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मिथिलांचल के मखाना को मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान, जीआई टैग मिला

– बिहार के मखाना का सालाना एक हजार करोड़ रुपये का है कारोबार
– कीमत 600 रुपये प्रति किलो, सालाना 40 हजार टन होता है उत्पादन

नई दिल्ली। बिहार ( Bihar) में मखाना (Makhana farming) की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है। केंद्र और राज्य सरकार के प्रयास से मिथिलांचल (Mithilanchal) के मखाना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान (International recognition) मिल गई है। मखाना को भौगौलिक संकेतक (जीआई) टैग (GI tag) मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मखाने के साथ बिहार और मिथिलांचल का नाम जुड़ गया है।


मिथिलांचल के मखाना को जीआई टैग मिलने के बाद इसके सालाना कारोबार में 10 गुना तक की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है, जिसके बाद मखाने का कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए साल 2002 में दरभंगा में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना की गई है। बिहार के दरभंगा में स्थित यह अनुसंधान केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्य करता है। देश में करीब 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती होती है, जिसमें 80 से 90 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार में होती है।

मखाना के उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा मिथिलांचल का है। आंकड़ों के मुताबिक सालाना करीब एक लाख टन बीज मखाने का उत्पादन होता है, जिससे 40 हजार टन मखाने का लावा प्राप्त होता है। बिहार के मिथिलांचल में बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है। मिथिलांचल में मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, पुर्णिया, मधेपुरा और कटिहार जिला शामिल हैं। लंबे समय से बिहार के मिथिलांचल में बड़े स्तर पर इसकी खेती हो रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा दरभंगा में राष्ट्रीय मखाना शोध संस्थान की स्थापना के बाद मखाना की खेती मिथिलांचल से निकलकर सीमांचल और अंग प्रदेश तक पहुंच चुकी है।

मौजूदा वक्त में बिहार में मखाना का सालाना एक हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है। मिथिला के मखाना की मांग भारत के विभिन्न हिस्सा ही नहीं, दुनिया के प्रमुख देशों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान तक है। ऐसे में जीआई टैग मिलने से किसानों को अब अपने उत्पादित मखाना विदेश भेजने में अधिक परेशानी नहीं होगी। (एजेंसी, हि.स.)

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