उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

फिर करोड़ों खाने की तैयारी..शिप्रा शुद्धिकरण के लिए बनी 626 करोड़ की डीपीआर

  • बीते 21 सालों में साढ़े 650 करोड़ शिप्रा शुद्धिकरण के नाम डूब गए और कान्ह डायवर्शन लाईन की योजना भी फेल हो गई-पानी को स्वच्छ करने की आड़ में फिर होगा भ्रष्टाचार

उज्जैन। शिप्रा नदी को शुद्ध करने के नाम पर भ्रष्टाचार की जो गंगा बहती है उसमें भोपाल, उज्जैन, दिल्ली के अधिकारी और नेता खूब डुबकी लगाते हैं और कई ने अपने घर भर लिए। सिंहस्थ के समय शिप्रा शुद्धिकरण के लिए 650 करोड़ का बजट था जो पूरा खर्च हो गया और शिप्रा का एक बाल्टी पानी भी शुद्ध नहीं हुआ..यहाँ तक कि गंदे नाले अभी भी मिल रहे हैं और अब भोपाल में बैठे भ्रष्ट अधिकारी फिर से 626 करोड़ रुपए शिप्रा नदी के नाम पर खर्च करने की प्लानिंग तैयार करने में जुटे हैं..! जनता को सवाल करना चाहिए कि सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद शिप्रा शुद्ध क्यों नहीं होगी और हर बार जिम्मेदारी तय क्यों नहीं की जाती।


शिप्रा नदी का शुद्धि करने के लिए 626 करोड़ खर्च करने की प्लानिंग फिर से उसी विभाग ने कर ली है जिसने पहले 650 करोड़ रुपए शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर बर्बाद कर दिए हैं। बीते 21 साल की बात की जाए तो शिप्रा नदी को स्वच्छ और प्रवाह मान बनाने के लिए जल संसाधन और अन्य विभाग मिलकर 650 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर चुके हैं। इसके बावजूद शिप्रा नदी का पानी आचमन तो दूर नहाने लायक नहीं है। प्रदूषण विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार शिप्रा नदी का पानी डी ग्रेड का है और जनप्रतिनिधि इसके लिए इंदौर से आने वाले प्रदूषित पानी की रोकथाम के लिए सही उपाय नहीं होना कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। सिंहस्थ 2016 के पूर्व कान्ह डायवर्शन योजना में त्रिवेणी से लेकर कालियादेह महल तक डायवर्शन लाइन डाली गई। इसकी डीपीआर भी जल संसाधन विभाग ने बनाई थी और उस पर कुल 90 करोड़ के आसपास खर्च किए गए। सिंहस्थ बीतने के बाद ही यह योजना फेल हो गई और कान्ह नदी का प्रदूषित पानी शिप्रा में मिलने से नहीं रोका जा सका। इतने बड़े पैमाने पर यह योजना बनी और फेल हुई लेकिन इसकी जाँच सरकार ने अभी तक नहीं की, उल्टे अब फिर से सिंहस्थ 2028 को देखते हुए अधिकारियों ने शिवपुरा शुद्धिकरण की एक और डीपीआर तैयार कर ली है जिसमें 626 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। जल संसाधन विभाग ने जो नई योजना तैयार ही है उसे क्लोज डक्ट नाम दिया है। यह डीपीआर तैयार करके भोपाल भेज दी गई है। इस प्रोजेक्ट के तहत कान्ह नदी के गंदे पानी को ग्राम गोठड़ा में शिप्रा नदी में मिलने से दुनिया के लिए आरसीसी के पॉकेट नुमा पक्के बॉक्स से डायवर्ट किया जाएगा। बॉक्स का दूसरा सिरा कालियादेह महल तक करीब 17 किलोमीटर लंबा बनेगा। शुरू और आखरी में 100-100 मीटर में यह डक्ट ओपन रहेगा, बाकी का हिस्सा पैक रहेगा। सफाई मेंटेनेंस के लिए बीच में चार जगह रास्ते रहेंगे इसके लिए आठ से 10 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जाएगी। जमीन के मुआवजे का प्रावधान भी प्रस्तावित डीपीआर में तैयार किया गया है। गोठड़ा में पक्का डेम बनाना भी इसमें शामिल है। शिप्रा नदी को पवित्र नदी और निर्मल बनाने के लिए पिछले 21 साल के दौरान कई असफल प्रयास प्रशासन ने किए हैं। राघौ पिपलिया पर करोड़ों खर्च कर स्टॉप डेम बनाया गया। यह पूरी तरह से सफल नहीं हुआ और गंदा पानी आगे बढ़ता है। फिर वर्ष 2004 में 6 करोड़ की नदी संरक्षण योजना के तहत शहर के सभी बड़े नालों को पाइप लाइन में पंपिंग स्टेशनों से जोड़कर गंदे पानी को सजावल ट्रीटमेंट प्लांट पर छोड़ा जाने लगा। नगर निगम पर एक करोड़ का बिजली का खर्च आने लगा। बार-बार पंपिंग होने के कारण शिप्रा नदी में गंदा पानी मिलता रहा। 4 करोड़ रुपए हरसिद्धि से लाइन डाली गई जो रूद्र सागर के गंदे पानी को शिप्रा में नहीं मिलने देती। वर्ष 2016 में 90 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करके कान्ह डायवर्शन लाइन डाली गई जो असफल प्रयास साबित हुआ।

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