ब्‍लॉगर

भारत जोड़ोः खाली झुनझुना

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

तीन दिन पहले मैंने लिखा था कि राहुल गांधी के पास यदि भाजपा का कोई वैकल्पिक राजनीतिक दर्शन होता तो देश के समस्त विरोधी दलों को एक सूत्र में बांधा जा सकता था। मुझे खुशी है कि कल राहुल गांधी ने इसी बात को दोहराया। उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान अपनी नौंवी पत्रकार परिषद में कहा है कि भाजपा को हराने के लिए विरोधी दलों के पास कोई अपनी दृष्टि होनी चाहिए।


राहुल को शायद पता नहीं है कि हमारे देश के सभी विरोधी दलों के पास जबरदस्त दृष्टि है। हर दल के पास दो-दो नहीं, चार-चार आंखें हैं। इन चारों आंखों से वे चारों तरफ देखते हैं और उन्हें बस एक ही चीज दिखाई पड़ती है। वह है- सत्ता, कुर्सी, गद्दी। इसके अलावा सभी दल खाली-खट हैं। उनके पास सिद्धांत, विचारधारा, नीति, कार्यक्रम के नाम पर खाली झुनझुना होता है। उसे वे बजाते रहते हैं। उनके पास जाति, मजहब, संप्रदाय, भाषा, प्रांतवाद आदि की सारंगियां होती हैं। चुनाव के दिनों में वे इन झुनझुनों और सारंगियों के जरिए अपनी नय्या पार लगाने में जुटे रहते हैं। और यदि वे सत्ता में हों तो वे रेवड़ियों का अंबार लगा देते हैं। किसी नेता या पार्टी के पास भारत की गरीबी और असमानता को दूर करने का कोई नक्शा नहीं होता, उन्हें पता ही नहीं है कि भारत को संपन्न और शक्तिशाली बनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाने चाहिए और सभी दल सत्तारूढ़ होने के लिए नोट और वोट का झांझ पीटते रहते हैं।

सत्तारूढ़ होने पर वे नौकरशाहों की नौकरी करने लगते हैं। भारत में सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी ऐसी है, जिसके कुछ नेता पढ़े-लिखे और विचारशील हैं लेकिन यह पार्टी भी मलयाली उप राष्ट्रवाद (केरल) की बेड़ियों में जकड़ी हुई है। कांग्रेस एक मात्र विरोधी पार्टी है, जिसके सदस्य आज भी देश के हर जिले में मौजूद हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि उसके पास न कोई नेता है और न ही नीति है।

लगभग 10-12 वर्ष पहले राहुल गांधी में कुछ संभावना दिखाई पड़ रही थी लेकिन इतना लंबा वक्त बापकमाई और अम्माकमाई को जीमने में गुजर गया। अब जबकि कांग्रेस ‘वेंटिलेटर’ पर आ गई है, राहुल ने राजनीति का क,ख,ग सीखने की कोशिश की है। लेकिन विरोधी दलों के नेता तीन-चार माह के इस नौसिखिए राजनीतिक शिशु को अपना गुरु कैसे धारण कर लेंगे? अखिलेश यादव और मायावती ने भारत जोड़ो यात्रा में जुड़ने से मना कर दिया है। भला, नीतीश, सीताराम येचुरी, ममता बनर्जी, कुमारस्वामी, पटनायक जैसे वरिष्ठ नेता कैसे जुड़ेंगे? यदि जुड़ भी गए तो इनका गठबंधन कैसे बनेगा? और बन भी गया तो वह चलेगा कितने दिन? बस, यदि कांग्रेस ही जुड़ी रहे और टूटे नहीं तो हम मान लेंगे कि यह भारत जोड़ो-यात्रा सफल रही।

(लेखक, भारतीय विदेश परिषद नीति के अध्यक्ष हैं।)

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