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मप्र की पांच हस्तियां पद्मश्री से होंगी सम्मानित

भोपाल। केन्द्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म अलंकरणों की घोषणा (Announcement of Padma Awards) कर दी गई है। मध्य प्रदेश की पांच हस्तियों (Five celebrities of Madhya Pradesh) को पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा (Padma Shri award announcement) की गई है। इनमें तीन लोगों को कला, एक को साहित्य और भोपाल के डॉ. एनपी मिश्रा को मेडिसिन के क्षेत्र में मरणोपरांत इस सम्मान से नवाजा जाएगा।

केन्द्र सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए 128 लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। इनमें 4 लोगों को पद्म विभूषण, 17 लोगों को पद्म भूषण तथा 107 लोगों को पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। इनमें मध्य प्रदेश की पांच हस्तियां भी शामिल हैं। राज्य में चिकित्सा जगत में पितामह के नाम से पहचाने जाने वाले डॉ. एनपी मिश्रा को मरणोपरांत पद्मश्री अवार्ड दिया जाएगा। मध्यप्रदेश के अर्जुन सिंह धुर्वे (कला), अवध किशोर जाड़िया (साहित्य और शिक्षा ), रामसहाय पांडे (कला), दुर्गा बाई व्याम (कला) को भी पद्मश्री अवार्ड मिलेगा।


डॉ एनपी मिश्रा को मध्य प्रदेश में चिकित्सा क्षेत्र का पितामह कहा जाता है। उनके पढ़ाए छात्र देश-दुनिया में ख्यातनाम डॉक्टर हैं। डॉक्टर ने कई देशों में जाकर चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े शोध पत्र प्रस्तुत किए थे। भोपाल में वर्ष 1984 में हुई भीषण गैस त्रासदी के दौरान मरीजों क इलाज में उनकी बड़ी भूमिका थी। चिकित्सकों को भी यह जानकारी नहीं थी कि घातक मिथाइल आइसासाइनाइड गैस के दुष्प्रभाव इलाज कैसे करना है। तब उन्होंने अमेरिका और दूसरे देश के डॉक्टरों से बात कर गैस के बारे में इलाज पूछा था। वह लगातार 2 से 3 दिन तक बिना सोए वह मरीजों के इलाज में जुटे रहे।

उस समय वह जीएमसी में मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर थे। डॉ. मिश्रा की खासियत यह थी कि वह 90 साल की उम्र में भी शोध और चिकित्सा क्षेत्र में आ रही अद्यतन जानकारियों से रूबरू रहते थे। यही वजह है कि चिकित्सकों की हर कॉन्फ्रेंस ने आज भी उन्हें लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता था। कोरोना संक्रमण के दौरान रेमडेसिविर इंजेक्शन के प्रभावी होने की बात उन्होंने शुरुआत में ही कही थी।

दुर्गाबाई की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। उनके चित्र अधिकांशत: गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल से लिए गए हैं। दुर्गाबाई को लोककथाओं को चित्रित करने में भी मजा आता है। इसके लिए वह अपनी दादी की आभारी हैं जो उन्हें अनेक कहानियां कहती थीं। दुर्गाबाई की कृति उनके जन्म स्थान बुरबासपुर, मध्यप्रदेश के मंडला जिले के गांव पर आधारित है। दुर्गाबाई जब छह वर्ष की थीं तभी से उन्होंने अपनी माता के बगल में बैठकर डिगना की कला सीखी जो शादी-विवाहों और उत्सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित किए जाने वाली परंपरागत डिजाइन है।

पद्मश्री अवॉर्ड की घोषणा के बाद दुर्गा बाई के भोपाल के कोटरा कमल नगर स्थित घर पर उत्साह का माहौल है। मोहल्लावासी और रिश्तेदार बैंड बाजा के साथ उनके घर पहुंचकर उन्हें बधाई दे रहे हैं। दुर्गा बाई ने कहा कि यह मेरा नहीं इस कला डिगना का सम्मान है। जब तक जीवित रहूंगी। यह कला करती रहूंगी और इसे दुनिया में फैलाती रहूंगी। पति सुभाष सिंह व्याम के सपोर्ट और साथ से ही यह कर पाई और सम्मान तक पहुंच पाई। अंतिम सांस तक यह काम करती रहूंगी।

