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राम रहीम पर राज्‍य सरकार की खास मेहरबानी, दो साल में 7 महीने से रहा जेल से बाहर

चंडीगढ़ (Chandigarh) । पहले 1 दिन. फिर 1 दिन. फिर 21 दिन. फिर 30 दिन. फिर 40 दिन. एक बार फिर 40 दिन. फिर 30 दिन और फिर 21 दिन. आप गिनते-गिनते थक जाएंगे, लेकिन ये गिनती कभी पूरी नहीं होगी. अब इसे एक कैदी (prisoner) का हक कहिए या फिर कुछ खास वजह या फिर एक खास मुजरिम पर सरकार की खास मेहरबानी. रेप और कत्ल जैसे संगीन जुर्म के गुनहगार बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह (Baba Gurmeet Ram Rahim Singh) इंसा पर पैरोल की रेवड़ी कुछ ऐसी बरस रही है, जैसे सावन में बारिश बरसती है.

SGPC ने हाई कोर्ट में लगाई अर्जी
हमारे देश की जेलों में नामालूम ऐसे कितने ही कैदी हैं, जिनकी पूरी की पूरी उम्र एक अदद पैरोल के छींटे तक को तरस जाती है. और शायद यही वजह है कि अब पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट को इस मामले में सरकार को आईना दिखाना पड़ गया है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी की ओर से पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में राम रहीम को मिल रहे इस ताबड़तोड़ पैरोल के खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी, जिसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कह दिया कि अगर आइंदा कभी भी सरकार गुरमीत राम रहीम को पैरोल देने के बारे में सोचे भी, तो पहले उससे मशविरा ज़रूर कर ले.

कोर्ट को देना पड़ा दखल
आम तौर पर जेलों में बंद कैदियों को पैरोल देने का हक या जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है. लेकिन जब सरकार ही सारी हदों से आगे निकल जाए, तो फिर ‘बड़ी सरकार’ यानी कोर्ट को बीच में आना ही पड़ता है. ये मामला कुछ ऐसा ही है.


देश का पहला और इकलौता मामला
क्या आप यकीन करेंगे कि अपने जेल जाने के बाद पिछले दो सालों में राम रहीम कुल 184 दिन यानी तकरीबन छह महीने पैरोल और फर्लो के तौर पर जेल के बाहर मौज काट चुका है. और अगर इन 184 दिनों में अभी-अभी मिले 50 दिनों के पैरोल को और जोड़ दिया जाए, तो ये आंकड़ा सीधे 234 दिन का बनता है, जो सात महीने से भी ज्यादा है. इतनी जल्दी-जल्दी और इतना ज्यादा पैरोल मिलने का ये शायद देश का पहला और इकलौता मामला है.

हाई कोर्ट ने दिखाई सख्ती
अब जब कुछ कैदियों को पैरोल ही ना मिले और किसी को मिले तो इतनी मिले कि उसकी गिनती ही खत्म ना तो, तो फिर बवाल मचना तो लाजिमी है. एसजीपीसी के याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सरकार से ये भी पूछ लिया है कि उसने और कितने कैदियों को इस तरह पैरोल पर रिहा किया है, सरकार उसकी भी लिस्ट कोर्ट के हवाले करें.

11 मार्च को होगी अगली सुनवाई
राम रहीम पर लगी पैरोल की झड़ी को लेकर कोर्ट कितना नाराज़ है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोर्ट ये कहा है कि ‘हम चाहते हैं कि हरियाणा सरकार एक हलफनामा प्रस्तुत करे कि ऐसे आपराधिक इतिहास वाले और 3 मामलों में सजा पाने वाले कितने अपराधियों को यह लाभ दिया गया है? इस मामले में अगली सुनवाई अब 11 मार्च को होगी.’

राम रहीम को मिली है उम्रकैद की डबल सजा
राम रहीम कोई मामूली कैदी नहीं है. उसे दो-दो बलात्कार और दो-दो कत्ल के मामलों में 20 साल की कैद से लेकर उम्र कैद तक की डबल सज़ा मिल चुकी है. इस बार जब तक वो अपनी पैरोल पूरी कर अदालत में आत्मसमर्पण करेगा, तब तक वो सजायाफ्ता मुजरिम होने के बावजूद करीब सात महीने की आजादी के मज़े ले चुका होगा. अपने आश्रमों में बैठ ना सिर्फ सारे जरूरी काम-काज इत्मीनान से निपटा चुका होगा, बल्कि बीच-बीच में अपनी गद्दी से समर्थकों को ज्ञान की घुट्टी भी पिला चुका होगा.

