ब्‍लॉगर

नारी शक्ति जागरण की अग्रदूत लक्ष्मी बाई केलकर

– रमेश शर्मा

प्रख्यात समाज सुधारक और राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापक लक्ष्मी बाई केलकर सही मायन में नारी शक्ति जागरण की अग्रदूत हैं। उनका पूरा जीवन भारत और संस्कृति जागरण के लिए समर्पित रहा। लक्ष्मी बाई केलकर का जन्म 06 जुलाई, 1905 को नागपुर में हुआ था । विवाह के बाद वे वर्धा आ गईं । उनका विवाह चौदह वर्ष की आयु में अविदर्भ के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता पुरुषोत्तम राव केलकर से हुआ था। विवाह के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। पति के साथ समाजसेवा के कार्यों में भी सहभागी बनीं । यह वह कालखंड है, जब स्वाधीनता के लिए अहिसंक आंदोलन पूरे देश में फैल चुका था। 1923 के झंडा सत्याग्रह का सर्वाधिक प्रभाव पुणे से लेकर विदर्भ तक था । यह इस आंदोलन की व्यापकता का ही प्रभाव था कि आगे चलकर गांधी ने वर्धा को अपना प्रमुख केन्द्र बनाया ।

पुरुषोत्तम राव केलकर अपनी लक्ष्मी बाई केलकर इन सभी गतिविधियों में हिस्सा लेते । इन आंदोलनों का कितना प्रभाव इस परिवार पर था, इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लक्ष्मी बाई ने अपने घर में एक चरखा केन्द्र स्थापित कर लिया था । वे सामाजिक जागरण के लिए तीन काम करतीं थीं । एक -महिलाओं में चरखे के माध्यम से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा। दूसरा-सामाजिक समरसता स्थापित करना। तीसरा राम चरित्र के प्रवचन से सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों की स्थापना । वे मानतीं थीं कि राष्ट्र की स्वायत्तता ही सर्वोपरि है । एक बार जब गांधी ने एक सभा में दान का आह्वान किया तो लक्ष्मीबाई केलकर ने अपने गले से सोने की चेन उतारकर दे दी ।

उनका वैवाहिक जीवन अधिक न चल सका । वे मात्र 27 वर्ष की थीं कि 1932 मे पति का देहांत हो गया । उनके पास दोहरा दायित्व आ गया । परिवार में एक विधवा नंद भी रहती थीं । लक्ष्मी बाई ने अपने बच्चों के साथ उन्हें भी सहेजा । लक्ष्मीबाई ने घर के दो कमरे किराये पर उठा दिए। इससे आर्थिक समस्या कुछ हल हुई। इन्हीं दिनों उनके बेटों ने राष्ट्रीय स्वयं संघ की शाखा पर जाना शुरू किया। उनके विचार और व्यवहार में आए परिवर्तन से लक्ष्मीबाई केलकर के मन में संघ के प्रति आकर्षण जागा। उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से भेंट की। इसके बाद 1936 में स्त्रियों के लिए ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक एक नया संगठन प्रारम्भ किया। आगामी दस साल के निरन्तर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रान्तों में विस्तार हुआ।

1945 में राष्ट्र सेविका समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ । यह वह समय था जब देश में विभाजनकारी शक्तियां प्रबल हो रहीं थीं । अंग्रेजी सरकार का उन्हें संरक्षण था। इस नाते उनकी हिंसक गतिविधियां बढ़ गई थीं। विशेषकर बंगाल, पंजाब और सिंध में हिन्दू समाज की महिलाओं में भय का वातावरण बनने लगा था । लक्ष्मी बाई केलकर ने अपने संगठन के माध्यम में महिलाओं को संगठित करने और आत्म विश्वास जगाने का अभियान चलाया। देश की स्वतंत्रताएवं विभाजन से समय वे सिंध में थीं । उन्होंने हिन्दू परिवारों को भारतीय सीमा तक सुरक्षित पहुंचाने के प्रबन्ध किए ।

इसके बाद महिलाओं में जाग्रति के लिए बाल मंदिर, भजन मंडली, योगाभ्यास केंद्र, बालिका छात्रावास आदि अनेक प्रकल्प प्रारम्भ किए । वे आजीवन राष्ट्र और समाज की सेवा में लगीं रहीं । वे 27 नवम्बर, 1978 को नश्वर शरीर छोड़कर संसार से विदा हो गईं पर उनकी आभा आज भी समाज में प्रतिबिंबित हो रही है । उनका संकल्प आज वैश्विक रूप ले रहा है । वर्तमान में देश में राष्ट्र सेवा समिति की लगभग पांच हजार से अधिक शाखा संचालित हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भांति राष्ट्र सेविका समिति के भी प्रतिवर्ष मई-जून में सामान्यतः पंद्रह दिनों के प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष के प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाते हैं। इन शिविरों में बौद्धिक, शारीरिक और आत्म-रक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है। संघ की तरह समिति का भी अपना एक गणवेश है। जैसे संघ में प्रचारक होते हैं, वैसे ही समिति में भी प्रचारिका होती हैं। वर्तमान में 48 प्रचारिका हैं।राष्ट्र सेविका समिति का कार्य केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में फैला हुआ है। ब्रिटेन, अमेरिका, मलयेशिया, डर्बन, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका में भी समिति का विस्तार हो चुका है ।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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