खरी-खरी

फख्र के तिरंगे में लिपटी शोक भरी शहादत

 


सीमाएं लांघकर हौसला दिखाते हो… और सरहदों में ही आतंक का तांडव मिटा नहीं पाते हो….
यह तो छाती पर वार हुआ है… जब आतंकवादी पीठ पर वार करते हैं तो हम सरहदें पार कर जाते हैं… सर्जिकल स्ट्राइक कर सबक सिखाते हैं… आतंकवादी ठिकानों पर धावा बोलकर जवानों की शहादत का बदला लेने की हिम्मत दिखाते हैं… लेकिन यहां तो घर में पल-बढ़ रहे नक्सली हिमाकत दिखा रहे हैं… हमारी अपनी सीमाओं में हमारे जवान मारे जा रहे हैं… वो भी इस कदर बर्बरता के शिकार किए जा रहे हैं कि चारों ओर से घेरकर रॉकेट, मोर्टार, मशीनगनों से हमला कर बेबस जवानों की लाशें बिछा रहे हैं और हम हाथ मलते हुए अफसोस जताकर अपने शहीद भाइयों के शवों को उठा रहे हैं… हमारी मरी हुई आत्मा कोई चित्कार नहीं कर रही… हमारी आक्रोश की ज्वाला क्यों नहीं भडक़ रही… हमारी संवेदनाएं आंसू क्यों नहीं बहा रहीं… उन 22 जवानों की विधवाओं का विलाप हमारे कानों को कब दहलाएगा… उनके यतीम हुए बच्चों को सहारा देने कौन आएगा… जिस तिरंगे को हम शान से लहराते हैं… जिसे लाल किले पर फहराकर प्रधानमंत्री चौड़े हुए जाते हैं… जिस तिरंगे को लेकर हम वंदे मातरम् के गीत गाते हैं… उसी तिरंगे में लिपटकर जब हमारे शहीद जवानों के शव लाए जाएंगे तो हम और हमारी सरकार के कमजोर हाथ, हमारे नेताओं के स्वार्थ उनकी शहादत को चिढ़ाएंगे तो कैसे हम गर्व से अपने देश को महान कह पाएंगे… नक्सलवाद का यह घिनौना चेहरा और उनकी हिमाकत को यदि किसी ने यह हौसला दिया है तो उसके पीछे हमारे अपने नेता रहे हैं… चाहे वो रमण सरकार हो या बघेल का राज… सबने नक्सलवाद को पाला है और उसका कारण इन नक्सलवाद से निपटने के लिए केंद्र द्वारा भेजा जाने वाला वो फंड है, जो भ्रष्टाचार के जरिए नेताओं और अफसरों की जेब में जाता है… जो भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत बनाता है… बेकसूरों की लाशों पर खजाना भरा जाता है और इसी कारण चंद नक्सलियों का झुंड कभी जवानों को तो कभी आम लोगों को अपना शिकार बनाने से बाज नहीं आता है… यह चुनौती है मोदी सरकार के लिए, जो पाकिस्तान में घुसकर आतंकी मारते हैं और देश में पल रही बर्बरता मिटा नहीं पाते हैं… यह चुनौती है अमित शाह के लिए, जो देश को सुरक्षा का भरोसा दिलाते हैं और जवानों के शव तिरंगे में लिपटकर आते हैं… यह चुनौती है कांग्रेस की बघेल सरकार के लिए, जिसके नेता चीन से लेकर पाकिस्तान तक में होने वाली शहादत पर सरकार को कोसते नजर आते हैं… और अपने घर संभाल नहीं पाते हैं… यह वार पीठ पर नहीं छाती पर हुआ है… यह घात उन्होंने खुलकर किया है… यह आघात उन्होंने देश में रहकर देश को दिया है… हौसला दिखाइए… हिम्मत बताइए और नक्सलवाद के समूचे नाश का बीड़ा उठाइए… घर में घुस-घुसकर दुर्दांतों को निकालिए… उन 22 जवानों की शहादत पंचतत्व में विलीन हो उसके पहले उनकी आत्मा को सुकून पहुंचाइए… उसके लिए न आपको सरहद लांघना है न दुनिया को ताकत दिखाना है… बस उन 22 जवानों की शहादत से आहत हुए देश के सवा सौ करोड़ लोगों के घायल मन को मरहम लगाना है… तिरंगे की शान बचाना है और मातरम् को वंदे करने का फर्ज चुकाना है…

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