चुनाव 2024 बड़ी खबर राजनीति

छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने की जबरदस्‍त जीत हासिल, मैदान में उतारे थे 47 नए चेहरे, दिग्गजों को भी दिया था मौका

रायपुर (Raipur) । छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 90 में से 54 सीटों पर जीत हासिल कर 5 साल बाद जोरदार वापसी की है। राज्य में 2018 में भाजपा को कांग्रेस (Congress) के हाथों बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में कांग्रेस 35 सीटें जीतने में सफल रही, जो 2018 में मिली जीत से 33 कम है। एक सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मिली है। एग्जिट पोल में पिछड़ने की भविष्यवाणियों के विपरीत भाजपा ने इस चुनाव में अपनी सीटें 15 से बढ़ाकर 54 कर ली है। 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद यह पहली बार है जब भाजपा को इतना बड़ा जनादेश मिला है। इस चुनाव में भाजपा ने 2018 चुनाव के 10.1 फीसदी मत अंतर को भी पाटा और उसका वोट प्रतिशत पिछले चुनाव में मिले 32.97 फीसदी से बढ़कर इस बार 46.27 फीसदी हो गया। कांग्रेस 43.04 से नीचे 42.23 फीसदी पर आ गई है।

बीजेपी की इतनी बड़ी जीत के पीछे के कारण पार्टी आलाकमान का नए चेहरों पर भरोसा जताना माना जा रहा है। भाजपा ने इस चुनाव में करीब 47 नए चेहरों को मैदान में उतारा था, जिनमें से 29 विजयी हुए हैं। नए उम्मीदवारों का जीतना भगवा दल के लिए कई मायनों में खास है। ये नए लोग ही आगे चलकर छत्तीसगढ़ भाजपा में बड़ी जिम्मेदारियां संभाल सकते हैं। 29 नए कैंडिडेट्स के जीतने से पता चलता है कि पार्टी की ओर से जमीनी स्तर पर कितनी मजबूती से प्रचार-प्रसार किया गया। बीजेपी ने भ्रष्टाचार, हिंदुत्व, लोकलुभावन वादों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत छवि जैसे मुद्दों लेकर चुनाव लड़ा था।


महादेव सट्टेबाजी ऐप, कोयला और शराब घोटाले का आरोप
भाजपा का प्रचार अभियान प्रधानमंत्री मोदी की छवि पर बहुत अधिक निर्भर था। मोदी ने राज्य में जुलाई से चुनाव प्रचार के आखिर तक 9 सार्वजनिक रैलियों को संबोधित किया। पार्टी ने मतदाताओं से कई वादे भी किए। राज्य में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं ने महादेव सट्टेबाजी ऐप, कोयला और शराब से संबंधित कथित घोटालों को लेकर लगातार बघेल सरकार पर निशाना साधा, जिनकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से की जा रही है। भाजपा ने राज्य में पिछले दिनों बेमेतरा और कवर्धा जिलों में हुई सांप्रदायिक हिंसा और राज्य में धर्मांतरण की घटनाओं को लेकर भी कांग्रेस पर निशाना साधा। भाजपा नेताओं ने बघेल सरकार पर तुष्टीकरण की राजनीति में लिप्त होने का आरोप लगाया।

भाजपा की जीत के पीछे नए चेहरे आगे करने के साथ ही एक और बड़ा फैक्टर रहा। बीजेपी आलाकमान ने अपने कई पूर्व मंत्रियों पर भरोसा जताया और उन्हें मैदान में उतारा। राज्य के जनता ने एक बार से ऐसे नेताओं पर भरोसा जताया। भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह (राजनांदगांव), राज्य भाजपा प्रमुख और पार्टी सांसद अरुण साव (लोरमी), केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह (भरतपुर-सोनहत), पार्टी सांसद गोमती साय (पत्थलगांव), पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णु देव साय (कुनकुरी) और पूर्व मंत्री जिनमें बृजमोहन अग्रवाल (रायपुर शहर दक्षिण), अजय चंद्राकर (कुरुद), पुन्नूलाल मोहिले (मुंगेली), अमर अग्रवाल (बिलासपुर), दयालदास बघेल (नवागढ़) और राजेश मूणत (रायपुर शहर पश्चिम) तथा पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी और नीलकंठ टेकाम चुनाव जीत गए हैं।

बघेल के 13 सदस्यीय मंत्रिमंडल के 9 लोग हारे
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाले 13 सदस्यीय मंत्रिमंडल के 9 सदस्य चुनाव हार गए हैं, जबकि बघेल (पाटन) और उनके तीन मंत्री कवासी लखमा (कोंटा), उमेश पटेल (खरसिया) और अनिला भेंडिया (डोंडी लोहारा) विजयी होने में कामयाब रहे। राज्य विधानसभा के अध्यक्ष चरण दास महंत ने अपनी सक्ती सीट जीत ली है। वहीं, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज को चित्रकोट सीट पर हार का सामना करना पड़ा। इस साल अप्रैल में बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटना को भाजपा ने लोगों के सामने रखा और साजा सीट से ईश्वर साहू को भी मैदान में उतारा। ईश्वर साहू के पुत्र की बिरनपुर सांप्रदायिक हिंसा में मृत्यु हुई थी। ईश्वर साहू ने कांग्रेस के प्रभावशाली नेता और मंत्री रवींद्र चौबे को 5,196 मतों से हराया है।

राज्य में बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर निर्भर थी, जिसमें कहा जाता है कि उसने लगभग 1.75 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे। पार्टी ने ‘छत्तीसगढ़ियावाद’ और माटी पुत्र के रूप में बघेल की लोकप्रियता को भी भुनाने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रही। आदिवासी बहुल सरगुजा क्षेत्र में मतदान के परिपाटी ने भी कांग्रेस को परेशान किया है। इस क्षेत्र में कांग्रेस 2018 में जीती गई सभी 14 सीटें हार गईं, जिनमें अंबिकापुर भी शामिल है, जहां उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को हार का सामना करना पड़ा है। राजनीतिक विशेषज्ञों की राय है कि भाजपा के पारंपरिक वोट जो 2018 में 15 साल की सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस के पास चले गए थे, उन्हें इस चुनाव में भगवा पार्टी ने बरकरार रखा।

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