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राम मंदिर निर्माण के स्वरूप में किया गया परिवर्तन, यह है वजह…

अयोध्या । अयोध्या कारसेवक पुरम में विहिप, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और मंदिर आंदोलन से जुड़े प्रमुख साधु-संतों धर्म आचार्यों के साथ हुई बैठक में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई. राम जन्मभूमि परिसर में चल रहे मंदिर निर्माण के बारे में सभी साधु-संतों और ट्रस्ट के अन्य पदाधिकारियों को जानकारी दी गई.

बैठक में उपस्थित सभी संत महंतों और धर्मचार्यों को मकर संक्रांति से राम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण को लेकर जन सहयोग आंदोलन पर विशेष रूप से चर्चा की गई. साथ ही सभी उपस्थित महंत विभूतियों को यह बताया गया कि मंदिर निर्माण में आ रही बाधाओं से निपटने के लिए कंस्ट्रक्शन के इंजीनियर और ट्रस्ट के पदाधिकारियों के आपसी समन्वय से रास्ता ढूंढ लिया गया है.

दरअसल, पिछले दिनों मंदिर निर्माण की नींव की खुदाई पर नीचे बालू की मात्रा अधिक पाई गई थी जिससे मंदिर की दीवार और पिलरों के धसने की आशंका जताई गई थी. नदी का किनारा और भविष्य में हजारों साल तक मंदिर की नीव की मजबूती को बनाए रखने के लिए अब निर्माण के स्वरूप में परिवर्तन किया गया है. नीव के निर्माण से पहले नीव के मानक के अनुरूप नीव के समकक्ष ही कंक्रीट की एक बेहद मोटी दीवार का निर्माण किया जाएगा जिससे भविष्य में हजारों वर्षों तक मंदिर की नीव की दीवारों को कोई क्षति न पहुंच सके.

आपको बताते चलें कि मंदिर निर्माण के लिए 5 अगस्त को प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन किया था. उसके बाद मंदिर निर्माण के लिए तेजी के साथ कार्य शुरू हुआ और 12 सौ खंभों पर मंदिर का निर्माण किया जाना था. खंभों की टेस्टिंग में पाइलिंग हुई. खम्भों पर जब प्रेशर डाला गया तो खंबे खिसक गए जिसके बाद श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर की आयु को लेकर चिंता व्यक्त की. अब आईआईटी रुड़की, आईआईटी चेन्नई और केंद्रीय अनुसंधान विभाग इस पर रिसर्च कर रहा है और अब मंदिर निर्माण के लिए जमीन के नीचे रिटेनवॉल का निर्माण किया जाएगा. रिटेनिंग वॉल जमीन के नीचे पानी के प्रेशर से नीव को सुरक्षित रखेगी. सूत्रों की मानें तो 29 दिसंबर को एक अहम बैठक मंदिर निर्माण को लेकर होने वाली है और इस बैठक में यह तय होगा कि मंदिर के निर्माण की क्या प्रक्रिया होगी.

मंदिर निर्माण 70 एकड़ में होगा
आज संतों की बैठक में सबसे पहले मंदिर निर्माण की प्रक्रिया और मंदिर निर्माण के लिए अपनाए जा रहे तरीकों पर गंभीरता से चर्चा हुई. संतों को यह विश्वास दिलाया गया कि मंदिर का जो निर्माण होगा वह इतना मजबूत होगा कि हजारों वर्षों तक मंदिर सुरक्षित हो. इस दरमियान मंदिर के लिए कोर्ट के द्वारा दी गई जमीन के अलावा किसी तरीके का अधिग्रहण नहीं होगा इसका भी विश्वास संतो को ट्रस्ट ने दिलाया है. दावा किया गया है कि मंदिर निर्माण 70 एकड़ में होगा और मंदिर की मजबूती को ध्यान में रखकर किया जाएगा.

मंदिर निर्माण के लिए अवध प्रांत की बैठक में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने संतों को और ट्रस्ट के पदाधिकारियों को कारसेवक पुरम में बुलाया था. अब मंदिर निर्माण के लिए धन की आवश्यकता पर विश्व हिंदू परिषद के द्वारा जन जागरण अभियान मकर संक्रांति से चलाया जाएगा जिसमें हर वर्ग के लोगों से मंदिर निर्माण के लिए सहयोग मांगा जाएगा. इसकी रूपरेखा और इसके मार्गदर्शन के लिए संतों से सुझाव मांगे गए हैं. इसके लिए विश्व हिंदू परिषद के 4 लाख कार्यकर्ता 11 करोड़ परिवारों में जाकर के राम मंदिर निर्माण में लोगों का सहयोग मांगेंगे. श्री राम तीर्थ ट्रस्ट की तरफ से कार्यकर्ताओं को कूपन जारी किया जाएगा. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से जारी किए गए कूपन ₹10, ₹100 और ₹1000 के होंगे. कार्यकर्ताओं की मांग पर अपने-अपने क्षेत्रों में संत भी राम मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करेंगे.

70 एकड़ के अलावा भूमि का अधिग्रहण नहीं होगा?
राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं के द्वारा जन सहयोग के लिए सबसे पहले मकर संक्रांति को 14 जनवरी को दिल्ली के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पास जाएंगे और उनके राम मंदिर निर्माण के लिए सहयोग की अपील करेंगे. कुछ इसी तरीके से हर शहर के लोगों ने योजनाएं बना रखी हैं. उसी योजना के अनुरूप कार्यकर्ता काम करेंगे. साथ ही मंदिर निर्माण के लिए 70 एकड़ के अलावा भूमि का अधिग्रहण नहीं होगा? इस पर विराम लगाते हुए ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि भूमि के अधिग्रहण का कार्य सरकार का है और सरकार अधिग्रहण क्यों करेगी और किस उद्देश्य के लिए करेगी?

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने मंदिर निर्माण के कार्य को अभी जनवरी में शुरू होने की बात कही है. महासचिव चंपत राय ने कहा कि मंदिर के गर्भ गृह के पश्चिम में सरयू का जल प्रवाह है और जिस जगह पर मंदिर निर्माण होना है उसके पीछे 50 फीट गहराई है. जमीन के नीचे खुदाई होने पर 17 मीटर तक जलभराव है और उसके नीचे भुरभुरी बालू है जिस पर कोई भी चीज मजबूती के साथ खड़ी नहीं हो सकती. आईआईटी मुंबई, आईआईटी चेन्नई और आईआईटी दिल्ली, आईआईटी रुड़की साथ इस मामले पर वर्तमान और रिटायर्ड वैज्ञानिकों के साथ कार्यदाई संस्था एलएनटी और टाटा कंसल्टेंसी के साथ हमारे प्रोजेक्ट मैनेजर चर्चा कर रहे हैं.

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