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पुण्यतिथि : इस अंग्रेज महिला ने ब्रिटिश राज के खिलाफ उठाया था कदम, भारत की आजादी में थी खास भूमिका

नई दिल्‍ली । आज ही के दिन एनी बेसेंट (Annie Besant) का चेन्नई (Chennai) के पास 86 साल की उम्र में निधन हो गया. कहा जा सकता है कि जिस समय भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था,तब उन्होंने इस देश को जगाने में खास भूमिका अदा की. उन्हें हिंदू धर्म (Hindu Religion)और इसकी परंपरांओं से प्यार था.

वह पैदा तो लंदन में हुईं. लेकिन आकर रहीं भारत में. कहा जा सकता है कि जब अंग्रेजों के दौर में गुलाम भारत राजनीतिक तौर पर सो रहा था तो उन्होंने इसे जगाया. उनका नाम एनी बेसेंट था. इस देश में उनके काम के कारण देश के लोग उन्हें प्यार से मां वसंत कहने लगे तो महात्मा गांधी ने वसंत देवी की उपाधि दे डाली. वह कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं.

चेन्नई के पास अंडयार में उनका जब 20 सितंबर 1933 में निधन हुआ तब तक भारत में अंग्रेजों के खिलाफ जागृति की लहर मजबूती के साथ चलने लगी थी. आजादी की लड़ाई ब्रिटिश राज के होश उड़ाने लगी थी. सुनने में अजीब सा लगता है कि एक अंग्रेज महिला ने ब्रिटिश राज के खिलाफ इस देश को गुलामी की बेड़ियां तोड़ने में शुरुआती योगदान दिया लेकिन ये सच है.


एनी बेसेंट का जन्म 01 अक्टूबर 1847 के दिन लंदन में हुआ था. भारत की मिट्टी से उन्हें खासा लगाव था. ब्रिटिश राज में जिस तरह कई बार उन्होंने विरोध की आवाज बुलंद की, उसने उन्हें ‘आयरन लेडी’ की छवि भी दी. वह भारतीय दर्शन एवं हिन्दू धर्म से बहुत प्रभावित थीं. वह भारत को अपना घर कहती थीं. वह हमेशा कहती थीं कि वेद और उपनिषद का धर्म ही सच्चा मार्ग हैं.

पति से विचार नहीं मिले तो अलगाव हो गया
उनका बचपन पिता के निधन के बाद गरीबी में बिता. लेकिन अद्भुत प्रतिभा की धनी थीं. कई भाषाओं की जानकार. 1867 को एनी बेसेंट का विवाह 22 वर्ष की उम्र में गिरजाघर के पादरी ‘रेवेरेंड फ्रैंक बेसेंट’ से हुआ. लेकिन स्वाभाव के स्वतंत्र विचारों की होने के कारण पति से उनका विरोध रहता था. इसी वजह से उन्होंने पति से संबंध तोड़कर मानवता से नाता जोड़ने का संकल्प लिया.

आयरिश परिवार से ताल्लुक रखने वाली एनी बेसेंट की शादी इसलिए टूट गई,क्योंकि वो धर्म को लेकर स्वतंत्र विचारों वाली थीं. उनके पति कट्टर पादरी. शादी टूटने के बाद वो ताजिंदगी भारत में रहीं. इसी देश को अपनी कर्मभूमि बनाया.

भाषण से पहले ऊं नम: शिवाय कहती थीं
ईश्वर, बाइबिल और ईसाई धर्म पर से उनकी आस्था डिग गई. विवाह बहुत कटुता के बीच खत्म हुआ. 1873 में तलाक हो गया.धर्म के खिलाफ लेख लिखने पर मुक़दमा चला. भारत में रहते हुए उन्होंने खुद को कभी विदेशी नहीं समझा. हिन्दू धर्म पर व्याख्‍यान से पूर्व वह ‘ॐ नम: शिवाय’ का उच्चारण करती थीं. मेम साहब कहलाना पसंद नहीं करती थी.

