नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि पत्नी (wife) द्वारा दहेज उत्पीड़न (Dowry Harassment) के सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों ( General-All-Encompassing Allegations) के आधार पर पति के रिश्तेदारों (Relatives Husband) को मुकदमे से गुजरने (Trial) के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि इससे आरोपी पर एक गंभीर ‘दाग’ लग सकता है और इसका विरोध किया जाना चाहिए।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने पीठ ने अपने एक फैसले में कहा, “सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों पर ऐसी स्थिति नही आनी चाहिए जहां शिकायतकर्ता के पति के रिश्तेदारों को मुकदमे से गुजरना पड़े। एक आपराधिक मुकदमा जिसमें आरोपी अंततः बरी हो जाते है, आरोपी पर गंभीर निशान छोड़ जाते हैं। इस तरह की प्रैक्टिस को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।”
बिहार के पूर्णिया के मोहम्मद इकराम के परिवार के सदस्यों द्वारा पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की। दहेज के तौर पर कार की मांग और गर्भावस्था को समाप्त करने की धमकी के आरोपों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एक अप्रैल, 2019 की प्राथमिकी में पता चलता है कि सभी आरोपियों पर सामान्य तरह के आरोप थे। मसलन, मानसिक रूप से परेशान करना और गर्भावस्था को समाप्त करने की धमकी देना आदि। इसलिए आरोप सामान्य और सर्वव्यापक हैं और कहा जा सकता है कि यह छोटी-छोटी झड़पों के कारण लगाया गया है।
पीठ ने यह भी बताया कि इस अदालत ने कई मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा-498 ए के दुरुपयोग और पति के रिश्तेदारों को वैवाहिक विवादों में फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति चिंताजनक है। पीठ ने कहा, “वैवाहिक विवाद के दौरान लगाए गए सामान्य सर्वव्यापी आरोपों को यदि अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए इस अदालत ने अपने निर्णयों के माध्यम से अदालतों को चेताया है कि पति के रिश्तेदारों और ससुरालियों को मुकदमे में तब तक नहीं ढकेलना चाहिए जब तक उनके खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता हो।”
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