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लोगों की बढ़ी आय, 2.5 करोड़ लोग गरीबी से निकले बाहर; शेख हसीना के राज में इतना बदला बांग्लादेश

नई दिल्ली: 1971 में दुनिया (World) के नक्शे पर आने वाले बांग्लादेश (bangladesh) में 7 जनवरी को आम चुनाव है. 350 सदस्यों वाली संसद (Parliament) में से 300 वोटिंग से चुने जाते हैं. बाकी की 50 सीटें उन महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं जिन्हें सत्तारूढ़ दल (ruling party) या गठबंधन (alliance) द्वारा चुना जाता है. भारत और अन्य कई मुल्कों की तरह बांग्लादेश में भी प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है, जबकि राष्ट्रपति देश का है. फिलहाल बांग्लादेश सरकार की प्रमुख शेख हसीना हैं. अवामी लीग की ये दिग्गज नेता 2009 से सत्ता पर काबिज है.

शेख हसीना(Sheikh Hasina)  जब पीएम (PM) की कुर्सी पर बैठी थीं तब बांग्लादेश 38 साल का था और अब वह 50 साल से ज्यादा का हो चुका है. शेख हसीना 14 साल से सत्ता में हैं. जाहिर तौर पर इतने वर्षों में बांग्लादेश की पहचान अंतरराष्ट्रीय मंचों (international forums) पर बढ़ी ही होगी. हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश कहां पहुंचा, आइए जानते हैं.

आर्थिक तरक्की हुई
बांग्लादेश मुस्लिम-बहुल राष्ट्र है. ये कभी दुनिया के सबसे गरीबों देशों में से एक था. लेकिन शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक सफलता हासिल की है. यह अब सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. इसकी प्रति व्यक्ति आय तीन गुना हो गई है. विश्व बैंक का अनुमान है कि बांग्लादेश में पिछले 20 वर्षों में 25 मिलियन (2.5 करोड़) से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है.

देश के फंड, लोन का इस्तेमाल करते हुए शेख हसीना की सरकार ने विशाल प्रोजेक्ट्स शुरू किए, जिसमें गंगा पर 2.9 बिलियन डॉलर का पद्मा पुल भी शामिल है. अकेले इस पुल से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1.23% की वृद्धि होने की उम्मीद है. नवंबर में यहां की मुद्रास्फीति करीब 9.5% थी. अन्य देशों की तरह कोरोना महामारी का असर बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसका विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त 2021 में रिकॉर्ड 48 बिलियन डॉलर से गिरकर अब लगभग 20 बिलियन डॉलर हो गया है. 2016 के बाद से इसका विदेशी कर्ज भी दोगुना हो गया है. चीन के बाद बांग्लादेश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक है. पिछले साल इसने 45 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के कपड़े एक्सपोर्ट किए.


कोरोना ने बांग्लादेश की आर्थिक तरक्की पर ब्रेक लगाया है और ये आंकड़ों में साफतौर पर दिखता है. ढाका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 4.7 अरब डॉलर का लोन मांग चुका है. इसलिए चुनाव के बाद जिसकी भी सरकार बनती है उसको अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कुछ कड़े कदम उठाने पड़ेंगे.

शेख हसीना पर लगते रहे हैं ये आरोप
बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी आम चुनावों का बहिष्कार कर रही है. पार्टी का कहना है कि कि उन्हें कोई भरोसा नहीं है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना निष्पक्ष चुनाव कराएंगी. विपक्षी नेताओं ने उनसे पद छोड़ने और अंतरिम सरकार के तहत चुनाव कराने की मांग की, जिसे उन्होंने (शेख हसीना) ने खारिज कर दिया. बीएनपी के वरिष्ठ नेता अब्दुल मोईन खान कहते हैं कि जनवरी में हम जो देखने जा रहे हैं वह एक फर्जी चुनाव है. बांग्लादेश में लोकतंत्र मर चुका है.

यह उस नेता के लिए हैरानी वाली स्थिति है जिसने मल्टीपार्टी सिस्टम के लिए लड़ाई लड़ी और आज उसपर ही लोकतंत्र को खत्म करने के आरोप लग रहे हैं. 1980 के दशक में शेख हसीना जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के शासन के दौरान सड़क पर उतर गई थीं. उन्होंने अपनी कट्टर प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया सहित अन्य विपक्षी नेताओं के साथ हाथ मिलाया था. शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी शेख हसीना पहली बार 1996 में सत्ता में आईं. इसके बाद वह 2001 का चुनाव खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी से हार गईं.

शेख हसीना 2007 में बांग्लादेश की विपक्षी नेता थीं, जब उनके घर पर छापा पड़ा था. उन्हें ढाका में एक अदालत में ले जाया गया, जहां उन्हें जबरन वसूली के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. शेख हसीना ने इन आरोपों को आगामी चुनावों में भाग लेने से रोकने की साजिश बताया. उन्होंने उस समय कहा था कि वह अपने लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रही थीं.

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