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पौराणिक तपोभूमि की पहचान बन पाते संभाग और जिले

– ऋतुपर्ण दवे

सच है, पहचान नाम से होती है, नाम में ही भावार्थ छुपा होता है, जो चलन-प्रचलन में आ जाता है। जब कोई नाम स्वनाम धन्य हो जाता है तब तो पहचान और भी किसी की मोहताज नहीं होती। इस समय देश में शहर, नगर, कस्बे, गांव यहां तक कि मोहल्लों के नाम बदले जाने की रवायत-सी चल पड़ी है। नाम पहले भी बदले जाते थे, आगे भी बदलते रहेंगे। लेकिन जब देश में भौगोलिक, सामाजिक और पौराणिक मान्यताओं और प्रमाणों से भरे क्षेत्र अपनी प्रामाणिकता से इतर दूसरे नामों से पहचाने जाएं तो थोड़ा अटपटा लगता है। हो सकता है कि इसके पीछे तमाम तरह की इच्छा शक्तियों का अभाव रहा हो। निहायत सीधे-सादे, आदिमजाति रहवासियों को इसकी जरूरत न समझ आई हो।

आज एक ऐसे क्षेत्र की मैं चर्चा कर रहा हूँ जिसका एक अलग नाम है, सम्मान है, प्रामाणिकता है और लोगों की भरपूर आस्था भी। बस नहीं है तो उस नाम से उस जगह अपनी कोई पहचान, विशिष्टता, गर्व की अनुभूति कराते सरकारी दस्तावेज, कार्यालय, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड और पट्टिकाएँ। हाँ, वहां से निकली पवित्र नदियों के नाम पर सैकड़ों मील दूर स्थित जिले और संभाग उस नाम से अपनी ख्याति जरूर बिखेर रहे हैं। विडंबना देखिए जो जनक हैं, उत्पत्ति स्थल हैं वह अपनी इस विशिष्टता को बताने, जताने और दिखाने को तरस रहे हैं।

बात पवित्र तीर्थ और महान ऋषि, मुनियों की तपोभूमि नर्मदा उद्गम स्थल अमरकण्टक की है। नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री कहा जाता है। नर्मदा उद्गम की अनेक मान्यताओं में से एक नर्मदा अष्टक के अनुसार भगवान शिव ध्यान में लीन थे तो नर्मदा उनके केशों से निकलीं। शिव और उनकी पुत्री नर्मदा, अमरकण्टक में निवास करते थे। नर्मदा का कंकड़-कंकड़ भी शंकर कहलाता है। कहानियां कई हैं, वृहद हैं जो अलग व विस्तार का विषय हैं। अमरकण्टक से ही सोन और जोहिला नदी का भी उद्गम हुआ। इसी तरह नर्मदा, सोन, जोहिला और अमरकण्टक सभी एक-दूसरे के पूरक हैं। पूरे ब्रम्हाण्ड में यह नाम यत्र-तत्र सर्वत्र हैं। बस नहीं है तो उस संभाग, जिले और अंचल के नाम की पहचान में जुड़ा होना। यह तो बहुत पहले हो जाना था, लेकिन अभी तक नहीं हुआ।

जागरूकता देखिए अमरकण्टक से निकली नर्मदा के नाम पर सैकड़ों किमी दूर गुजरात का एक जिला है। मप्र में होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम हो जाएगा संभाग पहले से है। उत्तर प्रदेश में सोनभद्र तो बिहार में डेहरी ऑन सोन की पहचान भी अमरकण्टक की नदियां हैं। जहाँ-जहाँ से भी नर्मदा और सोन गईं उस क्षेत्र की पहचान और जीवनरेखा बनती गईं, बस जिस संभाग, जिले से उत्पत्ति हुई या जन्मीं उन जिलों या संभाग का नाम इन पर नहीं हो पाया! यह बेहद हैरान करता है। यदि रेवाखण्ड कहलाने वाले विन्ध्य के इस नर्मदा-सोन उद्गम क्षेत्र की पहचान भी इन पवित्र व आस्था से सराबोर नामों से हो जाती तो विशिष्टता के साथ एक अलग ही धाक व पहचान बनती फिर हमारे देश में तो नाम का अलग महत्व ही होता है। प्रगति, सफलता के लिए भी नाम अंक,वास्तु और शास्त्रों से जोड़कर रखे जाते हैं।