सागर के कनेरा देव निवासी 94 वर्षीय रामसहाय पांडेय को पदम श्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की जानकारी मिलते ही पूरे शहर में खुशी छा गई। पांडेय के परिचित व कई लोग उन्हें बधाई संदेश देने पहुंचे। वहीं पांडेय भी यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से गदगद थे। पांडेय ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि उनकी लगन व मेहनत को देखते हुए कभी न कभी इसके लिए उन्हें यह सम्मान दिया जाएगा। 94 वर्षीय श्री पांडेय 17-18 साल की उम्र से राई नृत्य करते आ रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सामाजिक बहिष्कार झेला, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

वे लगातार राई नृत्य के अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का काम करते रहे। आज बुंदेलखंड का यह नृत्य अपनी अलग पहचान बना चुका है, उसमें पांडेय का बहुत बड़ा श्रेय जाता है। पांडेय का जन्म 11 मार्च 1933 को मडधार पठा में हुआ था। इनके पिता का नाम लालजू पांडेय व माता का नाम करैयाबाली था। इनके पिता खेती व गांव के ही मालगुजार के यहां काम करते थे। पांडेय अपने चार भाइयों में सबसे छोटे थे। इनकी बड़ी बहन कनेदादेव में ब्याही थी, जहां आकर वे बाद में रहने लगे। पांडेय ने बचपन में ही मृदंग बजाना सीखा। इसके बाद वर्ष 17-18 साल की उम्र से धीरे-धीरे राई नृत्य के प्रति लगाव हुआ। वहीं से वह राई नृत्य करने के लिए जाने लगे। इससे वे पूरे क्षेत्र में ख्यात हो गए।

पांडेय जब शादी योग्य यानी 20-21 साल के हुए तो राई नृत्य करने की वजह से ब्राह्मण समाज में उन्हें कोई लड़की देने तैयार नहीं था। उन्होंने एक तरह से सामाजिक प्रतिबंध झेला। बड़ी मुश्किश्ल से घाना गांव निवासी पं. केशवदास अपनी लड़की इस शर्म पर शादी करने तैयार हुए कि अब वह राई नहीं करेगा, लेकिन शादी के बाद भी रामसहाय ने राई नृत्य बंद नहीं किया तो उन्हें उनके बड़े भाई ने परेशान होकर घर से निकाल दिया। इसके बाद श्री पांडेय कनेरा देव आए। जहां स्थानीय घोषी समाज की मदद से उन्हें जगह मिली। यहां उन्होंने अपनी जिंदगी शुरू की। पांडेय के पांच पुत्र व चार पुत्र हुए, राई नृत्य के चलते इनकी शादी में भी परेशानी हुई।

वहीं, आदिवासी बहुल जिले डिंडौरी के दो आदिवासी कलाकारों को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। जिले के बैगाचक क्षेत्र धुरकुटा निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक अर्जुन सिंह धुर्वे को पद्मश्री के लिए चुना गया है। सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग डा. संतोष शुक्ला ने बताया कि अर्जुन सिंह बैगा जनजाति की पहले पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक रहे। उनके द्वारा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित अन्य अतिथियों के कार्यक्रमों में बैगा नृत्य की अपनी टीम के साथ आकर्षक प्रस्तुति दी थी। अर्जुन सिंह समाजशास्त्र से एमए के साथ बीएड की शिक्षा प्राप्त की। 12 अगस्त 1953 को जन्मे अर्जुन सिंह के पिता का नाम परसा सिंह धुर्वे और माता का नाम लहरो बाई धुर्वे है। उनकी पत्नी का नाम लमिया बाई धुर्वे है।

अर्जुन सिंह 19 नवंबर 1976 में सहायक शिक्षक के पद पर पदस्थ हुए। 1994 में उच्च श्रेणी शिक्षक और वर्ष 2008 में प्रधान पाठक पद पर पदोन्नत हुए। 31 अगस्त 2015 को अर्जुन सिंह सेवानिवृत्त हो गए। वर्ष 1993-94 में उन्हें जनजातीय संपदा के कलात्मक संवर्धन विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा तुलसी सम्मान से विभूषित किया गया। बैगा प्रधानी नृत्य की प्रस्तुति जो कि बैगा जनजाति का मुख्य नृत्य है, जिसमें बैल, मोर, हाथी, घोड़ा इत्यादि के मुखौटे में राज्य व राज्य के बाहर इन्होंने प्रस्तुति दी थी। इस कला को देश भर में सराहा गया था।

डॉ. अवध किशोर जड़िया छतरपुर जिले के हरपालपुर के हैं। हरपालपुर निवासी अवध किशोर बुंदेली कवि हैं। (एजेंसी, हि.स.)

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