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omicron: आखिर वायरस खत्‍म होगा या नही, क्‍या और भी आएंगे नये वैरिएंट?

नई दिल्ली. कोरोना के नए ओमिक्रॉन वैरिएंट (Omicron Variants) ने हर किसी की नीदें उड़ा रखी हैं. दुनिया सामान्य होने की कोशिश करती है, तभी नया वैरिएंट दस्तक दे जाता है. लेकिन वायरस (virus) का लौटना और बार-बार रूप बदलना, अपने आप में चिंता का विषय है. सवाल यही उठता है कि आखिर वायरस कब खत्म होगा या खत्म होगा भी या नहीं??

वायरस लिविंग एनटीटी (Virus Living NTT) होते हैं, इस पर अभी भी विवाद है. लेकिन बकी सभी जीवित चीजों की तरह, वे विकसित होते रहते हैं. महामारी के दौरान यह बात साफ तौर पर देखने को मिली, क्योंकि हर कुछ महीनों में ही चिंता के नए वैरिएंट (वैरिएंट ऑफ कंसर्न) सामने आए हैं. इनमें से कुछ वैरिएंट में प्रसार की गति बाकियों से बेहतर रही है. ये कोविड-19 के SARS-CoV-2 के कम प्रभावी रहे वैरिएंट से लड़ते हैं और उनसे ज़्यादा प्रभावी हो जाते हैं.

इस बेहतर प्रसार क्षमता का कारण स्पाइक प्रोटीन में होने वाला म्यूटेशन(mutation) है. स्पाइक प्रोटीन, वायरस की सतह पर मशरूम जैसे आकार में होती हैं. इसी की वजह से यह ACE2 रिसेप्टर्स से मजबूती से बंधे रहते हैं. ACE2 रिसेप्टर्स हमारी कोशिकाओं (cells) की सतह पर होते हैं. शरीर में प्रवेश करने और बढ़ने के लिए वायरस इन्हीं रिसेप्टर्स से चिपक जाता है. इन म्यूटेशन की वजह से अल्फा वैरिएंट और फिर डेल्टा वैरिएंट विश्व स्तर पर डॉमिनेंट रहे. और वैज्ञानिकों का मानना है कि ओमिक्रॉन के साथ भी ऐसा ही होगा.

वायरस हमेशा के लिए बढ़ नहीं सकता
हालांकि, वायरस अनिश्चितकाल तक बढ़ नहीं सकता है. जैव रसायन (biochemistry) के नियम के मुताबिक, वायरस अंततः एक स्पाइक प्रोटीन विकसित करता है जो ACE2 से मजबूती से बंध जाता है. उस समय तक, वायरस के फैलने की क्षमता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि वायरस कोशिकाओं(virus cells) के बाहर कितनी अच्छी तरह से चिपक सकता है. दूसरे फैक्टर भी वायरस के प्रसार को सीमित कर देंगे. यह फैक्टर हैं- जीनोम कितनी तेजी से रेप्लिकेट होता है, वायरस प्रोटीन TMPRSS2 के ज़रिए कोशिका में कितनी तेजी से प्रवेश कर सकता है और एक संक्रमित व्यक्ति कितना वायरस प्रसारित कर सकता है. सैद्धांतिक रूप से, इन सभी फैक्टर के विकसित होने पर ही वायरस अपने चरम पर होगा.



क्या ओमिक्रॉन चरम पर है?
ओमाइक्रोन अपने चरम पर पहुंच गया है, यह मानने के लिए कोई सही कारण नहीं है. SARS-CoV-2 पर जो भी म्यूटेशन हो रहे हैं, उनपर हुए अध्ययन से पता चलता है कि ऐसे बहुत सारे म्यूटेशन हैं, जिन्होंने स्पाइक प्रोटीन की उस क्षमता को बढ़ाया है, जिससे वे मानव कोशिकाओं से चपकते हैं. लेकिन यह क्षमता ओमिक्रॉन के पास नहीं है. इसके अलावा, वायरस के जीवन चक्र के अन्य पहलुओं में भी बदलाव हो सकते हैं, जैसे कि जीनोम रेप्लिकेशन.

इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी बनाता है
किसी भी वायरस से संक्रमण के बाद, इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी बनाता है, जो वायरस से चिपक जाती है और उसे बेअसर करती है. साथ ही, टी-सेल्स (T-cells) संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं. एंटीबॉडी प्रोटीन के टुकड़े होते हैं जो वायरस के खास मॉलिक्यूलर आकार से चिपके रहते हैं. किलर टी-सेल्स, संक्रमित कोशिकाओं के इन्हीं मॉलिक्यूलर आकार से इनकी पहचान करती हैं. इसलिए SARS-CoV-2 म्यूटेशन करके अपने मॉलिक्यूलर आकार को बदल सकता है, जिससे वह इम्यून सिस्टम की पहचान में न आए, और उससे बच जाए.

यही वजह है कि ओमिक्रॉन पिछली इम्यूनिटी वाले लोगों को संक्रमित करने में सफल रहा है. फिर चाहे यह इम्यूनिटी लोगों में वैक्सीन की वजह से रही या फिर वायरस के पिछले वैरिएंट से संक्रमित होने से. वह म्यूटेशन जो स्पाइक को ACE2 से मजबूती से जोड़ते हैं, वही एंटीबॉडी के वायरस से जुड़ने और इसे बेअसर करने की क्षमता को भी कम करते हैं. फाइजर(Pfizer) के डेटा से पता चलता है कि टी-सेल्स को ओमिक्रॉन पर भी उसी तरह से काम करना चाहिए जैसा वे पिछले वैरिएंट पर करती रही हैं. दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन की मृत्यु दर कम है क्योंकि वहां ज़्यादातर लोगों में इम्यूनिटी है.

हमारे पिछले अनुभवों ने हमें गंभीर बीमारी और मौत से बचाया है, और हम अब ये समझते हैं कि वायरस दोबारा फैल सकता है और फिर से संक्रमित कर सकता है, लेकिन हम पहली बार की तरह गंभीर रूप से बीमार नहीं होते हैं.

वायरस का भविष्य कैसा होगा
यह वायरस अगर एक प्रोफ़ेशनल गेमर की तरह भी व्यवहार करता है और आखिर में चरम पर भी पहुंच जाता है, तो भी यह सोचने का कोई कारण नहीं है कि हमारा इम्यून सिस्टम इसे कंट्रोल नहीं कर सकता और हटा नहीं सकता. म्यूटेशन जो वायरस की प्रसार क्षमता बढ़ाते हैं, वे मौतें नहीं बढ़ा सकते. अपने चरम पर पहुंचा यह वायरस, तब फिर बेतरतीबी से म्यूटेट करेगा. खुद को बदलने में थोड़ा समय लेगा, जिससे वह इम्यून सिस्टम की पकड़ में न आ सके और इसके बाद फिर लहरें आती रहेंगी.

जैसे हर सर्दी के मौसम में सर्दी जुकाम हो जाता है, उसी तरह हर सर्दी में कोविड सीज़न भी हो सकता है. जरूरी नहीं है कि हर साल होने वाले नए फ्लू वायरस, पिछले साल से बेहतर ही हों, वो अलग ज़रूर हो सकते हैं. कोविड के केस में शायद सबसे अच्छा सबूत कोरोन वायरस 229E है, जिससे सिर्फ सामान्य सर्दी होती है. इसलिए ओमिक्रॉन आखिरी वैरिएंट नहीं होगा, लेकिनअच्छी बात यह है कि यह चिंता का आखिरी वैरिएंट हो सकता है. अगर हम भाग्यशाली हैं, तो SARS-CoV-2 संभवतः एक स्थानिक वायरस बन जाएगा जो समय के साथ धीरे-धीरे म्यूटेट होता है.

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