नई दिल्ली । बिजली कंपनियों (power companies) पर लाखों करोड़ की देनदारी और मुफ्त बिजली (free electricity) देने की राज्यों में मची होड़ ने देश को बिजली संकट (power crisis) की मुसीबत में धकेला है। एक लाख करोड़ से अधिक देनदारी के बावजूद विद्युत कंपनियां राज्यों को बिजली आपूर्ति कर रही हैं, तो वोटों की सियासत में किसानों से लेकर औद्योगिक क्षेत्रों (industrial areas) तक कहीं मुफ्त बिजली तो कहीं छूट दी जा रही है। ऐसे में आग बरसाते पारे, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों और कम कोयला भंडार का बिना समाधान निकले सुधार की गुंजाइश नहीं है।
220 गीगावाट बिजली चाहिए मई-जून में
भारत की बिजली मांग बढ़कर 26 अप्रैल को सर्वाधिक 201 गीगावाट हो गई। जैसे-जैसे पारा चढ़ता जा रहा है, मई-जून तक इसके 215-220 गीगावाट हो जाने के आसार हैं। पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड की 29 अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार देश में इस समय पीक डिमांड के समय 10778 मेगावाट बिजली की कमी है।
इस समय 165 में से 106 ताप विद्युत संयंत्र कोयले की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। देश में चार लाख मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है, मगर इस समय उत्पादन महज 221359 मेगावाट ही है। कोयले के अभाव में 68600 मेगावाट बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा।
86 इकाइयों के पास बहुत कम कोयला
150 घरेलू कोयला आधारित इकाइयों में से 86 के पास 25% से भी कम कोयला बचा है।
कोयला आपूर्ति बड़ी समस्या
- देश के पास अभी 30 दिन का कोयला स्टॉक है। अकेले कोल इंडिया के पास 72.5 मिलियन टन का स्टॉक है।
- बिजली उत्पादन के लिए प्रतिदिन 22 लाख टन कोयले की जरूरत है। समस्या इसके आपूर्ति की है।
- अब रेलवे ने मोर्चा संभाला है। आपूर्ति के लिए 46 पैसेंजर ट्रेन रद्द कर एक लाख वैगन के इंतजाम किए।