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कोरोना काल में पंचायत चुनाव का औचित्य

– रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है। हर दिन पिछले दिनों से अधिक नए कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे हैं। पिछले दिन तक प्रदेश में एकदिन में सर्वाधिक 1946 करोना संक्रमित लोग मिले थे। जो एकदिन में मिले सबसे अधिक केस हैं। इस दिन प्रदेश में कोरोना से 15 लोगों की मौतें भी हुई है। राजस्थान में कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या बढ़कर एक लाख 21 हजार हो चुकी है। कोरोना से प्रदेश में मरने वालों का आंकड़ा 1382 तक पहुंच गया है। हालांकि कोरोना से प्रदेश में एक लाख तीन हजार लोग ठीक भी हो चुके हैं। लेकिन अभी भी प्रदेश में कोरोना के 18 हजार सक्रिय मरीजों का होना बड़ी चिंता की बात है। राजस्थान में कोरोना से ठीक होने वालों की रिकवरी रेट 83.12 प्रतिशत है। 16.88 प्रतिशत लोग प्रदेश के अस्पताल में कोरोना संक्रमण का उपचार करवा रहे हैं।

प्रदेश का हर आदमी कोरोना के बढ़ते प्रभाव से डरा हुआ है। कोरोना के कारण प्रदेश में जनजीवन अभीतक सामान्य नहीं हो पाया है। ऐसे माहौल में प्रदेश सरकार आगामी 28 सितंबर से 10 अक्टूबर तक प्रदेश में 3848 ग्राम पंचायतों में सरपंचों व पंचों के चुनाव करवाने जा रही है। जिससे कोरोना के और अधिक सामुदायिक फैलाव की आशंकाएं जताई जा रही हैं। कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण राज्य सरकार ने प्रदेश में सर्वाधिक कोरोना प्रभावित 11 जिलों में धारा 144 फिर से लागू कर दी है। ताकि लोगों के घरों से निकलने को नियंत्रित किया जा सके। मगर गांवों में होने वाले ग्राम पंचायतों के चुनाव में लोगों को नियंत्रित किया जाना मुश्किल है। चुनाव लड़ने वाला हर दावेदार अपने समर्थकों के साथ घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं।

हालांकि राज्य सरकार ने पंचायत चुनाव को लेकर गाइड लाइन जारी की है। जिसमें चुनाव प्रचार करने पर कई तरह की बंदिशें लगाई गई हैं। मगर गांव में जाकर हकीकत देखें तो चुनाव के लिए लगाई गई बंदिशें कहीं नजर नहीं आ रही हैं। झुंझुनू जिले की मलसीसर ग्राम पंचायत में चुनाव लड़ रहे एक उम्मीदवार द्वारा कोरोना गाइड लाइंस का पालन नहीं करने पर उपखंड अधिकारी शकुंतला चौधरी ने सरपंच प्रत्याशी डालचंद पर 8 हजार रूपये का जुर्माना लगाया है।

राज्य सरकार एक तरफ तो कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए गांव में लगातार अभियान चला रही है। लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रही है। प्रदेश के स्कूल, कॉलेज बंद पड़े हैं। आगामी 31 अक्टूबर तक प्रदेश में सभी तरह के बड़े आयोजनों पर रोक लगाई गई है। विवाह में 50 व अंतिम संस्कार में 20 लोगों की अधिकतम संख्या तय की गई है। शादी की सूचना समय से पहले उपखंड अधिकारी को देनी जरूरी है। ऐसी परिस्थिति में राज्य सरकार का प्रदेश में पंचायत चुनाव करवाने का निर्णय किसी के गले नहीं उतर रहा है। चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी व वोट देने वाले मतदाता दोनों डरे नजर आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पंचायत चुनाव में भी सरकार पूरी पंचायती राज प्रक्रिया के चुनाव नहीं करवा रही है। सिर्फ सरपंचों व पंचों के चुनाव करवा रही है। राजनैतिक दलों के चुनाव चिन्ह पर होने वाले ब्लॉक सदस्यों, जिला परिषद के सदस्यों, ब्लॉक प्रमुख व जिला परिषद के प्रमुखों के चुनाव की कहीं कोई चर्चा नहीं है।

प्रदेश में पंचायत चुनाव के साथ ही नगरीय निकायों के चुनाव भी लंबित हैं। सभी जगह प्रशासक लगे हुए हैं। राजस्थान हाईकोर्ट के भी निर्देश हैं कि नगरीय निकायों के चुनाव यथाशीघ्र करवाए जाएं। उसके बावजूद सरकार हाईकोर्ट में नगरीय निकाय चुनाव करवाने में असमर्थता जताते हुए कोरोना के बहाने उनको आगे खिसकाने का प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्र में पंचायतों के चुनाव करवा रही है। लोगों का मानना है कि यह सरकार की दोमुंही नीति है।

कोरोना के चलते ही सरकार ने विधानसभा के पिछले सत्र को समय पूर्व समाप्त कर दिया था। उस समय सरकार का कहना था कि कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण विधायकों की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए विधानसभा का सत्र समय पूर्व समाप्त किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ सरकार प्रदेश में पंचायतों के चुनाव करवा कर लोगों के जीवन को खतरे में डाल रही है। चुनाव के कारण प्रदेश में लगी आचार संहिता के चलते सरकारी कार्यालयों में लोगों के काम नहीं हो पा रहे हैं। इससे उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

कोरोना संक्रमण के चलते राजस्थान में अभी चुनाव कराने का सही समय नहीं है। प्रदेश में किसान फसल कटाई में जुट गए हैं। चुनाव के दौरान बहुत से नागरिकों के बेवजह कोरोना संक्रमित लोगों के संपर्क में आने की आशंका बनी रहेगी। चुनावी प्रक्रिया में लगे सरकारी कर्मचारियों की भी कोरोना जांच नहीं करवाई जाती है। चुनावी प्रक्रिया में लगा कोई कर्मचारी यदि कोरोना पॉजिटिव निकल जाता है तो उससे काफी लोगों के संक्रमित होने का खतरा बना रहता है।

सरकार द्वारा अभी चुनाव करवाना एक तरह से लोगों पर जबरन चुनाव थोपने जैसा है। नगरीय निकायों व पंचायत राज के अन्य चुनाव के साथ ही ग्राम पंचायतों में सरपंच और पंचों के चुनाव करवाए जाते तो प्रदेश के लोगों के लिए ज्यादा हितकर होते। लोगों का मानना है कि राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी में चल रही अंदरूनी राजनीतिक उठापटक से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए ही पंचायत चुनाव करवाए जा रहे हैं। आने वाले पंचायत चुनाव प्रदेश की जनता पर बहुत भारी पड़ने वाले हैं। चुनावों के दौरान कोरोना का सामुदायिक विस्तार होने की प्रबल आशंका बनी हुई है। बड़ी संख्या में लोग कोरोना संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। सरकार को समय रहते सभी बातों पर गंभीरतापूर्वक विचार करके ही पंचायत चुनाव करवाने का फैसला करना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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