस कदर झोंक डालते हैं कि भविष्य अंधकार मेें डूब जाता है… अपने दोस्तों के साथ षड्यंत्र रचने वाली शिवपुरी की छात्रा कब कोटा से इंदौर आ जाती है पिता को पता नहीं चलता है… कब वो गलत संगत में डूब जाती है… वो कोचिंग के लिए एक दिन भी नहीं जाती है और परिवार बेखबर रहता है… यदि माता-पिता अपनी बच्ची पर निगाह रखते… शैक्षणिक संस्थान के संपर्क में रहते… उसकी संगत पर ध्यान धरते… उसके रहन-सहन पर निगाह रखते तो छात्रा गलत राह पर नहीं चलती… शिक्षा बदनाम न होती… गलत संगत और परिवार की अनदेखी से एक छात्रा ने जहां अपने भविष्य पर दाग लगाया, वहीं उन सभी पालकों के मन में डर बिठाया, जिनके बच्चे घर से दूर शहरों में शिक्षा के लिए आते हैं… शिक्षा से ज्यादा जरूरी है बच्चों की संगत पर ध्यान देना… उन्हें सुरक्षित रखना…

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