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लॉन्च के बाद ही खत्म हो जाता Chandrayaan-3, अगर ये काम न करते ISRO के साइंटिस्ट

नई दिल्‍ली (New Delhi) । Chandrayaan-3 चंद्रमा पर पहुंचने से पहले ही खत्म हो गया होता अगर ISRO के साइंटिस्ट (scientist) उसकी दिशा और गति नहीं बदलते. भारत का सबसे सफल मून मिशन (moon mission) 14 जुलाई 2023 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था. यह मिशन चंद्रमा पर पहुंचने से पहले ही खत्म हो जाता, अगर इसरो इसकी लॉन्चिंग को चार सेकेंड लेट नहीं करता तो.

किसी भी सैटेलाइट या स्पेस्क्राफ्ट को लॉन्च करने से पहले इसरो वैज्ञानिक कोलिज़न एवॉयडेंस एनालिसिस (COLA) करते हैं. ताकि लॉन्चिंग के बाद अपने तय स्थान तक पहुंचने से पहले स्पेसक्राफ्ट या सैटेलाइट किसी अन्य उपग्रह या अंतरिक्ष के कचरे से न टकराए. इसलिए चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग चार सेकेंड की देरी की गई थी.

सिर्फ चंद्रयान-3 ही नहीं, बल्कि PSLV-C55/TeLEOS-2 की लॉन्चिंग भी 22 अप्रैल 2023 को एक मिनट की देरी से की गई थी. इसके अलावा 30 जुलाई 2023 को PSLV-C56/DS-SAR की लॉन्चिंग में भी एक मिनट की देरी की गई थी. ताकि इन दोनों रॉकेट्स और सैटेलाइट के सामने आने वाले अंतरिक्ष के कचरे और अन्य उपग्रहों की टक्कर से बचा जा सके.


चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के समय क्या हुआ था?
लॉन्चिंग से पहले इसरो वैज्ञानिकों को चंद्रयान-3 के मार्ग में अंतरिक्ष का कचरा दिखाई दिया. अगर चंद्रयान-3 तय समय पर लॉन्च होता तो इससे स्पेसक्राफ्ट के कचरे से टकराने का खतरा था. यह अंतरिक्ष का कचरा किसी अन्य सैटेलाइट मिशन का टुकड़ा था. लेकिन ये कचरा बेहद तेज गति से धरती की निचली कक्षा में चक्कर लगा रहा था.

इसलिए इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग में चार सेकेंड की देरी की. ताकि कचरा इसके रास्ते से दूर चला जाए. इसरो अपने स्टैंडर्ड लॉन्च क्लियरेंस प्रोटोकॉल के तहत COLA की तगड़ी स्टडी करता है. इससे सैटेलाइट और रॉकेट दोनों ही बचाए जाते हैं. मिशन की सफलता का सबसे बड़ा क्रेडिट इस कोला स्टडी को जाता है.

अंतरिक्ष में 23 बार बदली गई सैटेलाइट्स की दिशा-गति
कोला के अलावा अंतरिक्ष में जब सैटेलाइट सफर करता है, तब भी कचरे से टकराने की आशंका बनी रहती है. ऐसे में इसरो वैज्ञानिक कोलिज़न एवॉयडेंस मैन्यूवर (CAM) की प्रक्रिया अपनाते हैं. यानी अंतरिक्ष में सैटेलाइट के इंजन को ऑन करके उसकी दिशा, ऑर्बिट और गति में बदलाव करते हैं. साल 2023 में इसरो ने अलग-अलग सैटेलाइट्स और स्पेसक्राफ्ट्स के लिए यह काम 23 बार किया.

इसमें से 18 कैम लोअर अर्थ ऑर्बिट यानी धरती की निचली कक्षा में किए गए. पांच कैम जियोसिंक्रोनस अर्थ ऑर्बिट (GEO) में किया गया. इसके अलावा प्लैनेटरी CAM किया गया था चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के साथ दो बार. यह अमेरिकी मून मिशन लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) और कोरिया पाथफाइंडर लूनर ऑर्बिटर (KPLO) के रास्ते में आ गया था. इसलिए इसकी दिशा बदली गई थी.

कोला-कैम के अलावा भी किए गए सैकड़ों ऑर्बिट मैन्यूवर
बात सिर्फ CAM की नहीं है. कई बार बिना कैम प्रक्रिया के ही ऑर्बिट मैन्यूवर करने पड़ते हैं. पिछली साल इसरो ने धरती की निचली कक्षा में अपने सैटेलाइट्स के ऑर्बिट्स को 450 बार बदला. जबकि GEO में अपने सैटेलाइट्स की ऑर्बिट को 456 बार बदला. अकेले चंद्रयान-2 को ऑर्बिटर के ऑर्बिट को 17 बार बदला गया. ताकि इनकी टक्कर किसी भी चीज से न हो.

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