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ओडिशा के 3 मजदूरों की दिखी बड़ी लाचारी, 1000 किमी पैदल चलकर पहुंचे बेंगलुरु से कालाहांडी

भुवनेश्वर (Bhubaneswar) । गरीबी के चलते लोगों को बहुत सारी मुश्किलों से होकर गुजरना पड़ता है. ऐसी ही एक घटना सामने आई है, ओडिशा के रहने वाले तीन मजदूरों (laborers) की, जिन्होंने पैसा नहीं होने के चलते करीब 1000 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर तय की है. दरअसल, तीनों मजदूर ओडिशा के कालाहांडी (Kalahandi of Odisha) जिले के जयपटना ब्लॉक से नौकरी की तलाश में बेंगलुरु गए. लेकिन काम नहीं मिलने के चलते उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.

काम खोजने के लिए सिलसिले में गए थे बेंगलुरु
रिपोर्ट के मुताबिक धान की कटाई का मौसम पूरा होने के बाद काम नहीं पाने के कारण कटार मांझी, बुडू मांझी और भिकारी मांझी रोजी-रोजी कमाने के लिए जनवरी के मध्य में सुदूर बेंगलुरु चले गए. हालांकि रविवार को वे अपने परिवारों के साथ वापस आए गए. तीनों जितने ही गरीब हैं, उनकी कहानी कठिनाइयों, संघर्ष और शोषण से उतनी ही भरी हुई है. तीनों मजदूरों ने बेंगलुरु से कालाहांडी तक की एक हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी सात दिन में पैदल चलकर किया. हालांकि इस दौरान रास्ते में जो भी मदद मिलती रही, उसी पर निर्भर होकर आगे बढ़ते रहे.


ठेकेदार ने नहीं दिए एक महीने के पैसे
जयपटना ब्लॉक के तहत जमचुआ और टिंगुपखान गांवों के तीनों मजदूर एक श्रमिक ठेकेदार (labor contractor) के संपर्क में आए. ठेकेदार ने 12 मजदूरों के एक ग्रुप को बेंगलुरु भेजा जहां उन्होंने निर्माण श्रमिकों के रूप में काम किया. कोरापुट के पोट्टांगी में किसी के द्वारा शूट किए गए वीडियो में कटार मांझी ने कहा, “हम दो महीने पहले वहां कुछ पैसे कमाने और अपने परिवार का पालन-पोषण करने गए थे. एक माह की मेहनत के बाद भी पैसा नहीं मिला. जब हमने पैसे मांगे तो ठेकेदार ने हमारे साथ मारपीट की। हमने लौटने का फैसला किया. ”

26 मार्च को अपने गांव के लिए बेंगलुरु से निकले थे
अपनी जेब में पैसे नहीं होने के कारण, कटार, बुडू और भिकारी ने 26 मार्च को अपने घर की यात्रा शुरू की. उन्होंने विशाखापत्तनम को अपनी शुरुआती डेस्टिनेशन के तौर पर चुना और फिर आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में चले गए. द इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर बात करते हुए, एक पहाड़ी गांव, टिंगुपखान के मूल निवासी, बुडू ने कहा कि वे ज्यादातर समय चलते थे, जबकि बीच में वे सहयात्री भी थे. उनकी दुर्दशा से प्रभावित होकर, कुछ अच्छे लोगों ने उन्हें रास्ते में भोजन भी कराया.

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