उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

यदि चरक में आग लगी तो भी कई की जान खतरे में पड़ सकती है

  • प्रतिदिन बच्चे और महिलाएँ दर्जनों की संख्या में भर्ती होने आते हैं-फायर सिस्टम की नींव भी कमजोर

उज्जैन। कल भोपाल के हमीदिया अस्पताल में आगजनी हुई थी और 4 बच्चे मर गए तथा उसके बाद अग्रिबाण द्वारा चरक चिकित्सालय की अग्रि सुरक्षा देखी गई तो यहाँ भी दीया तले अंधेरा ही है और कभी भी दुर्घटना हो सकती है। कल रात्रि में हमीदिया अस्पताल भोपाल में बच्चों के वार्ड में आग लगी। इस आग में 4 मासूम बच्चों की मौत हो गई जिनकी उम्र 24 घंटे से 9 दिन की थी। यह सभी बच्चे एसएनसीयू वार्ड में उपचार ले रहे थे। अचानक शॉर्ट सर्किट से लगी आग में इन बच्चों को बचाने की कोशिश की गई लेकिन आग बुझाने वाले संयंत्र बंद होने के कारण चार बच्चों की मौत हो गई और कई बच्चे आग से घायल हो गए। ऐसा ही हादसा कभी भी उज्जैन के सात मंजिला चरक अस्पताल में हो सकता है। यहाँ पर दूसरी मंजिल और तीसरी मंजिल पर बच्चों के लिए वार्ड बने हुए हैं। दूसरी मंजिल पर जो वार्ड बना है उसमें जीरो से लेकर 13 वर्ष तक के बच्चों का विभिन्न बीमारियों का इलाज किया जाता है, वहीं तीसरी मंजिल पर एसएनसीयू वार्ड बना हुआ है।



इस वार्ड में जीरो से लेकर 1 वर्ष तक के बच्चों को रखा जाता है और इनमें वह बच्चे भी शामिल रहते हैं जिनकी कुछ दिन पहले डिलीवरी होती है। इन बच्चों को विभिन्न उपचार इस एनसी एसएनसीयू वार्ड में दिए जाते हैं। दूसरी और तीसरी मंजिल पर बने इन वार्डों में आग बुझाने के संयंत्र नाम के लिए लगा रखे हैं लेकिन जब बड़ी आग लगी तो यह संयंत्र काम नहीं करेंगे। फायर ऑफिसर ए.एस. राजपूत ने बताया यहाँ का फायर सिस्टम ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है, क्योंकि फायर स्टेशन के लिए बनाए गए पंप हाउस की नींव ही कमजोर है। इसके चलते जब आग बुझाने के लिए किसका उपयोग किया जाएगा तो यहाँ वाइब्रेशन होगा और ठीक ढंग से स्प्रिंकलर में पानी नहीं जा पाएगा और आग ऐसे में बुझ नहीं पाएगी, वहीं दूसरी और तीसरी मंजिल पर वार्ड होने के कारण यदि आग लगी तो बच्चों को लेकर कहीं भाग भी नहीं सकते हैं और वहीं पास में कोई ऐसी इमारत नहीं है जिसमें बच्चों को रेस्क्यू कराया जा सके, ऐसे में अस्पताल प्रशासन लगता है कि इस अस्पताल में किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है। अस्पताल प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों से जब भी इस संबंध में पूछा जाता है तो वह यह कहते हैं कि यहाँ का फायर सिस्टम चालू है जबकि फायर ऑफिसर से न तो यहाँ की एनओसी ली गई है और ना ही इस सिस्टम को टीम से चेक कराया गया है। ऐसे में यदि आग लगी तो इस हादसे की जिम्मेदारी कौन लेगा। कलेक्टर को चाहिए कि यहाँ के फायर सिस्टम की जाँच करवाएं और इसे चालू करवाएं। ताकि आने वाले समय में यदि चरक अस्पताल में इस तरह का हादसा होता है तो मासूम बच्चों को बचाया जा सके। फायर ऑफिसर श्री राजपूत ने यह भी बताया कि चरक अस्पताल के अलावा अन्य सरकारी अस्पतालों में भी आग बुझाने के संसाधन नहीं है, वहीं शहर के तीन निजी अस्पतालों में भी आग बुझाने की संसाधन नहीं है। इनमें मेवाड़ अस्पताल सहित अन्य दो अस्पताल है जिन्हें अभी तक फायर एनओसी नहीं ली है।

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