इंदौर। दुनियाभर (Worldwide) के कोरोना विशेषज्ञों और चिकित्सकों का स्पष्ट कहना है कि लॉकडाउन (Lockdown) कोरोना संक्रमण समाप्त करने का उपाय है ही नहीं। यह तो कुछ समय तक संक्रमण की दर घटाने और तब तक इलाज की व्यवस्था जुटाने के लिए शासन-प्रशासन को मिलने वाला समय ही है। कोरोना को मात हर्ड इम्युनिटी के अलावा सिर्फ वैक्सीनेशन से ही दी जा सकती है। अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देशों ने यह कर दिखाया भी है, मगर हमारी केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना की बजाय जनता और कारोबारियों से लडऩे में ही अपनी एनर्जी अधिक नष्ट करती नजर आई। बजाय कि तेजी से वैक्सीनेशन या अन्य व्यवस्थाएं जुटाने में। स्थिति यह है कि 15 महीने बाद प्रधानमंत्री वही बात दोहरा रहे हैं जो गत वर्ष कोरोना संक्रमण की शुरुआत में कही गई थी। अधिक ट्रेसिंग, टेस्टिंग से लेकर जहां बीमार वहीं उपचार जैसी बातें मौजूदा वक्त में पुरानी ही हो गई है।
ऐसा लगता है कि कोरोना प्रबंधन अभी तक देश के नेताओं से लेकर अफसरों ने नहीं सीखा और बार-बार उनको यही लगता है कि कफ्र्यू-ल़ॉकडाउन लगा देने से ही कोरोना समाप्त हो जाएगा। जबकि अनलॉक की प्रक्रिया शुरू करने के बाद फिर से इसी तरह मरीज बढऩे लगेंगे। गत वर्ष भी पूरे देश में सख्त कफ्र्यू और लॉकडाउन (Lockdown) लगाया गया। उसके बाद भी कोरोना खत्म नहीं हुआ, बल्कि दूसरी लहर के रूप में और ज्यादा घातक होकर अधिक संक्रमण के साथ फैल गया और पहली लहर की तुलना में कई गुना ज्यादा मरीज और मौतें इस दूसरी लहर में अनवरत हो रही है। लेकिन चुनावों में जुटी केन्द्र सरकार ने ना तो वैक्सीनेशनका बंदोबस्त किया और ना ही ऑक्सीजन-इंजेक्शन लेकर अन्य सुविधाएं जुटाई। दूसरी तरफ अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रोजाना टीवी पर प्रवचन दे रहे हैं और वही घिसी-पिटी, पुरानी बातें कर रहे हैं, जो गत वर्ष मार्च-अप्रैल के महीने में समसामयिक भी थी। अब तो किस तरह से वैक्सीनेशन को तेज किया जाना चाहिए और कितनी आबादी हर्ड इम्युनिटी से कवर हो रही है, के अलावा विशेषज्ञों और चिकित्सकों की सलाह मानी जाना जरूरी है। बजाय की अपने निर्णय उन पर थोपने के। मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग से लेकर अन्य बातें 15 महीने से की जा रही है और कोरोना बीमारी से लडऩे की भी सारे विशेषज्ञ और चिकित्सक कोई अचूक इलाज भी नहीं ढूंढ पाए हैं। सारे जानकारों का कहना है कि जब तक एक बड़ी आबादी कोरोना संक्रमण का शिकार नहीं होगी, तब तक हर्ड इम्युनिटी विकसित नहीं हो सकती, जिसके चलते कोरोना को मात देने में आसानी रहेगी और शेष आबादी के एक बड़े हिस्से का वैक्सीनेशन करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए भारत की 125 करोड़ से अधिक की आबादी है, उसमें से अभी बच्चों को छोड़ दिया जाए तो शेष आबादी में से 10 फीसदी से अधिक अगर हर्ड इम्युनिटी के दायरे में और 20 से 30 फीसदी आबादी का वैक्सीनेशन अगर अगले दो-तीन