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भारत की माटी के कण-कण में है अद्वैत दर्शन : मुख्यमंत्री शिवराज

– अद्वैत जागरण शिविर के प्रतिभागियों को दीक्षांत समारोह में मिले प्रशस्ति-पत्र

भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने कहा कि शंकराचार्य जी (Shankaracharya ji) ने संपूर्ण भारत को उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक जोड़ने और अद्वैत वेदांत से अवगत कराने के लिए अद्भुत कार्य किया। भारत की माटी के कण-कण में अद्वैत दर्शन (Advaita philosophy) समाया हुआ है। हम कहते आए हैं धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सदभावना हो और विश्व का कल्याण हो। आदिगुरू शंकराचार्य (Adiguru Shankaracharya) ने पूरे राष्ट्र को इस भाव को समझने का कार्य किया। हमारा वर्तमान स्वरूप आदिगुरू के प्रयासों से निर्मित हुआ है। भारत पूर्ण विश्व को शांति दिग्दर्शन कराने का कार्य करेगा। आचार्य शंकर के संदेश को युवाओं ने आत्मसात कर अपनी नई भूमिका प्रारंभ की है।


मुख्यमंत्री चौहान शुक्रवार शाम को भारत भवन में संस्कृति विभाग के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास की तरफ से अद्वैत जागरण शिविर के युवा प्रतिभागियों को दीक्षांत समारोह में प्रशस्ति-पत्र प्रदान कर रहे थे। प्रतिभागियों को अंगवस्त्रम, माला, भगवत गीता और शंकराराचार्य जी का विशेष चित्र भी प्रदान किया गया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी नदियाँ सिर्फ जलवाहिकाएँ नहीं बल्कि माताएँ हैं। जब हम गोवर्धन पूजा करते हैं तो पर्यावरण की अराधना करते हैं। मध्यप्रदेश में ओमकरेश्वर में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास शंकराचार्य जी की विशाल प्रतिमा के साथ ही अद्वैत दर्शन से परिचय करवाने वाले वैश्विक स्तर के संस्थान की स्थापना का कार्य कर रहा है। निश्चित ही भारतीय दर्शन को दुनिया भी आत्मसात करेगी। उन्होंने प्रशिक्षित युवाओं सहित कार्यक्रम में उपस्थित प्रतिभागियों को एक श्रेष्ठ नागिरक के रूप में आदर्श समाज, उन्नत राष्ट्र और मंगलमय विश्व के निर्माण के लिए एकात्म भाव को आत्मसात कर अपनी भूमिका निभाने का संकल्प भी दिलवाया।

मप्र सरकार का अद्वैत दर्शन की भावना के विस्तार का कार्य सराहनीयः परमात्मानंद

राजकोट के आर्ष विद्या मंदिर के प्रमुख और आचार्य शंकर न्यास के न्यासी स्वामी परमात्मानंद सरस्वती ने कहा कि मध्यप्रदेश में अद्वैत दर्शन की भावना के विस्तार के लिए मध्यप्रदेश सरकार के प्रयास सराहनीय हैं। आज इस दीक्षांत समारोह में जिन युवाओं को प्रमाण-पत्र दिए गये, वे अपनत्व के भाव और अद्वैत विदांत के मार्ग को आत्मसात कर अपना दायित्व निभाएंगे। किसी भी सरकार के लिए अन्य क्षेत्रों में विकास के साथ ही विश्वास, प्रेम के भाव और समत्व के विचार को महत्व देने का दायित्व भी होता है। यह अनूठा कार्य मध्यप्रदेश में हो रहा है।

सप्तमातृका आश्रम महेश्वर के स्वामी समानंद गिरी ने कहा कि युवाओं के लिए इस तरह के प्रशिक्षण शिविर की कल्पना अद्भुत थी। इन युवाओं ने प्रेममय वातावरण में गुरू-शिष्य परंपरा में रह कर शिक्षा प्राप्त की। इन्हें आहार में च्यवनप्राश, गौ-मूत्र जैसी वस्तुएँ भी दी गईं। यही नहीं ट्रेकिंग जैसी गतिविधियों से भी जोड़ा गया। राजस्थान, गुजरात और केरल में युवाओं को गीता रथ वाहन से यात्रा का अवसर मिला। किताबों में पढ़ी गई अनेक बातों की प्रशिक्षणार्थियों को प्रत्यक्ष अनुभूति हुई।

चिन्मय मिशन पुणे की ब्रह्मचारिणी मैत्रेयी चैतन्य ने कहा कि मध्यप्रदेश में ओंकारेश्वर में शंकराचार्य जी की प्रतिमा स्थापना की पहल संकल्प की शक्ति का प्रमाण है। जहाँ शासनकर्ता ऐसे सार्थक प्रकल्प को प्रोत्साहित कर रहे हों तो समाज भी स्वत: जुड़ जाता है। इस प्रकल्प से जुड़ कर मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हूँ।

संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला ने बताया कि आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास अद्वैत दर्शन के भाव को प्रसारित करने के लिए पूरे वर्ष गतिविधियाँ संचालित कर रहा है। कोरोना काल में भी इस दिशा में निरंतर कार्य हुआ। इस विचार से जुड़ने में जिन युवाओं की रूचि थी, उन्हें माउंट आबू, राजकोट और केरल में विभिन्न पाठ्यक्रमों से प्रशिक्षित किया गया।

अद्वैत जागरण शिविर से बदली है युवाओं की जीवन दृष्टि
गुरु-शिष्य परंपरा से युवाओं को वेदांत के प्रति आकर्षित किया गया। कार्यक्रम में लघु फिल्म का प्रदर्शन भी हुआ। प्रतिभागियों की ओर से धवल रत्नपारखी, दीपल सिंह, दीपेन्द्र धाकड़, लेफ्टिनेट कर्नल चिन्मय पंडित और तान्या चौहान ने विचार व्यक्त किए। इन प्रतिभागियों ने बताया कि आचार्य शंकर न्यास उनके जीवन में भगवत कृपा लाने का माध्यम बना है। उन्होंने तत्वबोध ग्रंथ का अध्ययन भी किया।

आध्यात्मिक दिव्यता का अनुभव किया। अद्वैत जागरण शिविर से ऐसी यात्रा पर जाने का अवसर मिला, जहाँ अस्तित्व को समझने का बोध हुआ। अब जीवन में संकल्पित होकर कर्त्तव्य पथ पर बढ़ना है। जो आत्म अनुभूति हुई है उससे मानव जीवन सफल बनेगा। शंकराचार्य जी के जन्म स्थान को देखने से विशेष अनुभूति हुई। जीवन के प्रति स्पष्टता और दृष्टिकोण में अंतर आया है। एकात्म के भाव और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जानने में सहयोग मिला है।

शिविर: एक नजर में
न्यास के शिविर में 7 दिवसीय फाउंडेशन कोर्स और 10 दिवसीय एडवांस कोर्स कर चुके 57 युवाओं ने भागदारी की। शिविरों में जो आचार्यगण मार्गदर्शन के लिए उपस्थित रहे उनमें स्वामी परमात्मनंद सरस्वती, स्वामी समानंद गिरी और ब्रह्मचारिणी मैत्रेयी चैतन्य शामिल थे। योग, स्वाध्याय, ध्यान प्राणायाम का प्रशिक्षण दिया गया। (एजेंसी, हि.स.)

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