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इंसान के पहुंचने के पांच दशक बाद भी चांद का सफर बेहद मुश्किल

मेलबर्न (Melbourne)। भारत ने 2019 में चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यान (spaceship on drama) उतारने की कोशिश की, जो चांद की बंजर सतह पर मलबे की एक किलोमीटर लंबी लकीर में बदल कर रह गया।

बता दें कि 2023 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-3 के साथ इस नाकमायाबी की लकीर को कामयाबी की ऐसी लंबी लकीर में तब्दील कर दिया, जिसके बराबर कभी कोई दूसरी लकीर नहीं खींची जा सकेगी।
भारत दुनिया का पहला देश है, जो पृथ्वी के चट्टानी पड़ोसी के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सही सलामत उतरने में कामयाब रहा। भारत की यह कामयाबी इसलिए भी बड़ी है, क्योंकि दुनिया के करीब आधे चंद्र अभियान विफल रहे हैं। अब तक कुल 146 चंद्र अभियान लॉन्च हुए, जिनमें से 60 असफल रहे।



ऑस्ट्रेलिया के आरएमआईटी विश्वविद्यालय की डॉ. गेल आइल्स कहती हैं कि धरती को छोड़कर चंद्रमा एकमात्र खगोलीय पिंड है, जहां अब तक मनुष्य के पैर पड़े हैं। वहां सबसे पहले जाना समझ में भी आता है, क्योंकि यह करीब 4,00,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हमारा सबसे निकटतम पिंड है। दिलचस्प बात यह है कि अभी दुनिया के सिर्फ चार देश ही चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर पाए हैं। वहीं, इसका दक्षिणी ध्रुव अब भी रहस्यमयी है, जहां सिर्फ भारत ही पहुंच पाया है।

चंद्रमा पर 60 साल पहले सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश रूस भी हाल ही में लूना-25 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने में कामयाब नहीं हुआ। इससे यह बात साफ हो जाती है कि चंद्र अभियान अब भी मुश्किल और खतरनाक है। यह सिक्के को हवा में उछालने जैसा है, जिसकी कौन सी सतह ऊपर आएगी कोई यकीन के साथ नहीं बता सकता। हाल के वर्षों में अमेरिका, जापान, संयुक्त अरब अमीरात, इस्राइल, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली के मिशन असफल रहे।

एक जोखिम भरा काम
60 साल और 58 चंद्र अभियानों का अनुभव रखने के बाद भी रूस का लूना-25 क्रैश हो गया है। बेहद उन्नत इस्राइल का बेरेशीट लैंडर भी 2019 में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इससे साफ है कि अंतरिक्ष अभियान एक जोखिम भरा काम है। खासतौर पर चंद्र अभियान, क्योंकि यहां सफलता की संभावना 50 फीसदी ही रहती है।

अभियान विफल होना सामान्य
आइल्स कहती हैं कि दुनिया में 1.5 अरब से ज्यादा कारें हैं और 40 हजार से ज्यादा विमान, जो हर रोज चलते हैं, फिर भी हादसों के शिकार होते हैं। जबकि, दुनिया में अब तक सिर्फ 20 हजार अंतरिक्ष अभियान हुए हैं, ऐेसे में इनका विफल होना उतना ही सामान्य है, जितना किसी कार या विमान का दुर्घटनाग्रस्त होना। हम अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अभी बहुत प्राथमिक दौर में हैं।

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