शहडोल संभाग, गठन के बाद 14 जून, 2008 को अस्तित्व में आया। यही वह समय था जब इस नए संभाग की शुरुआत नए नाम नर्मदा, नर्मदाखण्ड, नर्मदांचल, नर्मदा-सोन संभाग जैसे पवित्र व विशिष्ट नामों को जोड़कर हो सकती थी। इसी तरह नर्मदा उद्गम जिला अनूपपुर का नाम भी रेवांचल, नर्मदा-सोनांचल या रेवाखण्ड कर जिले की पहचान बन सकती है। दरअसल सच तो यह है कि नर्मदा-सोन उद्गम, आरण्यक संस्कृति, तटवर्ती वनों, मार्कण्डेय, कपिल, भृगु, जमदाग्नि आदि अनेक ऋषियों की तपोभूमि, उनेकी यज्ञवेदियों के आकाश में मंडराते पवित्र धुएं के साक्षी है। पुराणों में वर्णित है कि जो पुण्य गंगा में स्नान से मिलता है, वह नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है। यही पश्चिम की ओर बहती एकमात्र नदी है जो भारत की 5 सबसे पवित्र नदियों में एक है।

विश्व मानचित्र पर विशिष्टता समेटे मेकल पर्वत श्रृंखला पर अवस्थित अमरकण्टक और यह पूरा क्षेत्र जितना रमणीय, दर्शनीय और प्राकृतिक धरोहरों से भरा-पूरा है उतना ही सादगी, आडंबर और राजनीतिक प्रपंचों से भी दूर है। निरा आदिम जाति, सीधे-सादे, सहज ऐसे समाज के चलते ही इस दौर में भी यहाँ ज्यादा बाहरी प्रभाव नहीं दिखता है। प्रगति के साथ कुछ बदलाव जरूर हुए हैं लेकिन अभी भी पूरा अंचल अपनी पौराणिक विशेषताओं और ख्यातियों को ज्यों का त्यों समेटे हुए है। अमरकण्टक विंध्य, सतपुड़ा, और मेकल की पहाड़ियों का मिलन स्थल है। पूरा दृश्य मन मोह लेने वाला होता है। अमरकंटक स्वयं एक तीर्थराज है।

कितना अच्छा होता कि शहडोल संभाग का नाम उसकी पहचान अमरकण्टक के अनुरूप अमरकण्टक संभाग, नर्मदा-सोन संभाग, नर्मदा-रेवांखण्ड संभाग या इन्हीं प्रकृति प्रदत्त पवित्र स्थानों पर होता। इसी तरह अनूपपुर जिले का नाम भी रेवांचल, मेकल सुता या नर्मदा-सोन-जोहिलांचल जिला होता। शहडोल जिला भी अपनी पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है। यहां पर महाभारत काल में पाण्डवों ने विराट नगर में अज्ञातवास बिताया था। इस दौरान रोजाना नए तालाब की खुदाई करते और नया पानी पीते। साल भर में 365 तालाबों की खुदाई हुई थी।

पूरे क्षेत्र में बहुतायात से मिलते तालाब महाभारत काल के बताए जाते हैं। कल्चुरी राजाओं का बनाया विराट मंदिर शहडोल जिले के सोहागपुर में है जिसे विराठेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। इसका निर्माण एक चबूतरे पर किया गया है जिसके भू-विन्यास में अर्धमंडप, महामंडप, अन्तराल और वर्गाकार गर्भगृह हैं। शिल्पकला शानदार है, मुख्यद्वार में सबसे उपर चतुर्भुजी विष्णु जी हैं, दाईं ओर गणेश जी और बाईं ओर वीणावादिनी हैं। मंदिर की बाहरी दीवारें खजुराहो मंदिर की तरह हैं। सबसे आकर्षण बहुभुजायुक्त नृत्यरत शिव प्रतिमा है। विराट मंदिर का निर्माण 9वीं 10वीं शताब्दी में कलचुरी शासक युवराज देव प्रथम ने गोलकी मठ के आचार्य के समक्ष पेश करने के हेतु बनवाया था। यदि शहडोल जिले का नाम विराट नगर कर वास्तविक पहचान दे दी जाती। उमरिया जिला नेशनल पार्क बांधवगढ़ के लिए जाना जाता है। बांधवगढ़ नाम एक चट्टानी पहाड़ के चलते पड़ा।

