दरअसल देश लापरवाही की लाशों से मरघट बना है … वो सोते रहे जो जिम्मेदार थे… सरकार चुनाव लड़ रही थी… विपक्षी उनके हमकदम बने थे… नेता वैसे भी नादान ही हैं… लेकिन सरकार का जि़म्मेदार स्वास्थ्य विभाग का तमाम महकमा …इतना बड़ा तंत्र कोविड की उस दूसरी लहर के तूफान का अंदाजा ही नहीं लगा पाया जो दुनिया के साथ देश में सुनामी की तरह लोगों को रोंदने, नोचने, खसोटने और तड़पती मौतों की वजह बन गया… जिस देश में मौसम वैज्ञानिक आंधी-तूफान, बारिश का अनुमान लगा लेते हैं… समुद्र की लहरों की थाह पा लेते हैं… अंतरिक्ष से गिरे टुकड़ों को सही जगह ठिकाने लगा देते हैं… वहीं घुटती मौतों का दानव कब प्रवेश कर गया कोई समझ ही नहीं पाया… दरअसल यह अर्थियां उठने से पहले अनुमानों की मौत थी… यह विश्वासघात था… सवा सौ करोड़ अवाम के साथ… वो सोते रहे और शहर मरघट बनते रहे… दिल्ली की निर्ममता पूरे देश ने झेली… स्थानीय प्रशासन बेबस रहा… न साधन थे न संसाधन, न दवाइयां थी न ऑक्सीजन, न अस्पताल थे और न डॉक्टर… सांसों से जूझते रहे लोग दम तोड़ते रहे… चंद घंटों में जीवन लाशों में बदलते रहे… यह क्रम अभी थमा नहीं है… यह मौतें अभी रुकी नहीं हैं… वो सांसें अभी भी वजह जानना चाहती है… जिन्होंने इस देश को बनाया… अपना पसीना बहाया… अपने वोटों से नेताओं का सिंहासन सजाया… उनकी दुनिया उजड़ चुकी है… उनके अपने बिछड़ चुके हैं… काश जब महाराष्ट्र मौतों की राह पर चल पड़ा था… देश के राज्यों में कहर बढ़ रहा था तब इस भयावहता का अनुमान लगाकर चेताया जाता… राज्य सरकारों से लेकर स्थानीय प्रशासन को सतर्क किया जाता… विमान उड़ाए जाते… वाहन दौड़ाए जाते… जरूरतों की किल्लत को मिटाया जाता तो देश के अस्पतालों में सांसें लेते बीमारी से जूझते, जिंदगी से लड़ते लोग केवल चंद मिनटों की ऑक्सीजन की किल्लत की वजह से दम नहीं तोड़ देते… अपनों का साथ नहीं छोड़ देते… देर हो चुकी है… बहुत देर हो चुकी है… सदियां इस देरी का हिसाब मांगेगी और स्वयं की कामयाबी से आत्ममुग्ध सरकार के हाथों में होंगे लाशों के आंकड़े… अर्थियों की गिनतियां… श्मशानों की कतारें और कब्रों से पटे कब्रिस्तान…
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