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EWS पर SC के फैसले से BJP को होगा चुनावी फायदा, जानिए पूरा गणित!

नई दिल्ली! आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी EWS को 10 फीसदी आरक्षण को लेकर हाल ही में दिए गए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले से आगामी चुनाव (upcoming elections) पर भी असर दिखाई देने वाला है।

आपको बता दें कि गुजरात, हिमाचल में विधानसभा चुनाव और दिल्ली में एमसीडी इलेक्शन से पहले सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने बीजेपी को गुलजार कर दिया है। केंद्र की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए गए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है। अब संभावनाएं जताई जा रही हैं कि इसके जरिए भारतीय जनता पार्टी की स्थिति गुजरात में काफी मजबूत हो सकती है। इसकी एक बड़ी वजह पाटीदार समुदाय के मतों की संभावित वापसी और राज्य का जातीय समीकरण को माना जा रहा है।

इस पूरे मामले में गुजरात के पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला पुराने सभी आंदोलनों को खत्म कर देगा, जो हमने गुजरात समेत अन्य राज्यों में देखे हैं। उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बरकरार रखे गए प्रावधान देश की एकता को मजबूत करेंगे। पूरा देश इसे लेकर खुश है। मैं फैसले का स्वागत करता हूं।’

राज्य के सियासी हालात में पाटीदार समुदाय की भूमिका कई सालों से बड़ी रही है। मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी उप समूह ‘कड़वा पटेल’ समुदाय से आते हैं। 1 मई 1960 यानी गुजरात के गठन से लेकर अब तक राज्य आनंदीबेन पटेल, केशुभाई पटेल, चिमनभाई पटेल और बाबूभाई पटेल समेत 5 पटेल सीएम देख चुका है।



दूसरी तरफ आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 में 68 फीसदी कड़वा पटेल और 51 फीसदी लेउवा पटेल ने भाजपा के लिए मतदान किया था। जबकि, साल 2012 में आंकड़ा क्रमश: 78 प्रतिशत और 63 फीसदी था। 2017 में कांग्रेस का पाटीदार वोट प्रतिशत बढ़ गया था। पार्टी के लिए कड़वा पटेल ने 27 फीसदी और लेउवा ने 46 फीसदी मतदान किया था। साल 2012 में ये आंकड़ा केवल 9 प्रतिशत और 15 फीसदी था।
साल 2015 में पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) ने सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में पाटीदार समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए आंदोलन किया था। उसी साल हुए स्थानीय निकाय चुनाव तत्कालीन सीएम आनंदीबेन के लिए बड़ी चुनौती बने थे। तब कांग्रेस ने जिला पंचायतों में 31 में से 22 में जीत हासिल की थी। इसके अगले ही साल पटेल ने बढ़ती उम्र का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, पाटीदार आंदोलन और उसे नियंत्रित करने में असफलता को बड़े कारण के तौर पर देखा गया, जबकि साल 2017 चुनाव में भी भाजपा को सौराष्ट्र में झटका लगा था और कांग्रेस ने 48 में से 28 सीटें जीती थी। जबकि, भाजपा की जीत 19 पर सिमट गई थी। एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को मिली थी।



पाटीदारों की मांगों को मानने के लिए भाजपा सरकार ने साल 2016 में अध्यादेश के जरिए EWS को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था। खास बात है कि यह अनुसूचित जातियों, जानजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले 49.5 फीसदी आरक्षण से अलग था। हालांकि, अगस्त 2016 में ही अध्यादेश को हाईकोर्ट में चुनौती मिली और असंवैधानिक और अवैध बताकर इसे हटा दिया गया। बाद में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। कानून बनान में असफल होने के बाद अक्टूबर 2017 में गुजरात सरकार ने अध्यादेश को खत्म करने की अनुमति दे दी थी।

राज्य में पाटीदार समुदाय का काफी शक्तिशाली माना जाता है। ये राज्य की आबादी में 12-14 फीसदी की हिस्सेदारी निभाते हैं। बीते करीब 3 दशकों से यह समुदाय भाजपा का समर्थक है। गुजरात में ऐसी 55 सीटें हैं, जहां पटेल अहम भूमिका निभाते हैं। 16 सीटों पर पाटीदार मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। इनमें 9 सीटें सौराष्ट्र, तीन उत्तर गुजरात और चार सूरत में हैं। इनमें भी सौराष्ट्र की 7 और सूरत की तीन सीटों पर लेउवा पटेलों का दबदबा है। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हार्दिक पटेल पाटीदार आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे थे। उन्होंने कहा कि 68 समुदायों के सदस्यों को कोटा से फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से लिए गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट बरकरार रखा। शिक्षा और नौकरियों में 68 प्रतिशत सदस्यों को इससे फायदा होगा। मुझे गर्व महसूस होता है कि लोगों को हमारे आंदोलन से फायदा होगा।’

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