भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

विधानसभा चुनाव के लिए एक्टिव हुई बसपा

  • विंध्य, बुंदेलखंड और चंबल में खोया जनाधार पाने के लिए बना रही रणनीति

भोपाल। मायावती की बहुजन समाज पार्टी मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए तैयारियों में जुटी है। कभी विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र में काफी मजबूत रही बसपा लंबे समय से अलग-थलग पड़ी है। पिछले दो दिनों में रीवा और सतना के तीन बड़े नेताओं ने बसपा का दामन थामा है। चुनाव से पहले पार्टी के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। इससे विंध्य क्षेत्र में पार्टी की ताकत बढ़ेगी, लेकिन दो दशक पहले तक एमपी में तीसरी बड़ी ताकत बनने का सपना देखने वाली बसपा के लिए अभी रास्ता काफी लंबा है।
1993 और 1998 के विधानसभा चुनावों के बाद बसपा मध्य प्रदेश की सियासत में बड़ी ताकत के रूप में उभरी थी। साल 1993 के विधानसभा में बसपा के 11 विधायक थे। साल 1998 में भी पार्टी के 11 विधायकों ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद बसपा प्रदेश की सियासत में निष्क्रिय होती चली गई। 2018 में बसपा के महज दो विधायक चुने गए थे। इनमें से भी एक संजीव कुशवाहा बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।

  • कमजोर होता गया वोट बैंक: 2003 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के दो विधायक जीते थे लेकिन उसे 7.26 प्रतिशत वोट मिले थे। 2008 में उसे 8.97 प्रतिशत मत मिले और सात विधायक जीते थे। 2013 में 6.29 प्रतिशत वोटों के साथ चार विधायक बसपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे। 2018 में वोट का आंकड़ा कम होकर 5.1 फीसदी रह गया।
  • कमजोर और दिशाहीन नेतृत्व: एमपी में बसपा के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण मजबूत नेतृत्व का अभाव है। दूसरे दलों से आए नेताओं की लोकप्रियता का फायदा उठाकर पार्टी विधानसभा में सदस्यों की संख्या बढ़ाने में सफल रही, लेकिन उन्हें अपने साथ बनाए रखने में नाकामयाब रही। मौका मिलते ही इसके विधायक दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए। पार्टी नेतृत्व की भी इसमें अहम भूमिका रही। चुनाव जीतने के बाद बीजेपी और कांग्रेस से अलग रहने की बजाय पार्टी नेतृत्व उन्हीं को अपना समर्थन देता रहा। इसके चलते बसपा एमपी में कभी अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं बना पाई।

यूपी में हार के बाद फिर हुई एक्टिव
2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बसपा नेतृत्व मध्य प्रदेश में फिर से एक्टिव हुआ। स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी ने बड़ी संख्या में अपने उम्मीदवार उतारे। हालांकि, पार्टी को ज्यादा कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद पार्टी ने ग्वालियर, चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र में ताकत बढ़ाने की रणनीति बनाई। इसके लिए जिला और विधानसभा स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलनों की शुरुआत हुई। निष्क्रिय पड़े संगठन में जान फूंकने के लिए नए पदाधिकारी नियुक्त किए गए। इस साल 26 अप्रैल से ग्वालियर से बहुजनराज अधिकार यात्रा की शुरुआत हुई। यात्रा का मकसद अनुसूचित जाति के वोट बैंक में सेंध लगाना था।

2023 के लिए है ये रणनीति
2023 के विधानसभा चुनावों के लिए बसपा की एक ही रणनीति है कि किसी भी दल की सरकार उसक समर्थन के बिना नहीं बने। उसकी नजर बीजेपी और कांग्रेस के वैसे नेताओं पर है जो अपनी पार्टियों से असंतुष्ट हैं। एमपी में अनुसूचित जाति के लिए 35 और अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। उसकी सारी रणनीति इन्हीं 82 सीटों पर केंद्रित है। यदि इन सीटों पर उसे उम्मीदों के अनुरूप कामयाबी मिली तो वह फिर से तीसरी ताकत के रूप में उभर सकती है।

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