- करोड़ों के टेंडर में चार-पांच फर्में ही कर पाती हैं हिस्सेदारी
भोपाल। मप्र पाठ्य पुस्तक निगम की टेंडर प्रक्रिया को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में जनहित याचिका दायर हुई है। इसमें कहा है कि शर्तों में बदलाव जरूरी है। टेंडर शर्तों में कुछ शर्तें ऐसी भी हैं जिनकी वजह से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। इसकी वजह से देशभर से बमुश्किल चार-पांच फर्में ही टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो पाती हैं। इसके चलते शासन को भी करोड़ों का नुकसान हो रहा है क्योंकि गिनी चुनी फर्मों द्वारा टेंडर में शामिल होने से प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाती है और ये फर्में मनमानी दरों के टेंडर देती हैं। याचिका में टेंडर प्रक्रिया में बदलाव की मांग भी की गई है। हाई कोर्ट में यह जनहित याचिका दीपक ग्रोवर ने एडवोकेट अनुराग सोलंकी के माध्यम से दायर की है। इसमें कहा है कि मप्र पाठ्य पुस्तक निगम हर साल करोड़ों रुपये के काम के टेंडर निकालता है। इनमें पाठ्य पुस्तकों के लिए पेपर सप्लाय, पुस्तकों की प्रिंटिंग इत्यादि शामिल हैं। पेपर सप्लाय के टेंडर में पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा शर्त रखी गई है कि निविदा में शामिल होने के लिए फर्म के पास 90 हजार मेट्रिक टन सप्लाय की क्षमता होना चाहिए और फर्म को इस संबंध में जीएसटी क्लीयरेंस का सर्टिफिकेट भी प्रस्तुत करना होगा। इस शर्त को पूरा करने के लिए कुछ फर्म अधिकारियों से संगमत होकर फर्जी सर्टिफिकेट बनवा लेती हैं।
देशभर से 80-90 निविदाकार शामिल
2019 में इस संबंध में हुई जांच में भी यह बात सामने आ चुकी है। बावजूद इसके पाठ्य पुस्तक निगम ने इस वर्ष के लिए जारी टेंडर में इस शर्त को यथावत् रखा है। इसके चलते सालों से टेंडर में चार-पांच फर्में ही शामिल हो पा रही हैं जबकि राजस्थान पाठ्य पुस्तक निगम, कोलकोता पाठ्य पुस्तक निगम जैसी जगहों पर देशभर से 80-90 निविदाकार शामिल होते हैं। कम लोगों के टेंडर प्रक्रिया में शामिल होने से प्रतिस्पर्धा नहीं हो पाती और पाठ्य पुस्तक निगम को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। याचिका में टेंडर प्रक्रिया में सुधार करने और जीएसटी सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने की शर्त खत्म करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता के आरंभिक तर्क सुनने के बाद कोर्ट ने पाठ्य पुस्तक निगम और अन्य पक्षकारों को अपना पक्ष रखने को कहा है।