जबलपुर न्यूज़ (Jabalpur News)

सड़कें गायब, गड्ढों में दौड़ रहे वाहन

  • रोजाना हो रहे हादसे पैदल चलना भी हुआ दूभर

जबलपुर। शहर में विकास के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे है, लेकिन हकीकत उससे जुदा है, शहर की सड़के चलने लायक बची ही नहीं है। शहर के किसी भी मार्ग पर चले जाये तो वहां सिर्फ गड्डे ही गड्ढे नजर आयेंगे, वाहन तो छोड़ों लोगों का पैदल चलना भी दूभर हो गया है। ये मुसीबत तब और बढ़ जाती है जबकि बारिस हो जाये, क्योकि गड्ढों में भरे पानी से उसकी गहराई का अंदाजा नहीं लगता, जिस कारण दुर्घटना का शिकार हो रहे है। प्राप्त जानकारी अनुसार शहर में महामहीम के आगमन पर जहां सड़कों पर डामल की परत चढ़ाकर उसे नया रंग रोगन दिया गया था वह बारिस के झले में ही बह गया। इतना ही नहीं जिन मार्गो का निर्माण हुआ उन्होने भी अपनी भ्रष्टाचार की परतों का उजागर कर दिया है। दरअसल शहर में मॉडल रोड को छोड़कर कोई अन्य सड़क चलने लायक बची ही नहीं है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति घंटाघर से तैय्यब अली चौक तक मार्ग की है, जहां चारों ओर गड्डे ही गड्ढे नजर आ रहे है। यहीं हाल दमोहनाका व गोहलपुर से अमखेरा मार्ग का भी है। पेंटीनाका से गोराबाजार जाने वाला डेढ़ किमी. का मार्ग के भी धुर्रे उड़ गये है।


यदि पानी गिरा तो ये हादसों को आमंत्रण देने जैसा होता है,गड्ढों में भरे पानी पर वाहन फंसकर गिर रहे है और लोग घायल हो रहे है। हालही में ऐसे कई मामले सामने आये जब दो पहिया चालक बुरी तरह घायल हुए। यदि पानी नहीं गिरता गड्डों से उडऩे वाले धूल के गुबार लोगों को बीमार कर रहे है। जिनसे आंख व श्वास संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। कई महीनों से बेतरतीब व्यवस्था का दंश झेल रहे शहरवासी अब प्रशासन को कोसते नजर आ रहे है। लोगों का कहना है कि जब वह पूरे टैक्स की अदायगी कर रहे है तो उन्हें सुविधाएं क्यों उपलब्ध नहीं करायी जाती।

वाहनों की टूट-फूट के साथ लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा प्रभाव
बदहाल सड़कों में हिचकोले खाते दौड़ रहे वाहनों के अस्थि पंजर तो ढीले पड़ ही रहे, ेवहीं दूसरी ओर लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। कोई कमर दर्द का दंश झेल रहा है तो कोई अन्य समस्या से जूझ रहा है। इस सबका कारण सड़कों में हुए भारी भरकम गड्डें है।

10 दिन में हालात फिर जस के तस
जानकारी हो कि शहर की गढ्ढों भरी सड़कों को कुछ समय पूर्व भरने का काम किया गया था। लेकिन लेवलिंग का काम सही तरीके से न होने के कारण हफ््ते दस दिन में ही गढ्ढे जस के तस हो गए। हालात यह है कि बारिश होने की स्थिति में इन बडे-छोटे गढढ़ों में पानी भर जाता है, जिसके बाद लोग हादसों का शिकार हो रहे हैं।

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