अजीबो गरीब और बेतुके बहानें
अब एक ऐसे मुजरिम, जो एक नहीं कई-कई संगीन गुनाहों में सजायाफ्ता हो और अगर उसे यूं ही बार-बार अजीबो गरीब और बेतुके बहानों से जेल से बाहर आने की आजादी मिलती रहे, तो फिर सवाल तो उठेंगे ही. अब सवाल ये भी है कि आखिर राम रहीम अपने इन पैरोल को लिए सरकार के सामने ऐसी कौन सी वजह रखता है, जिसे ठुकराने की सरकार को हिम्मत ही नहीं पड़ती?

कभी खेती, कभी जयंती के लिए पैरोल
तो आइए, उसके पैरोल की कुछ अर्जियों से निकाली गई वजहों पर गौर करते हैं. राम रहीम को दो बार बीमार मां से मिलने के लिए एक-एक दिन की पैरोल मिली है. इस वजह को तो सही माना भी जा सकता है, लेकिन इसके बाद से वो कभी अपनी गोद ली हुई बेटियों की शादी के नाम पर, कभी खेती बाड़ी के नाम पर और कभी पूर्व डेरा प्रमुख शाह सतनाम की जयंती मनाने के नाम पर भी पैरोल ले चुका है. और हद ये है कि ऐसी तमाम अजीबोगरीब वजहों पर भी हरियाणा सरकार ने उसे मना नहीं किया है.

राम रहीम की पैरोल और चुनावों का रिश्ता
राम रहीम को मिलने वाले पैरोल का चुनावों से भी एक अजीब और अनकहा रिश्ता है. 2022 से लेकर अब तक राम रहीम को जितनी बार भी पैरोल मिली, ज्यादातर मौकों पर पैरोल के कुछ ही दिन बाद कोई ना कोई चुनाव जरूर था.
– फरवरी 2022 में जब उसे 21 दिन की पैरोल मिली थी, तो उसके कुछ दिनों के बाद ही पंजाब में विधान सभा चुनाव था.
– जून 2022 में ही जब उसे फिर से 30 दिनों की पैरोल मिली, तो हरियाणा में निकाय चुनाव होने वाले थे.
– अक्टूबर 2022 में जब उसे 40 दिनों की पैरोल मिली, तो आदमपुर सीट पर उप चुनाव होने थे.
– 20 जुलाई 2023 को जब उसे 30 दिनों की पैरोल मिली, तो हरियाणा में पंचायत चुनाव होने वाले थे.
– 21 नवंबर 2023 को जब उसे 21 दिनों का पैरोल मिला और तब राजस्थान में विधान सभा चुनाव होने वाले थे.

और अब उसे फिर से 50 दिनों की पैरोल मिली है और अब देश में लोक सभा चुनाव हैं. अब सवाल ये है कि आखिर चुनावों से इस पैरोल का क्या रिश्ता है? देखा जाए तो कागजों पर कोई रिश्ता नहीं. सिर्फ इत्तेफाक है, लेकिन हक़ीक़त यही है कि ये बाबा का अपने अनुयायियों पर पकड़ और पार्टियों की वोट बैंक ही है, जो बाबा को हर बार चुनाव से पहले मौज-मस्ती के लिए आजादी मिल जाती है.

ये है राम रहीम को पैरोल देने की असली वजह
असल में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बाबा के लाखों फॉलोअर्स हैं. ये फॉलोअर्स राम रहीम के एक इशारे पर किसी को भी एक मुश्त वोट देक कर जीता भी सकते हैं और किसी के खिलाफ वोट कर उसे हरा भी सकते हैं. ऐसे में शायद ही कोई पार्टी ऐसी होगी, जो राम रहीम के इस वोटों की इस लहलहाती फसल को नहीं काटना चाहेगी. और जानकारों की मानें तो राम रहीम को बार-बार मिलती पैरोल के पीछे भी सबसे बड़ी और अहम वजह यही है.

हरियाणा के जेल मंत्री की सफाई
ये और बात है कि खुद हरियाणा के जेल मंत्री को राम रहीम को मिल रहे पैरोल में कुछ भी अटपटा नहीं लगता. राम रहीम को मिली पैरोल पर जब उसने सवाल पूछा गया था, तो पिछले साल उनका जवाब ये था कि पैरोल कैदी का हक है. वो एक सामान्य कैदी है. लोग अलग-अलग वजह से पैरोल लेते हैं.

शाह सतनाम की जयंती में हुआ था शामिल
अब साल 2022 की बात की जाए तो जब राम रहीम को 40 दिनों की पैरोल मिली थी और वो रोहतक के सुनारिया जेल से बाहर निकला था. जेल से निकल कर वो सीधे हरियाणा से उत्तर प्रदेश के बागपत में मौजूद अपने आश्रम में पहुंचा था, जहां उसने 25 जनवरी को आश्रम के पूर्व डेरा प्रमुख शाह सतनाम की जयंती समारोह में हिस्सा लिया था. राम रहीम की गोद ली हुई बेटी हनीप्रीत तब भी उसे लेने रोहतक के सुनारिया जेल पहुंची थी.

