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भारत में लोगों की जान ले रही हीटवेव, गर्मी से होने वाली मौतों में 55 फीसदी की वृद्धि

नई दिल्ली। भारत में गर्मी जानलेवा साबित हो रही है। भारत में 2000-2004 और 2017-2021 के बीच भीषण गर्मी से होने वाली मौतों में 55% की वृद्धि हुई है। वहीं, दुनियाभर में गर्मी से संबंधित मौतों में 68% की बढ़ोतरी हुई है। बुजुर्ग और एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 1986-2005 की तुलना में 2021 में 3.7 बिलियन अधिक गर्मी का सामना करना पड़ा।

लैंसेट काउंटडाउन की रिपोर्ट कोविड-19 महामारी के स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं, वैश्विक ऊर्जा और रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभावों और जीवाश्म ईंधन पर लगातार निर्भरता पर केंद्रित है। रिपोर्ट के अनुसार, लोगों के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रभाव बढ़ रहे हैं।

इससे खाद्य सुरक्षा, इन्फेक्शस डिजीज ट्रांसमिशन, गर्मी से संबंधित बीमारियों और वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का खतरा बढ़ रहा है। पिछले दो दशकों में वैश्विक गर्मी से मौतों में दो तिहाई की वृद्धि हुई है। 2021 में जीवाश्म ईंधन के जलने से भारत में 3,30,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है।

कहीं बाढ़ तो कहीं जंगल की आग से तबाही
रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, मलयेशिया, पाकिस्तान और अन्य देशों में बाढ़ से हजारों लोगों की मौत हुई है और अरबों डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। जंगल की आग ने ग्रीस, अल्जीरिया, इटली, स्पेन जैसे देशों में तबाही मचाई है। कई देशों में रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया है। चरम मौसम की घटनाओं ने 2021 में 253 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है विशेष रूप से निम्न मानव विकास सूचकांक (HDI) देशों में लोगों पर भारी बोझ आया है जिनमें से किसी का भी बीमा नहीं था।


इसलिए बढ़ी हीटवेव
रिपोर्ट में 103 देशों में शोध किया गया। इसमें पता चला कि मार्च और अप्रैल के बीच भारत और पाकिस्तान में गर्मी की लहर जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना से अधिक गर्मी होने की सूचना मिली। ब्रिटेन के मौसम विभाग के अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने उत्तर पश्चिम भारत और पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की लहरों को 100 गुना अधिक बढ़ने की आशंका है।

खाद्य सुरक्षा हुई प्रभावित
जलवायु परिवर्तन से खाद्य सुरक्षा प्रभावित हुई क्योंकि उच्च तापमान ने फसल की पैदावार के लिए सीधे तौर पर खतरा पैदा किया, क्योंकि वैश्विक स्तर पर 1981-2010 की तुलना में 2020 में मक्का उत्पादन में औसतन नौ दिन कम और सर्दियों और वसंत के गेहूं के तैयार होने में छह दिन की कमी आई है। वहीं, जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य पर असर पड़ा।

स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन को मजबूत करना होगा
जलवायु संकट को रोकने के लिए स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन को मजबूत करने के लिए तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता है। 2022 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) पर हस्ताक्षर करने की 30वीं वर्षगांठ को चिह्नित करते हुए देश खतरनाक मानवजनित जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर इसके हानिकारक प्रभावों को रोकने के लिए सहमत हुए। हालांकि, लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार इसका पालन बहुत कम सार्थक कार्रवाई के साथ किया गया है।

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