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 अन्नदाता दुखी: अज्ञात वायरस और जल-जमाव से जिले में सोयाबीन की 30 से 40 प्रतिशत प्रभावित

रतलाम । सोयाबीन की फसलों में अफलन की बीमारी फैलने से किसानों को चिंतित कर दिया है, इसे नये प्रकार का वायरस माना जा रहा है। किसानों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि  यह कौन सी बीमारी है, कोई मकड़ी बताया है तो कोई वायरस। सोयाबीन फसल के पत्ते पीले हो गए है और इसमें फली नहीं लग रही है। अफलन की बीमारी पूरे के पूरे सोयाबीन को सुखाकर फसल को नष्ट कर रही है।
 पिछले दिनों भारी बारिश के बाद पूरे मध्यप्रदेश के साथ रतलाम जिले में भी अधिकांश स्थानों पर यह देखने में आया है कि सोयाबीन की फसल जलकर नष्ट होने की कगार पर है। पौधों में कई जगह बारिक छेद नजर आ रहा है और उसके अंदर एक पीला अण्डा दिखाई दे रहा है। कृषि वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि यह किसी भी किटनाशक द्वारा कंट्रोल करना संभव ही नहीं है। खाद-बीज व्यापारी संघ के रमेश गर्ग ने बताया कि यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रभावी क्षेत्रों में एक या दो मिनिट की कोई अम्लीय वर्षा हुई, जिसके कारण पौधे जले हैं।
कृषि अधिकारी ने बताया कि जिले में कितने हेक्टर में सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई है यह अभी नहीं कहा जा सकता ,क्योंकि कृषि व राजस्व अधिकारियों की टीम प्रभावित फसलों की सर्वे कर रही है, सर्वे के बाद ही पता लग सकेगा कि कितनी प्रतिशत फसलें प्रभावित हुई है, जहां तक नुकसानी का सवाल है उसका आंकलन फसल कटाई के दौरान पता चलेगा कितनी प्रतिशत फसल खराब हुई है और कितना नुकसान हुआ है।
सोयाबीन की फसल नष्ट होने से किसानों में हाहाकार मचा हुआ है। जगह-जगह किसान ज्ञापन दे रहे है और फसल के मुआवजे की मांग कर रहे है। कांग्रेस ने जगह-जगह अधिकारियों को ज्ञापन देकर मुआवजे की मांग की है।
कृषि उप संचालक ने फसल बीमा करवाने का दिया सुझाव
उप संचालक कृषि जीएस मोहनिया ने भी निराकरण एव नियंत्रण के लिए भी उपचार की विधि बताई। उन्होंने बताया कि बीमा करवाने के लिए सोयाबीन की प्रीमयम 1 हजार 40 रुपये प्रति हेक्टर है। अल्पकालिन फसल ऋण प्राप्त करने वाले किसानों की फसल की बीमा संबंधित बैंक द्वारा किया जाएगा। उन्होंने आवश्यक दस्तावेजों की जानकारी दी तथा बताया कि पटवारिया पंचायत सचिव द्वारा जारी बुआई प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर किसान बीमा करवा सकते हैं। जिले में लगभग 250500 हेक्टर में सोयाबीन लक्ष्य बोने का निर्धारित किया गया था,लेकिन 245900 हेक्टर क्षेत्र में सोयाबीन की फसल बोई गई है, इसमें से करीब 30 से 40 प्रतिशत फसल येलो मैजीक कीट से प्रभावित हो गई है। कई स्थानों पर खेतों में पानी भरा रहने से सोयाबीन के पौधे गलने व सडऩे लगे है। एक कृषक के अनुसार एक तरफ सोयाबीन में पीला मैजीक वायरस और लाल मकड़ी कीट प्रकोप है, वहीं तीसरी समस्या प्रकृति ने खड़ी कर दी। लगातार बारिश की फुहार से फसले आड़ी हो गई है।
कुदरत का कहर देखने को मिला
पिपलौदा तहसील के  गांव मावता में कुदरत का कहर देखने को मिला है  ।  किसानदशरथ पिता मोहनलाल सोलंकी ने छ: बीघा खेत में सोयाबीन बोई थी। किंतु कूदरत कहर ऐसा बरपा कि तीन बीघा की सोयाबीन खराब हो गई। किसान ने बताया कि पहले ही मेरी मां लकवाग्रस्त होकर बीमारी से जूझ रही है। वहीं अब फसल चौपट होने की कगार पर है। दशरथ ने बताया कि समय-समय पर जरूरत पडऩे वाली कीटनाशक सहित खाद-बीज का ठीक से फसलों पर प्रयोग किया था, किंतु फिर भी अचानक तीन बीघा फसल का खराब होना समझ से परे है।
तमाम खेत तालाब बन चुके है
क्षेत्र के ग्राम हतनारा में लगातार हुई बारिश ने फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। बारिश से नुकसान का आलम यह है कि तमाम खेत तालाब बन चुके हैं, वही सोयाबीन की फलियां पीली पडऩे लगी हैं। अत्यधिक बारिश के कारण उनकी वृद्धि रुक गई है। लगातार खेतों में पानी भरा रहने से सोयाबीन के पौधे सडऩे लगे हैं, फलियों ने भी सडन पकड़ ली। इससे न सिर्फ सोयाबीन की गुणवत्ता खराब हो रही बल्कि इसका सीधा असर क्वालिटी पर भी पड़ रहा है। कई खेतों में पूरी तरह से कीचड़ पसरा हुआ है। ऐसे में उन्हें लगभग 100 प्रतिशत के नकुसान में माना जा रहा है। गांव के किसान कन्हैयालाल पाटीदार का कहना हैं कि यदि फसल इसी तरह रही तो बहुत नुकसान होगा। उन्होंने शासन से फसल का सर्वे कर मुआवजा दिए जाने की मांग की।
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