इंदौर न्यूज़ (Indore News)

कचरे के ढेर लगे मोहल्लों और कॉलोनियों की बैकलेन में

  • शहर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चौपट, निगम अमले पर कोई लगाम ही नहीं, नेता सरकार बनाने में, तो अफसर रूको और देखो की रणनीति में जुटे

इंदौर। इन दिनों नगर निगम की समूची व्यवस्था चौपट है। एक तरफ खजाना खाली है, तो दूसरी तरफ कहीं कोई नियंत्रण ही नजर नहीं आता। खासकर सफाई का मामला तो पूरी तरह से चौपट ही है। 6 बार देश में स्वच्छता के मामले में नम्बर वन आकर डंका बजाने वाले शहर में अब जगह-जगह कचरे के ढेर मिलते हैं और सबसे बदहाल व्यवस्था को कॉलोनियों-मोहल्लों की है, जहां सडक़ों से लेकर बैकलेन कचरे के ढेर से पटी पड़ी है। जबकि निगम ने इन बैकलेनों को सजाने-संवारने का अभियान भी चलाया था। निगम में बीते एक साल से चुनी हुई परिषद् है, जिसमें महापौर सहित 85 वार्ड पार्षद हैं। जनता को उम्मीद थी कि इन जनप्रतिनिधियों के आने के बाद शहर की रंगत बदलेगी और मूलभूत सुविधाओं में इजाफा होगा, क्योंकि उसी के नाम पर वोट मांगे गए थे। मगर दिनों दिन नगर निगम की हालत हर मोर्चे पर खस्ता होती जा रही है। एक तरफ राजस्व वसूली में निगम फिसड्डी साबित हुआ, जिसके चलते खजाना खाली हो गया और वेतन बांटने के लाले पड़ गए। एक ठेकेदार ने आत्महत्या कर ली, तो बाकी सभी ने नए काम के साथ टेंडर भरना भी बंद कर दिए। सातवीं बार निगम स्वच्छता में नम्बर वन आता है यह नहीं इसका तो खुलासा सर्वे के परिणाम से पता लगेगा, मगर जमीनी हकीकत यह है कि शहर में कहीं भी चले जाओ कचरा नजर आने लगा है। सडक़ों के किनारों से लेकर गली-मोहल्लों, कालोनियों में तो स्थिति सबसे अधिक बदतर है।

जबकि जो पार्षद चुनकर गए हैं उनकी पहली जिम्मेदारी अपने क्षेत्र को साफ-सुथरा रखने की है। मगर ये सारे पार्षद कमीशनबाजी में और राजनीतिक आयोजन, विधानसभा चुनाव से लेकर अन्य कार्यों में ही लिप्त रहते हैं। आयुक्त से लेकर अधिकारी भी अभी तक चुनाव में व्यस्त रहे और उसके बाद अब जो सरकार गठित हो रह है उसका गणित-ज्ञान देख रहे हैं कि कौन बचेगा और किसका तबादला होना है। नतीजे में शहर तेजी से गंदा होने लगा। कचरे के साथ-साथ ठेले-गुमटी, अतिक्रमण की भी बाढ़ आ गई, जबकि डेढ़ महीने से अधिक का समय आचार संहिता का था, जिसमें किसीभी तरह का दबाव-प्रभावअधिकारियों पर नहीं था, जिसमें किसी तरह की कोई कार्रवाई नजर नहीं आई। यहां तक कि जगह-जगह सडक़ों को खोदकर अलग पटक दिया, जिसके कारण यातायात जाम की समस्या अलग बढ़ गई है। नगर निगम से जुड़े सारे नेता, जिनमें महापौर से लेकर वार्ड पार्षद शामिल हैं, बीते 3-4 महीनों से विधानसभा चुनाव में ही जुटे रहे। पहले तो कुछ टिकट की दौड़ में थे, उसके बाद प्रचार-प्रसार और अब सरकार बनाने के साथ विभागीय मंत्री कौन बनेगा उस पर निगाह टिकी है। यही हाल निगम के अफसरों का है। निगमायुक्त का तो मन शुरू से लग ही नहीं रहा है और उम्मीद है कि नए मुखिया अधिकारियों के तबादले करेंगे ही, जिसमें इंदौर जैसा शहर प्रभावित होगा। वहीं निगम के अन्य अफसर भी रूको और देखो का फॉर्मूला अपना रहे हैं। फिलहाल तो नए मुख्यमंत्री और उसके बाद फिर कौन बनेगा नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री, उसकी टोहलेने में जुटे हैं। चूंकि खजाना खाली है, तो निगम अफसरों के पास भी अधिक कामकाज नहीं हैं। नए काम शुरू हो नहीं रहे हैं और जो पुराने चल रहे हैं उनमें भी भुगतान ना होने से धीमी गति से ये काम हो रहे हैं। कुल मिलाकर नगर निगम की पूरी व्यवस्था पटरी से उतर गई, जो पूर्व के आयुक्तों ने सख्ती के चलते कायम की थी।

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