भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

कभी भोपाली पटियों पे सारी रात सजती थी पटीएबाज़ों कि महफि़ल

और खां भाई मियां क्या चललिया हे…। भोत दिन हुए सूरमा ने भोपाली तासीर या क़दीमी रिवायत का कोई जि़कर तलक नई करा। तो चलो साब इस एतबार से आज भोपाली पटियों की बात हो जाये। यहां पटियों की रिवायात की इब्तिदा नवाबी दौर से होती है। गोया के भोपाल में आज सो से डेढ़ सौ बरस पुरानी खस्ताहाल इमारतो की तामीर के वखत से ही पटियों की बन्नत का खय़ाल रखा जाता था। मकसद ये के किसी इमारत में ड्योढ़ी या पटिये न हों तो वो इमारत अधूरी मानी जाती थी। ऐसा नईं था मियां के पटीएबाज़ी का शौक आवारा या निठल्ले लोगों का काम हो। शहर के तमाम मुअजि़्जज़़ हजऱात पटीएबाज़ी का शौक़ फऱमाते थे। पटीए उस वक्त आपसी राब्ते और एक दूसरे की खैरियत जानने के ठिये होते थे। भोपाल में पटियों की भी सल्तनत होती थी। मसलन हर किसी पटीए पे हर कोई नईं बैठ सकता था। अदबी हस्तियों और शायरों के अलग पटिये होते तो सियासत और ब्यौपार करने वालों के अलहदा पटिये हुआ करते। पटियों पे तख़्तनशी होके पतली गलियों के भारी भरकम भोपाली हर मसाइल, हर मौजूं पे बहस मुबाहसे और शहर की सियासत पे ताबदला-ए-खय़ाल करते। पहलवानी से लेके तीतर बटेर की लड़ाई, कबूतरबाजी और जंगल मे गोट (पिकनिक) के पिरोगराम भी पटियों पे फायनल होते। पटिये ओर पटीएबाज़ी सिर्फ क़दीमी भोपालियों का पसंदीदा शग़ल था। पटियों पे रात काली करने के अलग ही ठाट थे। भोपाल के पटिये पार्ट सी स्टेट से लेके मध्यप्रदेश बनने तक की तारीख़ी कहानी के गवाह हैं। इन्हीं पटियों पे आज़ादी के बाद भोपाल रियासत को भारतीय गणतंत्र में मिलाने के वास्ते शुरू हुए विलीनीकरण आंदोलन के मंसूबे बने थे। यहीं भोपाल को राजधानी बनाने के लिए दिल्ली सरकार में दबाव बनाने की पिलानिंग परवान चढ़ी। इन्हीं पटियों पे शहर की रिवायात, अदब-ओ-तहज़ीब और किस्सागोई के तमाम नमूने नमूदार हुए। भोपाली राग बतोलों का सबसे बड़ा मरकज़ हुआ करते थे ये पटिये। भोपाली पटियों की शान और ठसक भी नवाबी हुआ करती थी। गर्मी के मौसम में शाम के वखत भिश्ती अपनी चमड़े की मशक से पटियों पे पानी का छिड़काव करते। ताकि पटीएबाज़ पुरसुकून माहौल में बैठ सकें। तब के दौर में कुछ मख़सूस पटियों पे दरियां और चाँदनियाँ बिछाई जातीं। जामा मस्जिद चौक, जुमेराती, गूजरपुरा, इब्राहिमपुरा, बुधवारा और जहांगीराबाद में कई रसूखदारों के पटियों पे सुलेमानी चाय, पान का इंतजाम किया जाता।


कुछ पटियों पे बैंतबाज़ी और शेरो सुखन की महफिलें भी आबाद होतीं। भोपाल के क़दीमी पटियों में जुमेराती के मरहूम छोटे भैया की दुकान, अट्टा शुजा खां में सैयद ज़हूर हाशमी का मकान, ठाकुर प्रसादजी की रिहाइश, गुलिया दाई की गली में पंडित खुशीलाल वैध की हवेली, बुधवारा में गली फ़ीरोज़ खेलान, इब्राहिमपुरे की अहद होटल, यूनानी शिफाखाना के लंबे चौड़े पटिये, चौक इलाके के चिंतामन चौक, सराफा बाजार और जैन मंदिर रोड के पटीए शहर के मशहूर पटियों में शुमार थे। इन्हीं पटियों पे डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा जैसी हस्तियों की सियासत परवान चढ़ी। भोपाल के सियासी मौलाना साईदुल्ला खां रज़मी, मौलाना तरज़ी मशरीकी, ठाकुर लाल सिंह, खान शाकिर अली खान, बाबू कामता प्रसाद, रामचरण राय वकील साब, मास्टर भेरोंप्रसाद, फज़़ल अली सुरूर, मथुराबाबू, चतुरनारायण मालवीय, भगवान दास सारस्वत, घुर्रू मियां, ताज भोपाली और कैफ भोपाली जैसी हस्तियों ने भोपाल के पटियों पे भोत रातें काली करीं। इन्हीं पटियों से भोपाल रियासत को भारतीय गणतंत्र में मिलाने वाले विलीनीकरण आंदोलन और भोपाल को राजधानी बनाये जाने के मंसूबे तैयार किये गए। रियासती हुकूमत के पहले वज़ीरे आज़म चतुरनारायण मालवीय भोपाल के पटियों से ही उठे। मास्टर लाल सिंह के इंतकाल के बाद सियासी पटीएबाज़ी में आये वैक्यूम को डाक्टर शंकर दयाल शर्मा ने पूरा किया। बहरहाल सत्तर की दहाई में नगर निगम के तब के एडमिनिस्ट्रेटर एमएन बुच साब ने भोपाल के पटियों को तुड़वा दिया। बाकी पटीएबाज़ी की रिवायत को आज भी पुराने भोपाली इक़बाल मैदान, बुधवारा और वीआईपी रोड पे जि़ंदा रखे हुए हैं।

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