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क्यों देश को इंतजार है नोएडा एयरपोर्ट शुरू होने का

– आर.के. सिन्हा

अगर सब कुछ योजना के चलता रहा तो उत्तर प्रदेश के जेवर में तेजी से बन रहे नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से पहली उड़ान अगले साल मार्च के महीने में अपने सफर पर चली जाएगी। यानी अब छह से भी कम महीनों का वक्त बचा है, इसे शुरू होने में। पहले कहा जा रहा था कि यहां से पहली फ्लाइट साल 2024 के अंत में ही उड़ान भरेगी। नोएडा एयरपोर्ट जितना जल्दी शुरू हो जाए उतना ही भारत आने और यहां से जाने वाले करोड़ों मुसाफिरों के लिए एक बड़ी राहत भरी खबर होगी। भारत सरकार का उड्डयन एवं गृह मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार मिल कर कोशिश कर रहे हैं ताकि नोएडा एयरपोर्ट वक्त से पहले ही शुरू हो जाए।

नोएडा एयरपोर्ट का तुरंत बनना इसलिए भी जरूरी है ताकि इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (आईजीआई) को यात्रियों की भीड़ से बचाया जा सके। इधर भीड़ के चलते बदइंतजामी और अराजकता के हालात बने रहते हैं। यात्रियों को तीन-तीन घंटे लाइन में लगना पड़ना आज के दिन आम बात हो गई है। आईजीआई एयरपोर्ट पर साल-दर-साल यात्रियों की भीड़ बढ़ती ही चली जा रही है। आप जानते हैं कि आईजीआई से प्रतिदिन हजारों भारतीय सात समंदर पार यात्रा के लिए जा रहे हैं तो इतने ही दुनिया के अलग-अलग भागों से दिल्ली आ भी रहे होते हैं। पिछले साल 2022 में तो यह दुनिया के सबसे व्यस्त एयरपोर्ट की रैंकिंग में नौवें स्थान पर पहुंच गया। एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल (एसीआई) की रिपोर्ट की माने तो आईजीआई एयरपोर्ट से साल 2022 में लगभग 5.95 करोड़ लोगों ने यात्रा की। यह भारत का सबसे व्यस्त एयरपोर्ट भी है। शायद यही वजह है कि आईजीआई एयरपोर्ट की वृहद् सुविधाएं भी भीड़ के सामने अब बौनी साबित होने लगी हैं।


क्या कुछ साल पहले 31 मार्च, 2006 को जब आईजीआई शुरू हुआ था तो किसी ने भी यह सोचा था कि इधर मुसाफिरों की भारी भीड़ से सारी व्यवस्थाएं चरमराने लगेंगी? अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलेगा कि राजधानी दिल्ली में सबसे पहले 10 मार्च, 1931 को सफदरजंग एयरपोर्ट का विधिवत उद्घाटन हुआ था। हालांकि इससे दो बरस पहले 1929 में ही इसकी सांकेतिक स्थापना भी हो गई थी। तब इसका नाम विलिंग्डन एयर फील्ड था। फिर इसका कुछ समय के बाद नाम कर दिया गया विलिंग्डन एयरपोर्ट। देश के आजाद होते ही विलिंग्डन एयरपोर्ट का नाम हो गया सफदरजंग एयरपोर्ट। बताते हैं, इधर कुछ विमान 1927 से ही उतरने लगे थे। दूसरे विश्व युद्ध में इसका मित्र देशों की सेनाओं ने भरपूर इस्तेमाल भी किया था। दिल्ली का यही 1962 तक मुख्य हवाई अड्डा रहा। उसके बाद पालम एयरपोर्ट बना। सफदरजंग एयरपोर्ट को सुरक्षा कारणों से 2002 में बंद कर दिया गया। इसे अमेरिका में 26/11 की भयंकर घटना को देखते हुए बंद किया गया I अब भी यहीं से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य अति विशिष्ट हस्तियां अपने सफर पर निकलते हैं।

