इंदौर न्यूज़ (Indore News)

INDORE : नकारा अधिकारियों को फटकारें नहीं तो क्या आरती उतारें…

 

पूरी प्रशासनिक मशीनरी 35 दिनों से रात-दिन जुटी है… कई के परिजन दिवंगत हुए, तो कई उपचाररत, बावजूद इसके कर रहे हैं ड्यूटी
इंदौर।  स्वास्थ्य विभाग (Health Department) का ढर्रा शुरू से ही चौपट रहा है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों ( Rural Areas) में ना तो सरकारी डॉक्टर (Government Doctor) और ना ही पैरामेडिकल स्टाफ ( Paramedical Staff) ड्यूटी करना चाहते हैं और राजनीतिक दबाव-प्रभाव के चलते शहर में ही पदस्थ रहते हैं। अभी पिछले 35 दिनों से कोरोना की दूसरी लहर के चलते पूरी प्रशासनिक मशीनरी रात-दिन जी-जान से जुटी है। यहां तक कि कई अधिकारी खुद चपेट में आए और उनके परिजनों के अस्पताल में भर्ती रहने और निधन होने के बावजूद वे अगले दिन ही फिर काम पर लौट भी आए। दूसरी तरफ कुछ नकारा अधिकारी हैं जो ड्यूटी से बचने के लिए इस्तीफे की नौटंकी कर रहे हैं। अव्यवस्थाओं पर जिले के मुखिया यानी कलेक्टर ऐसे अधिकारियों को फटकार नहीं लगाएं तो क्या उनकी आरती उतारें..?
कलेक्टर मनीष सिंह (Collector Manish Singh)  सहित उनकी पूरी टीम इस वक्त 16 से 18 घंटे नियमित काम कर रही है। देशभर में ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा है, मगर एक भी दिन इंदौर में इस तरह की स्थिति निर्मित नहीं हुई, क्योंकि इस काम में जिन अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई है वे रोजाना रात को 4-4 बजे तक जाग रहे हैं और पिछले 35 दिन से किसी भी अधिकारी ने पूरी नींद नहीं ली। मात्र 3 से 4 घंटे ही सो पा रहे हैं। इतना ही नहीं, कई प्रशासनिक अधिकारी खुद कोरोना संक्रमण का शिकार तो हुए, वहीं उनके निकट परिजन, रिश्तेदार भी अस्पतालों में भर्ती हैं या कई का निधन भी हो चुका है। अभी तीन दिन पहले इंदौर विकास प्राधिकरण के सीईओ विवेक श्रोत्रिय के पिताजी का इंदौर में ही कोरोना उपचार के दौरान निधन हो गया, लेकिन उपचार के दौरान भी श्री श्रोत्रिय अस्पताल में जाकर पिताजी से मिलने के बाद लगातार कोविड केयर सेंटर राधास्वामी सत्संग परिसर की व्यवस्थाओं में जुटे रहे और पिताजी के निधन के बाद भी अंतिम संस्कार में शामिल होने के बाद फिर अपनी जिम्मेदारी निभाने पहुंच गए। ऐसे एक नहीं, कई अधिकारी हैं जो रात-दिन इसी तरह आपता की इस घड़ी में जुटे हैं और खुद अपनी जान भी जोखिम में डाल रहे हैं। दूसरी तरफ नकारा अधिकारी भी हैं जो फटकार लगाने के बावजूद काम नहीं करते। अभी ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से कोरोना संक्रमण फैल रहा है, जिसके चलते कलेक्टर बीते 5 दिनों से रोजाना दौरा कर रहे हैं। कल भी जब वे ग्रामीण क्षेत्र में पहुंचे तो कई मरीजों ने ही शिकार की कि फीवर क्लीनिक में दवाएं और इलाज की सुविधा नहीं है, जिस पर कलेक्टर ने उन्हें इस काम की प्रभारी डॉ. पूर्णिमा गडरिया (Dr. Purnima Gadaria) को फोन पर फटकार भी लगाई, जिसके बाद उन्होंने अपना इस्तीफा लिखकर भेज दिया। कलेक्टर मनीष सिंह का कहना है कि खुड़ैल और कम्पेल के लोगों की शिकायत पर उनको डांटना पड़ा। अभी इन जटील परिस्थितियों में हर अधिकारी-कर्मचारी रात-दिन जुटा है और ऐसे में जो लोग काम कर रहे हैं उनकी लगातार हौंसलाअफजाही भी की जा ही है और उन्हें आवश्यक साधन-संसाधन उपलब्ध कराए, लेकिन जो लोग काम नहीं कर रेहे हैं उन्हें फटकार लगाना भी जरूरी है।


कलेक्टर को ही देना पड़ता है सभी जगह जवाब
जिले के मुखिया के रूप में कलेक्टर को ही शासन से लेकर मीडिया और हर मोर्चे पर जवाब देना पड़ता है। वैसे तो कोरोना महामारी से निपटने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग की ही है, लेकिन ऑक्सीजन, इंजेक्शन, बेड से लेकर तमाम व्यवस्थाएं प्रशासन और उससे जुड़े अमले पुलिस, नगर निगम सहित अन्य विभागों को करना पड़ रही है और इन सभी में सामंजस्य बनाने की जिम्मेदारी कलेक्टर की रहती है और अभी स्वास्थ्य के मामले में भी हर मोर्चे पर कलेक्टर से ही जवाब मांगा जाता है।
अदालतों से लेकर मानव अधिकार आयोग भी सक्रिय
देशभर की तमाम हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ऑक्सीजन सप्लाय से लेकर तमाम मामलों में रोजाना केन्द्र से लेकर राज्य सरकार और आला अधिकारियों को फटकार लगा रही है। यहां तक कि चुनाव आयोग को भी नहीं बख्शा गया और नरसंहार के केस दायर करने की चेतावनी तक अदालत ने दे डाली। ऐसी परिस्थितियों में कलेक्टर को भी अदालतों से लेकर मानव अधिकार आयोग और अन्य तमाम मोर्चों पर जवाब देना पड़ता है। इंदौर में ही कोरोना से हो रही मौतों, इलाज सहित अन्य व्यवस्थाओं से लेकर हाईकोर्ट में ढेर सारी जनहित याचिकाएं दायर कर रखी हैं, उन सभी में कलेक्टर से ही जवाब मांगा जाता है। ऐसे में जायज है कि कलेक्टर को जिले के सारे विभागों और उनमें काम करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों से काम करवाना पड़ता है।

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