भक्तों के साथ सत्ताधरी पार्टी के नेता
इधर, वो जेल से बाहर निकला और उधर उसके समर्थकों और चाहनेवालों ने बाबा के बाहर आने की खुशी में अलग-अलग प्रोग्रामों की शुरुआत कर दी. हरियाणा में जगह-जगह राम रहीम के चाहनेवालों ने सफाई अभियान चलाया था और इन अभियानों में सत्ताधारी पार्टी यानी बीजेपी के तमाम नेताओं के साथ-साथ मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रतिनिधि तक ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था.

भक्तों के लिए वीडियो मैसेज
उधर, बागपत के बरनावा आश्रम पहुंचते ही राम रहीम ने नए सिरे से वीडियो मैसेज जारी कर जहां अपनी खुशी का इजहार किया था, वहीं अपने चाहनेवालों से आश्रम आने की जगह अपने-अपने घरों में बैठ कर ही खुद के दर्शन कर लेने की सलाह भी दे डाली थी.

राम रहीम के खिलाफ मामले
राम रहीम सिरसा के अपने आश्रम में दो महिला अनुयायियों से बलात्कार करने के मामले में 20 साल की कैद की सजा काट रहा है. राम रहीम को पंचकुला की एक विशेष सीबीआई अदालत ने अगस्त 2017 में मामले में दोषी करार दिया था और सजा सुनाई थी. इसके अलावा गुरमीत राम रहीम को पूर्व डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या के मामले में भी कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है. जबकि उस पर एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के कत्ल का जुर्म भी साबित हो चुका है और वो इस मामले भी सजायाफ्ता मुजरिम है.

रेपिस्ट बाबा की अजीब हरकतें
अब राम रहीम एक बार फिर से जेल से बाहर है. आश्रम पहुंचते ही तलवार से केक काटने जैसी अजीबोगरीब हरकतें कर रहा है. ऐसे में जिन लोगों के कत्ल या जिनसे बलात्कार के जुर्म में राम रहीम को सजा मिली है, उनके दिल पर क्या गुजर रही है. ये आसानी से समझा जा सकता है. और हरियाणा की सरकार के लिए ये आम बात है.

क्या है पैरोल और फर्लो?
राम रहीम को मिलने वाले ताबड़तोड़ पैरोल और हाई कोर्ट के ऐतराज़ के बाद कैदियों को दी जाने वाली इस सुविधा को लेकर सवाल उठाए जाने जाने लगे हैं. लिहाजा, पैरोल और फर्लों के बारे में जानना भी जरूरी हो जाता है. इसलिए अब पैरोल और फर्लो से जुडे नियम कानूनों की बात भी कर लेते हैं. पैरोल सजा पूरी होने से पहले गुनहगार को जेल से मिली कुछ दिनों की रिहाई है. जिसके लिए अच्छा व्यवहार भी एक शर्त है. इसके लिए कैदी को जेल से बाहर निकलने की अपनी जरूरी वजह बतानी पड़ती है और सरकार इस पर आखिरी फैसला करती है. जबकि फर्लो जेल में लंबे वक्त से सजा काट रहे कैदियों को दी जानेवाली एक छुट्टी है, जिसका वजह से कोई सीधा लेना देना नहीं है. इसे एक कैदी का अधिकार माना जाता है़.

राम रहीम को हार्ड कोर क्रिमिनल नहीं मानती हरियाणा सरकार
हरियाणा सरकार ने साल 2022 में अपने पैरोल से जुड़े कानून में भी तब्दीली की थी. तब ये सवाल उठाया गया था कि कहीं सरकार ने जानबूझ कर राम रहीम को फायदा पहुंचाने के लिए तो ऐसा नहीं किया? पैरोल को लेकर 11 अप्रैल 2022 में हरियाणा सरकार ने एक नया कानून बनाया था. इसके बाद से राम रहीम को जल्दी जल्दी पैरोल मिलने लगी. असल में हरियाणा सरकार राम रहीम को हार्ड कोर क्रिमिनल नहीं मानती.

पहले नहीं था ऐसा कानून
जबकि 1988 से लेकर नए कानून के बनने तक यानी 34 सालों के बीच किसी हार्डकोर क्रिमिनल को पैरोल या फरलो देने के लिए कानून नहीं था. पर 2022 वाले इस नए कानून में कुछ शर्तो के साथ पैरोल मिल सकती है. शायद यही वजह है कि नए 2022 वाले कानून को राम रहीम के लिए बेहद आसान कहा जा रहा है. राम रहीम आश्रम की दो महिला साधकों के साथ रेप करने का गुनहगार है. उसे बीस साल की सजा हुई है, जबकि एक पत्रकार और डेरा मैनेजर के कत्ल के मामले में भी वो सजा काट रहा है.

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