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    राजस्थान में भाजपा का खेल बिगाड़ेंगे रविंद्र सिंह भाटी, राजपूत और राजकुमार रोत?

  • April 12, 2024

    नई दिल्ली: राजस्थान (Rajasthan) में राजपूत (Rajput), रविंद्र सिंह भाटी (Ravindra Singh Bhati) और राजकुमार रोत (Rajkumar Rot) यानि RRR ने बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं. बीजेपी के 400 पार के नारे को गति राजस्थान जैसे राज्य में क्लीन स्वीप से ही मिल सकती थी. पर अब ऐसा लगता है कि बीजेपी की इस राह में कांटे ही कांटे पैदा हो रहे हैं. बाड़मेर में छात्र नेता रविंद्र सिंह भाटी ने और बांसवाड़ा में भारतीय आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत ने अपने नामांकन के दिन जो भीड़ जुटाई है उससे बीजेपी के कान खड़े हो गए हैं.

    बांसवाड़ा में बीजेपी के केंद्रीय मेंत्री कैलाश चौधरी की साख दांव पर लग हुई है. सबसे बड़ी बात यह है कि बाडमेर और बांसवाड़ा हैं तो संख्या में केवल 2 सीटें पर इनका प्रभाव कई सीटों पर पड़ सकता है. बीजेपी इन दोनों सीटों को जितना प्रतिष्‍ठा का प्रश्न बनाएगी उतना ही इसका प्रभाव दूसरी सीटों पर पड़ने की आशंका है. बाडमेर में रविंद्र सिंह भाटी से हुए डैमेज को कंट्रोल के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ही नहीं, बीजेपी के अन्य सितारे जैसे योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह आदि भी मैदान में उतर रहे हैं. इसके साथ ही फिल्मी सितारों की फौज बाड़मेर में उतारने की तैयारी है. आखिर ऐसा क्या हो गया है कि बीजेपी को इस तरह आक्रामक मोड में आना पड़ रहा है.

    बाड़मेर से बीजेपी प्रत्याशी कैलाश चौधरी केंद्र सरकार में मंत्री हैं और इस सीट से सांसद हैं. बीजेपी ने एक बार फिर उन पर दांव खेला है. चौधरी के मुकाबले कांग्रेस ने आरएलपी से आए उम्मेदा राम को उतारा है. पर बीजेपी का असली मुकाबला एक ऐसे युवा से है जो इसी साल निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शिव विधानसभा सीट से चुनाव जीत चुका है. मात्र 26 साल के इस युवा ने पहले शिव विधानसभा सीट से बीजेपी का टिकट चाहा, नहीं मिलने पर स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर जनता के बीच आया और कांटे की टक्कर में सबको हराकर जीत दर्ज की.


    बीजेपी उम्मीदवार की तो जमानत भी जब्त हो गई थी. इसके पहले भी इस युवा को जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय छात्र यूनियन के लिए भी एबीवीपी से इनकार ही मिला था, फिर भी यह युवा निर्दलीय होकर भी भारी मतों से विजयी हुआ था. इस युवा का नाम है रविंद्र सिंह भाटी, जिसे सोशल मीडिया ने स्टार बना दिया है. भाटी ने बीजेपी से सांसदी का भी टिकट चाहा था पर पार्टी की ओर से पुराना किस्सा ही दुहराया गया. अब भाटी को भारी जनमसमर्थन मिलते देख सभी के कान खड़े हो गए हैं.

    बाड़मेर संसदीय सीट के लगभग 18.5 लाख वोटर्स में जाटों के साथ राजपूतों का भी दबदबा है. संसदीय क्षेत्र में 16.59 फीसदी एससी (अनुसूचित जाति) और 6.77 फीसदी एसटी (अनुसूचित जनजाति) जनसंख्या है. यहां 4.5 लाख जाट, 3.5 लाख राजपूत, 4 लाख एससी-एसटी, 3 लाख अल्पसंख्यक और बाकी दूसरी जातियों के वोटर हैं. बीजेपी के साथ दिक्कत यह है कि बाड़मेर में कांग्रेस का प्रत्याशी भी जाट है. रविंद्र सिंह भाटी अकेले राजपूत होने के चलते राजपूत वोटों के अकेले मालिक हैं. भाटी के निर्दलीय उतरने से राजपूत वोट एकतरफा उनके खाते में जाने की उम्मीद है.