महीनों में करनेकी रणनीति बनाई जाए तो ही वर्ष के अंत तक भारत को कोरोना से काफी हद तक राहत मिल सकती है। उसके बाद जो गिनती के कोरोना मरीज मिलते रहेंगे उनका इलाज आसानी से किया जा सकता है। वैसे भी अब दूसरी लहर की चोंट खाने के बाद ऑक्सीजन, इंजेक्शन, वेंटीलेटर से लेकर अन्य व्यवस्थाएं होने लगी है और बैड की संख्या भी इंदौर सहित देशभर में बढ़ गई है। अब शहर के साथ-साथ गांवों तक इन सुविधाओं का विस्तार करना पड़ेगा। जिस तरह से अमेरिका ने अपनी आबादी का वैक्सीनेशन शुरू किया और अब मास्क से निजात दिलवा दी उससे भारत सरकार को सीखना चाहिए।
इंदौर में 10 फीसदी पॉजिटिव दर भी अब सामान्य
इंदौर जैसे बड़े शहर में जहां आबादी के अलावा आर्थिक गतिविधियां बड़े पैमाने पर संचालित होती है, उसकी तुलना खरगोन, बुरहानपुर जैसे छोटे शहर से नहीं की जा सकती। इंदौर में रोजाना 10 हजार सैम्पलों की टेस्टिंग औसतन हो रही है और अगर 10 प्रतिशत पॉजिटिव रेट रहता है और 1 हजार मरीज रोजाना निकलते हैं तो उनका आसानी से इलाज हो जाएगा, क्योंकि छोटे शहर की तुलना में इंदौर में इलाज की सुविधाएं बेहतर हैं। लिहाजा यह बात समझ से परे है कि 5 प्रतिशत से कम पॉजिटिव दर होने पर छूट दी जाएगी। यह किसी गांव या छोटे शहरों के लिए तो ठीक है, मगर इंदौर के लिए संभव ही नहीं है। उसकी तुलना बैंगलुरु, पुणे, अहमदाबाद से की जाना चाहिए।
गत वर्ष भी 1 जून से ही अनलॉक हुआ था शहर
गत वर्ष भी 1 जून से ही देश और प्रदेश के साथ-साथ इंदौर को अनलॉक करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। 24 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन घोषित किया और फिर अप्रैल-मई में इंदौर में सख्ती जारी रही। हालांकि राशन, सब्जी नगर निगम के माध्यम से घर-घर भिजवाई गई और फिर धीरे-धीरे शहर को अनलॉक किया गया। इस बार भी वैसी ही स्थिति बन गई और अब 1 जून से अनलॉक करने की प्रक्रिया प्रशासन शुरू करेगा। अभी तो दी गई राशन-सब्जी की छूट को भी समाप्त कर िदया है, जिसका चारों तरफ तीखा विरोध हो रहा है। अब 1 जून के बाद भी सभी गतिविधयों को एक साथ शुरू नहीं किया जाएगा, बल्कि किश्तों में अनुमतियां मिलेगी।
लॉकडाउन से सिर्फ इलाज की ही होती है जुगाड़
सारे विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि भीड़ भरे आयोजनों से अभी सालभर बचा जाना चाहिए और कोविड प्रोटोकॉल का पालन जरूरी है और लॉकडाउन महामारी को फैलने से नहीं रोक सकता। सिर्फ कुछ समय के लिए कम कर देता है। इंदौर सहित देश और दुनिया में यह साबित भी हो चुका है कि लॉकडाउन के चलते सिर्फ बेड, इंजेक्शन, ऑक्सीजन और अन्य सुविधाओं की ही जुगाड़ की जा सकती है और जैसे ही लॉकडाउन समाप्त होता है उसके बाद धीरे-धीरे फिर संक्रमण की रफ्तार बढऩे लगती है। वैसे भी पूरी दुनिया को चीन के वुहान से निकलने एक आदमी ने ही संक्रमित कर दिया। उसी तरह लॉकडाउन लगाने से 100 प्रतिशत संक्रमण कभी भी खत्म नहीं होगा।
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