इंदौर (Indore)। घायल बाघ और तेंदुए (tiger and leopard) की मौजूदगी संबंधित प्रमाण मिलने के बाद भी वन विभाग का अमला संदिग्ध वन क्षेत्र में सिर्फ कैमरे और पिंजरा लगाकर 23 दिन से अभी तक खाली हाथ बैठा हुआ है। जबकि वन विभाग के ही अनुभवी कर्मचारियों का कहना है कि बाघ और तेंदुए की तलाश के लिए टीम को हाथी और खोजी श्वान की जरूरत होती है, लेकिन विभाग जंगलों में सडक़ों पर घूमकर तलाश कर रहा है।
इंदौर वन विभाग की अन्य रेंज के अनुभवी अधिकारियों ने बताया कि जब इतने दिनों बाद भी बाघ-तेंदुए पकड़ में नहीं आ रहे तो वन विभाग को सिर्फ कैमरे और पिंजरे के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। बाघ-तेंदुए को पकडऩे के लिए भोपाल में बैठे आला अधिकारियों से अनुमति लेकर आसपास के अन्य जिलों के वन विभाग के सीनियर और अनुभवी अधिकारियों के अलावा हाथी और ट्रेंड श्वानों को लेकर सर्चिंग मिशन चलाना चाहिए।
हाथी को हो जाता है बाघ तेंदुए की मौजूदगी का अहसास
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार कुछ साल पहले देवास जिले के जंगलों में बाघ-तेंदुए की तलाश के लिए हाथी व ट्रेंड श्वानों की मदद ली गई थी। यह अभियान सफल भी रहा था। दरअसल हाथियों में बाघ-तेंदुए की मौजूदगी को सूंघने की विशेष कुदरती क्षमता होती है। जिस तरफ बाघ-तेंदुए की मौजूदगी होती है तो हाथी ठिठक जाता है। अनुभवी वनकर्मी हाथी का इशारा समझते ही सतर्क हो जाते हैं। फिर ट्रेंड श्वानों को दौड़ा देते हैं। हाथी की मदद लेने का अन्य फायदा भी है। हाथी की पीठ पर बैठकर बाघ-तेंदुए को ढूंढऩा आसान और ज्यादा सुरक्षित होता है।
बाघ की सुरक्षा जरूरी
वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए सरकार लाखों रुपए खर्च करती है। घावों के कारण, संक्रमण फैलने, घायल बाघ के बीमार होने या मरने की आशंका भी बढ़ जाती है। इसलिए वन विभाग के अमले को उसकी सुरक्षा करना चाहिए।