    2023 के विधानसभा चुनावों में डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों में तीन सीटें जीतकर बीएपी (भारतीय आदिवासी पार्टी) ने पहले ही बीजेपी के लिए खतरे के संकेत दे दिए थे. अपने पहले ही चुनावी मुकाबले में, BAP ने तीन सीटें – आसपुर, चोरासी और धरियावद – जीतकर दक्षिणी राजस्थान में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरी. अब लोकसभा चुनावों में भारत आदिवासी पार्टी की एंट्री ने बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर मुकाबला बेहद रोचक बना दिया है. बाप ने विधायक राजकुमार रोत को यहां प्रत्याशी बनाया है. हालिया विधानसभा चुनावों में राजकुमार रोत उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी के बाद सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले विधायक बने हैं.

    बीजेपी प्रत्याशी महेंद्रजीत मालवीय भी राजस्थान की ट्राइबल बेल्ट के सबसे बड़ा चेहरा माना जाते हैं पर जबसे भारत आदिवासी पार्टी ने यहां जड़ें जमाई हैं किसी भी बड़े चेहरे की जगह अब इस पार्टी की सुनवाई ही हो रही है. अब डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर मालवीय और रोत जो जीतेगा वही राजस्थान में सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा होगा. अब यह मुकाबला BJP और BAP के बीच आदिवासियों का नेता बनने की भी हो गई है. पिछले 3 दिन की राजनीति में ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिसे देखकर यही लगता है कि कांग्रेस यहां से प्रत्याशी नहीं उतारने वाली है. कांग्रेस का सपोर्ट बाप को ही मिलने वाला है.

    दरअसल बीजेपी पहले से ही राज्य में आदिवासियों के बीच अपने घटते जनाधार को लेकर चिंतित थी. जिस तरह राजकुमार रोत ने बांसवाड़ा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है उसका प्रभाव आसपास की और जनजातीय सीटों पर पड़ने की आशंका से बीजेपी परेशान है.पीएम नरेंद्र मोदी के जनजाति वोटों के लिए कई प्रयासों के बावजूद अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जनजातियों के अपेक्षित वोट नहीं मिले हैं. आदिवासी बहुल डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों में भाजपा का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा है. भाजपा राजस्थान विधानसभा चुनावों में स्पष्ट विजेता के रूप में उभरी, 200 विधानसभा क्षेत्रों में से 115 पर जीत हासिल की, पर डूंगरपुर और बांसवाड़ा में नौ सीटों में से केवल दो ही जीत सकी.शेष सात सीटो में भारत आदिवासी पार्टी ने तीन सीटें जबकि कांग्रेस चार जीतने में कामयाब रही.शायद यही कारण रहा कि भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद कटार का टिकट काटकर स्थानीय कांग्रेस नेता मालवीय को बांसवाड़ा से उतारा है.

    गुजरात में सांसद पुरुषोत्तम रुपाला के बयान के बाद राजपूतों की नाराजगी की खबरें उत्तर भारत में सुनाई दे रही हैं. गुजरात के बाद उत्तर प्रदेश में राजपूतों ने बीजेपी के खिलाफ पंचायत भी की थी. राजपूत समाज का मानना है उनकी अनदेखी हो रही है. राजस्थान में भी ऐसा ही कुछ है. रूपाला के राजपूत महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी के बाद बीजेपी (BJP) की ओर से राजपूत समाज को दरकिनार करने के विरोध में राजपूत करणी सेना ने राजस्थान में भी विरोध शुरू कर दिया है. क्षत्रिय समाज ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवारों को घेरने की रणनीति बना ली है. खास बात यह है कि राजस्थान में इसकी शुरूआत बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी (CP Joshi) की सीट चित्तौड़गढ़ से की गई है.

    श्री राजपूत करणी सेना राष्ट्रीय अध्यक्ष महिपाल सिंह मकराणा ने ऐलान विरोध की शुरूआत वीरो की धरती चित्तौडगढ़ से की जाएगी. गुजरात में लगी आग राजस्थान सहित पूरे देश में फैलाने की मंशा है. यदि नामांकन से पूर्व रूपाला का टिकट नहीं काटा गया तो इसका विरोध बीजेपी को सभी जगह झेलना होगा. बीजेपी का विरोध तब और भी बढ़ गया जब क्षत्रिय करणी सेना परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज शेखावत की गिरफ्तारी हो गई. बता दें कि रविंद्र भाटी राजपूत समुदाय से आते हैं और उनके चुनाव लड़ने पर बाड़मेर में तो बीजेपी के परंपरागत राजपूत वोट बैंक में सेंध लगेगी ही. अगर बीजेपी ने बाड़मेर चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया तो राजपूत इसे दिल पर भी ले सकता है. भाटी की दूसरे प्रदेश में हो रही सभाओं में जो भीड़ हो रही है उसे देखते हुए कुछ भी कहा नहीं जा सकता. भाटी की मुंबई, सूरत आदि की सभाओं में जो प्रवासी राजस्थानियों की भीड़ उमड़ रही उसे राजपूत एंगल भी मिल सकता है.

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