दवा कारोबारी से लेकर कई पत्रकारों के खिलाफ फर्जी वारंट जारी कर डाले…
इंदौर। मुंबई (Mumbai) निवासी एक व्यक्ति ने दवा कारोबारी (drug dealer) के साथ-साथ इंदौर के कुछ पत्रकारों के खिलाफ भी सालों पहले फर्जी वारंट (fake warrant) निकलवा दिए। इसमें दवा कारोबारी (drug dealer) को तो इंदौर पुलिस (Indore Police) ने बिना जांच के इस फर्जी वारंट (fake warrant) के आधार पर ना सिर्फ गिरफ्तार किया, बल्कि दुव्र्यवहार करते हुए उत्तरप्रदेश के देवरिया कोर्ट में पेश किया गया, जहां का फर्जी वारंट (fake warrant) निकाला गया था, लेकिन देवरिया कोर्ट (Deoria Court) के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने वारंट देखते ही कहा कि यह फर्जी है और उनके हस्ताक्षर भी नकली हैं। उसके बाद इस मामले में अब 19 साल बाद आरोपी को तीन साल की सजा अपर सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी ने सुनाई।
इस प्रकरण में तथ्य यह हैं कि दवा कारोबारी कैलाश जिंदल (Kailash Jindal) के खिलाफ वर्ली मुंबई निवासी अजय जाजोदिया ने एक फर्जी गिरफ्तारी वारंट (fake warrant) जारी करवा दिया और 24.10.2002 को शाम 4 बजे फोन कर होटल प्रेसिडेंट (Hotel President) बुलाया और वहां मौजूद एसपी कार्यालय के दो कर्मचारियों और पलासिया थाने के सब इन्स्पेक्टर एसपीएस चौहान ने कैलाश जिंदल को गिरफ्तार कर लिया और फिर गीता भवन चौराहा स्थित सेंटर पाइंट होटल लाए और मोल-भाव कर 50 हजार रुपए की मांग छोडऩे के एवज में की। मगर जब श्री जिंदल ने बताया कि वह दवा कारोबारी के साथ एक पत्रकार भी है और इस तरह की धौंस-धपट में नहीं आएंगे। अब उन्हें पलासिया (Palasia) थाने लाकर लॉकअप में बंद कर लिया। उनका मोबाइल भी छीन लिया और दो दिन तक थाने में रखा। किसी से मिलने भी नहीं दिया और फिर उसके बाद भारत-नेपाल सीमा पर स्थित देवरिया भेज दिया। देवरिया कोर्ट (Deoria Court) के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एमए अब्बासी ने इंदौर पुलिस (Indore Police) द्वारा दिया वारंट देखते ही कहा कि वह फर्जी है, क्योंकि उन पर उसके हस्ताक्षर भी नकली और लगी रबर मोहर भी कोर्ट की मोहर से भिन्न है। उसके बाद आरोपी को स्थानीय कोर्ट से छोड़ दिया था, जिसके खिलाफ श्री जिंदल ने अपील की और अब 19 साल बाद आरोपी अजय जाजोदिया को तीन साल की सजा मिली। फरियादी जिंदल की ओर से अभिभाषक अजयशंकर उकास, चेतन निगम और अभय उकास ने पैरवी की।
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