नई दिल्ली। कोरोना महामारी(Corona Pandemic) की दूसरी लहर (2nd Wave Of Covid-19) के दौरान लोगों के सामने एक मुसीबत यह भी आ गई है कि अक्सर RT-PCR Test के नतीजे(Results) भी गलत आ रहे हैं. बीते साल कोरोना वायरस(Corona Viu)फैलने के बाद अब तक संक्रमण की जांच का सबसे भरोसेमंद तरीका RT-PCR Test को ही माना जाता रहा है. एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि RT-PCR Test के नतीजे 20 फीसदी तक गलत साबित हो रहे हैं. लेकिन डायग्नोस्टिक लैब चेन थायरोकेयर के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर ए. वेलुमनी (A. Velumani) का कहना है कि RT-PCR टेस्ट के नतीजे 99.5 फीसदी तक सही साबित होते हैं.
एक इंटरव्यू में ए. वेलुमनी (A. Velumani) ने कहा कि RT-PCR पूरी तरह भरोसेमंद हैं. केवल 0.5 प्रतिशत एरर यानी गलती की गुंजाइश होती है और किसी भी लैब टेस्ट के साथ हो सकता है. RT-PCR की गलत रिपोर्ट्स पर उनका कहना है कि इस टेस्ट की तकनीक बेहद मजबूत है लेकिन स्वैब कलेक्शन की प्रक्रिया में गड़बड़ी हो सकती है. अगर स्वैब कलेक्शन गड़बड़ होगा तो नतीजे भी गलत आ सकते हैं.
वेलूमनी ने भारत में इस्तेमाल की जा रही टेस्टिंग किट पर भी अपनी राय दी है. उन्होंने कहा है कि महामारी आने के करीब दो महीने बाद से भारत में ज्यादा लैब द्वारा थ्री जीन टेस्टिंग किट का इस्तेमाल किया जा रहा है कि गुणवत्ता के मामले में बेहतर है. ऐसे में गलत नतीजे आने का रिस्क बेहद कम होता है.
इससे पहले एपिडिमियोलॉजिस्ट और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अधिकारी रहे डॉ. रमन गंगाखेडेकर भी मीडिया मीडिया को खारिज कर चुके हैं. गंगाखेडेकर ने कहा था, ‘अब तक दुनिया में कहीं भी ऐसा कोई डेटा या अध्ययन नहीं है, जिसमें RT-PCR टेस्ट को भी चकमा देकर कोई वैरिएंट जांच में पकड़ा ना गया हो. लेकिन इसके पर्याप्त सबूत हैं कि गलत स्वैबिंग और सैंपल कलेक्शन टेस्टिंग को प्रभावित कर सकता है.’ अशोक विश्वविद्यालय में बायोसाइंसेज के स्कूल के हेड और वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील भी इस बात से सहमत हुए. उन्होंने कहा था कि बहुत से लोग जिन्हें स्वैब कलेक्शन के लिए भेजा जाता है, वे ट्रेन्ड नहीं होते हैं. और यही मेरी चिंता है. यहां चीजें गलत हो जाती हैं.’ Share: