- दो दशक से चल रहे हैं सफाई अभियान, संाधु-संतों के अभियान से लेकर सामाजिक संगठनों के फोटो खिंचाई कार्यक्रम भी हुए-अब 650 करोड़ और मिलेंगे
उज्जैन। शिप्रा नदी में विभिन्न सरकार और नेता 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर चुके हैं लेकिन न तो शिप्रा के पानी की बदबू मिट पाई और न ही पानी आचमन योग्य हो सका। एक बार फिर मध्यप्रदेश सरकार शिप्रा नदी को साफ करने के नाम पर 650 करोड़ की डीपीआर तैयार करवा रही है और इसके लिए फाईल चल रही है लेकिन शंका है कि यह पैसा भी पानी में बहाया जाएगा और शिप्रा के नाम पर भ्रष्टाचार होगा..आखिर कब तक हम यह खेल तमाशा करते रहेंगे और नाकारा नेताओं के हाथों से यह बर्बादी देखते रहेंगे..क्या कभी उज्जैन के चुनाव में शिप्रा शुद्धिकरण के लिए भी वोट पड़ेगा…शायद उसका उत्तर नहीं है क्योंकि जनता मंदिर और जुमलों पर वोट डालती है..उसको व्यवस्था में सुधार नहीं चाहिए।
जिस नमामि गंगे मिशन से 12 हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद गंगा मैली ही रही, उसी प्रोजेक्ट से अब शिप्रा नदी के लिए 650 करोड़ रुपए और मिलेंगे। यह भी महत्वपूर्ण है कि बीते दो दशकों से उज्जैन की शिप्रा नदी नाले में तब्दील हो चुकी इंदौर की कान्ह नदी इसे बदस्तूर मैला किए जा रही है। उल्लेखनीय है कि शिप्रा किनारे राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक से लेकर शासन-प्रशासन, निगम स्तर के साथ-साथ जनता ने भी श्रमदान तक किया और फोटो खिंचवाए लेकिन शिप्रा नदी की स्थिति नहीं सुधारी जा सकी। 1200 करोड़ रुपए तक की राशि अभी तक शिप्रा की सफाई पर फूंकी जा चुकी है और परिणाम सबके सामने है। शिप्रा को स्वच्छ करने के लिए साधु-संत भी आंदोलन कर चुके हैं और जो एक छोटा हिस्सा साफ भी किया था वह फिर बर्बाद हो गया, क्योंकि लगातार सीवरेज तथा एक दर्जन नालों का पानी इसमें मिल रहा है। अब केन्द्र सरकार ने जो नया प्रोजेक्ट मंजूर किया है उसके तहत तीन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएंगे। हालांकि पूर्व से ही नगर निगम के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट चल रह हैं। कबीटखेड़ी सहित आधा दर्जन इन प्लांटों के माध्यम से भी यह दावे किए गए कि जल्द ही कान्ह नदी साफ हो जाएगी और इसी के साथ शिप्रा नदी का पानी भी साफ हो जाएगा। सिंहस्थ 2016 में भी शिप्रा नदी को साफ करने के लिए 150 करोड़ रुपए, तो अमृत योजना के प्रथम चरण में पौने 300 करोड़, नाला टैपिंग में 200 और स्मार्ट सिटी रीवर फ्रंट डेवलपमेंट के नाम पर 50 करोड़ रुपए फूंके जा चुके। यहां तक कि उज्जैन के साधु-संतों ने इंदौर जाकर क्षिप्रा में मिल रहे सीवरेज के पानी को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया। बीते 15-20 सालों में लगभग 1200 करोड़ रुपए नदी शुद्धिकरण के नाम पर फूंके जा चुके हैं। अब 650 करोड़ और केन्द्र से मिलेंगे। शहर के कई सामाजिक और राजनैतिक संगठन फोटो खिंचाऊ आयोजन कर शिप्रा शुद्धिकरण अभियान का ढिंढोरा पीटते रहे लेकिन शिप्रा का पानी आचमन योग्य भी नहीं हो पाया और आज भी शिप्रा मैली ही है।
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