भारत से प्रेम किया
एनी बेसेंट को अम्मा’ नाम उन्हें पसंद था. भारत से उन्होंने प्रेम किया. भारत में वो जिस तरह रहती थीं और यहां से लोगों की सेवा में जुटी रहती थीं, उसी के चलते भारतवासियों ने उन्हें ‘माँ बसंत’ कहना शुरू कर दिया. चूंकि उन्होंने भारत की आजादी में भी काफी योगदान दिया था लिहाजा गांधीजी सम्मान से उन्हें वसंत देवी कहने लगे.

बनारस में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की
बेसेंट ने काशी को अपना केंद्र बनाया. बनारस में ‘सेंट्रल हिन्दू कॉलेज’ की स्थापना उन्होंने ही की थी. सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जातीय व्यवस्था, विधवा विवाह आदि को दूर करने के लिए ‘ब्रदर्स ऑफ सर्विस’ नामक संस्था बनाई.वो यहां से दो पत्रिकाएं निकालती थीं और अंग्रेजों के खिलाफ लिखती थीं. वह कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं.

अंग्रेज सरकार ने नजरबंद कर दिया
1917 में ब्रिटिश सरकार ने एनी बेसेंट को उनके दो सहयोगियों के साथ नज़रबंद कर दिया गया. पूरे देश में सभाएं हुईं. जुलूस निकले, महिलाओं ने खुलकर भाग लिया.

जो प्रण वो अपने संस्था के लिए लोगों से कराती थीं
एनी बेसेंट ने जो संस्था बनाई थी, उसके प्रण के बारे में जानकर आज भी हैरानी होती है कि उन्होंने तब कितना क्रांतिकारी काम किया था. किस तरह भारतीय समाज को बदलने में भूमिका अदा की थी. इस संस्था में शामिल होने के लिए लोगों को इन बातों को मानते हुए शपथ पत्र पर साइन करने होते थे
– मैं जात पात पर आधारित छुआछूत नहीं करुंगा
– मैं अपने बेटों का विवाह 18 वर्ष से पहले नहीं करुंगा
– मैं अपनी बेटियों का विवाह 16 वर्ष से पहले नहीं करुंगा
– मैं पत्नी, पुत्रियों और कुटुम्ब की अन्य स्त्रियों को शिक्षा दिलाऊंगा. कन्या शिक्षा का प्रचार करूंगा. स्त्रियों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करुंगा.
– मैं जन साधारण में शिक्षा का प्रचार करुंगा
– मैं सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में वर्ग पर आधारित भेद-भाव को मिटाने का प्रयास करुंगा
– मैं सक्रिय रूप से उन सामाजिक बन्धनों का विरोध करुंगा, जो विधवा स्त्री के सामने आते हैं जब वह पुनर्विवाह करती हैं
– मैं कार्यकर्ताओं में आध्यात्मिक शिक्षा एवं सामाजिक और राजनीतिक उन्नति के क्षेत्र में एकता लाने का प्रयत्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व व निर्देशन में करुंगा

भारतीय राजनीति में प्रवेश
भारतीय राजनीति में उन्होंने 1914 में 68 वर्ष की उम्र में प्रवेश किया. उन्होंने एक असरदार ‘क्रांतिकारी आंदोलन होम रूल’ शुरू किया. ये आंदोलन ही भारतीय और कांग्रेस की राजनीति का नया जन्म माना जाता है. इस आंदोलन ने भारत की राजनीति तथा ब्रिटिश सरकार की नीतियों में नीतिगत परिवर्तन ला दिया.

बाद में गांधीजी से मतभेद भी हुए
गांधीजी से वैचारिक मतभेदों होने के कारण उन्होंने धीरे-धीरे कांग्रेस में सक्रियता कम कर दी. 1924 में गांधी जी के नेतृत्व में बेलगांव (कर्नाटक) में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. रेल की लंबी यात्रा कर डॉ. बेसेंट जब बेलगांव पहुंचीं तो अधिवेशन शुरू हो चुका था. लेकिन ये वो समय भी था जब गांधीजी राष्ट्रीय पटल पर मजबूती से उभर रहे थे. एनी बेसेंट के गांधीजी से इस बात पर मतभेद शुरू हुए कि दोनों अलग तौरतरीकों पर चलना चाहते थे. इसी वजह से उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया.

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