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ई-कॉमर्स, जीएसटी पर केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी से कारोबारी नाराज

– कैट 11-12 जनवरी को कानपुर में राष्ट्रीय व्यापारी सम्मेलन का करेगा आयोजन

नई दिल्ली। देश के ई-कॉमर्स व्यापार (e-commerce business) में विदेशी धन पोषित ई-कॉमर्स कंपनियों (e-commerce companies) की लगातार मनमानी, नियम और कानून का उल्लंघन, जीएसटी की दिन-प्रतिदिन बढ़ रही जटिलता ने देश के व्यापारी समुदाय को बर्बादी के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। इन मुद्दों पर बार-बार आवाज उठाने के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों ने जिस प्रकार की चुप्पी साध रखी है, उससे देशभर के व्यापारी बेहद आक्रोशित हैं। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) (Confederation of All India Traders (CAIT)) ने रविवार को यह बात कही।

कैट ने इस स्थिति को अब और बर्दाश्त न करने की घोषणा के साथ इन ज्वलंत मुद्दों सहित अन्य व्यापारिक मसलों को लेकर एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष अभियान छेड़ने का ऐलान किया है। कारोबारी संगठन अपने रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए देश के सभी राज्यों के प्रमुख व्यापारी नेताओं का एक राष्ट्रीय सम्मेलन आगामी 11-12 जनवरी 2022 को उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी कानपुर में आयोजित करेगा। इस सम्मेलन में सभी राज्यों और विभिन्न उत्पादों के राष्ट्रीय संगठनों के करीब 100 व्यापारी नेता भाग लेंगे।


इसकी जानकारी देते हुए कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि देश की सभी सरकारों ने विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के आगे घुटने टेक दिए हैं। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले दो वर्षों से विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सार्वजनिक रूप से ई-कॉमर्स कंपनियों को चेतावनी देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके साथ ही नियम न मानने पर कानून अपना काम करेगा, की बात भी जोर-शोर से कही। लेकिन, अभी तक देशभर के व्यवसायी कड़े कानून के क्रियान्वित होने का इंतजार कर रहे हैं।

कैट महामंत्री का कहना है कि आखिर क्या कारण है कि नियम एवं कानून की अवहेलना करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियां गांजा सहित अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की खुलेआम बिक्री कर रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों को ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा जीएसटी राजस्व की क्षति पहुंचाने के सबूत दिए जाने के बाद भी सरकार चुप है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र और राज्य सरकार विदेशी दबाव में हैं, इसलिए ये विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां खुलकर अपनी मनमानी कर रही हैं।

प्रवीण खंडेलवाल का मानना है कि साल 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कैट को जिस जीएसटी के बारे में बताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की थी, उस जीएसटी का वर्तमान स्वरूप ठीक उसके उल्ट और बेहद जटिल हो गया है। जेटली के देहावसान के बाद जीएसटी काउंसिल ने व्यापारियों से सलाह-मशविरा करना छोड़ दिया है। ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं, जिनका कोई जमीनी आधार नहीं है। टेक्सटाइल और फुटवियर पर जीएसटी की दरों में वृद्धि का प्रस्ताव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

उन्होंने कहा कि देश की 85 फीसदी जनसंख्या एक हजार रुपये से कम कीमत के कपड़े और जूते-चप्पल खरीदती है। उन्हें अब पांच के बजाय 12 फीसदी जीएसटी जनवरी से देना होगा। इस नए कानून का सीधा असर देश के 85 फीसदी आबादी पर पड़ेगा। खंडेलवाल ने कहा कि यह निर्णय बेहद अतार्किक है, जिससे देशभर में फैले छोटे-छोटे निर्माताओं, कारीगरों और अन्य वर्गों की रोजी-रोटी बुरी तरह प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि जीएसटी का पूरा ढांचा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के विपरीत हो गया है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। कैट महामंत्री ने कहा कि देश की सभी राज्य सरकारों ने अपने लाभ की खातिर जीएसटी के स्वरूप को बेहद विकृत कर दिया है।

कैट महामंत्री ने कहा कि देशभर के व्यापारी सरकार की अस्पष्ट नीति से तंग आ चुके हैं और कोई विकल्प न होने के कारण एक विराट संघर्ष अभियान छेड़ने को मजबूर हो गए हैं। उन्होंने कहा कि आगामी 11-12 जनवरी को कानपुर में होने वाले राष्ट्रीय व्यापारी सम्मेलन में देश के प्रमुख व्यापारी नेता इसके लिए एक वृहद रणनीति तय करेंगे। इसके तहत देश के सभी राज्यों में भारत व्यापार स्वराज्य रथ यात्रा, राज्यस्तरीय विराट व्यापारी सम्मेलन, देशभर के बाजारों में विरोध जलूस, मशाल जलूस, धरने, सांसदों एवं विधायकों का घेराव, प्रदर्शन, राज्यस्तरीय व्यापार बंद एवं भारत व्यापार बंद की योजना सहित अन्य विरोध कार्यक्रमों को अंतिम रूप देंगे। साथ ही आगामी विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों को हराने की बड़ी योजना पर भी नीति तय करेंगे। (एजेंसी, हि.स.)

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