फिर वर्तमान में लौटते हैं। आईजीआई के शुरू होने के 20 साल के भीतर ही देश को एक नए विश्व स्तरीय एयरपोर्ट की जरूरत महसूस हुई। यह सुबूत है कि देश के एविएशन सेक्टर का तेजी से विकास और विस्तार हो रहा है। इसलिए ही ग्रेटर नोएडा में जेवर एयरपोर्ट को बनाने पर निर्णय लिया गया। जान लें कि तीस हजार करोड़ रुपये की लागत से 1334 हेक्टेयर में बन रहा जेवर एयरपोर्ट भारत का सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा। फिलहाल यात्रियों की आवाजाही के लिहाज से आईजीआई देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट है।

एक बात और। जेवर एयरपोर्ट की टिकटें आईजीआई के मुकाबले सस्ती होंगी। ऐसा दिल्ली और यूपी में एटीएफ (एविएशन टर्बाइन फ्यूल) शुल्क में अंतर के कारण संभव होगा। आईजीआई की तुलना में यात्रियों को प्रति टिकट 1,500 रुपये की बचत होगी। एविएशन मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि जब जेवर एयरपोर्ट से विमानों का परिचालन शुरू हो जाएगा तो यहां से सालाना 1.2 करोड़ यात्रियों की आवाजाही होने लगेगी। यहां से देश के विभिन्न शहरों के लिए विमान सेवा शुरू होंगी। उदाहरण के रूप में दिल्ली-मुंबई के बीच में प्रतिदिन लगभग 100 उड़ानें हैं। उनमें से करीब आधे को जेवर से संचालित किया जा सकता है। इसी तरह से बेंगलुरु, चेन्नई, काशी, पटना, रांची, लेह, गोवा और देश के दूसरे भागों में यहां से विमान उड़ सकते हैं। इसके अलावा लंदन, दुबई, ज्यूरिख या अमेरिका के शहरों को जाने वाली कुछ उड़ानें भी यहां से शुरू की जा सकती हैं।

जेवर एयरपोर्ट से नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रहने वाले हजारों विदेशी नागरिकों को भी लाभ होगा जो ऑफिस के काम से लगातार हवाई सफर करते रहते हैं। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बड़ी तादाद में दक्षिण कोरिया और जापान के नागरिक रहते हैं। इनमें पेशेवर, इंजीनियर, उद्यमी आदि शामिल हैं। आईजीआई की भीड़ कम करने, यात्रियों की सहूलियत बढ़ाने के लिए इसे जेवर एयरपोर्ट से जोड़ा जाएगा। इसके लिए 74 किलोमीटर लंबा मेट्रो कॉरिडोर बनना भी तय है, जिस पर 120 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से मेट्रो दौड़ेगी।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जेवर एयरपोर्ट को एयर कार्गो का हब भी बनाना चाहती है। इसके साथ ही एयरपोर्ट पर 40 एकड़ में एमआरओ (मेंटीनेंस रिपेयरिंग एंड ओवर हॉलिंग) की सुविधा दी जाएगी। यानी यहीं देश विदेश के विमानों की सर्विसिंग भी इसी एयरपोर्ट पर होगी। वर्तमान में भारत के 85 प्रतिशत विमानों को एमआरओ के लिए विदेश भेजना पड़ता है, जिसपर प्रतिवर्ष 15 हजार करोड़ रुपए खर्च होते हैं। कई बडी एयरलाइंस कंपनियों ने जेवर एयरपोर्ट को एशिया पैसिफिक ट्रांजिट हब बनाने में भी दिलचस्पी दिखाई है। इसमें एयर इंडिया, एयर एशिया, विस्तारा, इंडिगो आदि शामिल है। इससे एयरपोर्ट में यात्रियों की संख्या में वृद्धि होगी।

योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली राज्य सरकार जेवर एयरपोर्ट को कनेक्टिविटी के मॉडल के रूप में विकसित कर रही है। यहां आने-जाने के लिए टैक्सी, मेट्रो और रेल तक की कनेक्टिविटी सुगम होगी। एयरपोर्ट से निकलते ही यात्री सीधे यमुना एक्सप्रेस-वे और नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे तक जा सकते हैं। यूपी, दिल्ली, हरियाणा कहीं भी जाना है तो थोड़ी सी देर में पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पहुंच सकते हैं। इससे यह तो साफ है कि जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनने से आईजीआई की भीड़ काफी हद तक छंट जाएगी।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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