माना जाता है कि लंका पर नजर रखने के लिए यह पहाड़ी भगवान राम द्वारा लक्ष्मण को दी गई थी। यह वन क्षेत्र अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए मशहूर है यहां बाघों की भी भरपूर संख्या है और दूसरे वन्य जीव बहुतायत में हैं। 1968 में इसे राष्ट्रीय उद्यान बनाकर नाम बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। पौराणिक मान्यताओं के साथ बांधवगढ़ भी विशिष्ट है। यदि उमरिया जिले का नाम भी बांधवगढ़ कर दिया जाता तो धार्मिक मान्यताओं और विशिष्टताओं वाले समूचे अंचल को उसकी असली पहचान मिल जाती।

भले ही दस्तावेजों में या इन प्रामाणिक और पौराणिक स्थानों पर तीनों जिले या संभाग का नाम उन अंचलों की विशेषताओं से इतर हों लेकिन रेलवे ने काफी पहले ही दूरदर्शिता दिखा एक तरह से मान्यता दी और गुजरने वाली दो लंबी दूरी की यात्री गाड़ियों को क्रमशः नर्मदा एक्सप्रेस व अमरकण्टक एक्सप्रेस नाम देकर विशिष्ट पहचान दी। इसी तरह चचाई थर्मल पॉवर प्लाण्ट ने अमरकण्टक नाम दिया। काश, कुछ इसी तरह प्रशासनिक और राजनीतिक पहल भी होती और नर्मदा-सोन के क्षेत्र को वही पहचान मिलती जो उसका अधिकार है तो अपनी पहचान को तरस रहे देश के इन विशेष क्षेत्रों का मान भी बढ़ता और विश्व का ध्यान भी। काश जनप्रतिनिधि और नेतृत्वकर्ता विशिष्टताओं से भरे नामों और क्षेत्रों के बारे में सोचते समय रेवाखण्ड के इस धार्मिक, पौराणिक और वेदों में वर्णित स्थानों पर विचार कर शहडोल संभाग और अनूपपुर, शहडोल व उमरिया जिले को उनकी विशेषताओं के चलते जनभावनाओं, मान्यताओं, पौराणिक वर्णनानुसार नया नाम देकर वंचित अधिकार और विशिष्ट पहचान दिला पाते तो कितना अच्छा होता। बस अब देखना है कि कब इस बेहद सीधे आदिम आदिवासी अंचल रेवाखण्ड को उसकी असली पहचान मिलती है।

थोड़ी उम्मीद जगी है क्योंकि शहडोल के वर्तमान कमिश्नर राजीव शर्मा जो खुद प्रख्यात लेखक, विचारक, दार्शनिक और जानकार हैं। आदि शंकराचार्य के जीवन पर लिखी टॉप सेलर्स पुस्तक विद्रोही संन्यासी के लेखक हैं। बहुत जल्द उनकी नई पुस्तक वर्ड ऑफ बांधवगढ़ भी आने वाली है, पूरे क्षेत्र से परिचित हैं, वही सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इस भावना को आगे बढ़ाते और अंचल को उसकी पहचान दिलाने का स्तुत्य प्रयत्न करते, जो असंभव नहीं दिखता। बस इंतजार है कि कब नर्मदा-सोन-जोहिला का उद्गम अपने नाम के अनुरूप नयी पहचान से दस्तावेजों में जाना जाएगा ताकि दुनिया में कहीं भी विन्ध्य के इस वैभव की चर्चा होते ही लोग सरकारी पहचान में शामिल इन नामों से जान सकें और पहुंच सकें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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